Sunday 16 February 2020

एक परिपक्व व्यक्ति के गुण - short inspiring , motivating story


एक परिपक्व व्यक्ति के गुण - short inspiring  , motivating story




एक चोर एक सदगुरु की झोंपड़ी में घुसा पूर्णिमा की रात थी, और ग़लती से वह प्रवेश कर गया था; अन्यथा, एक सदगुरु के घर में तुम्हें क्या  मिलेगा?


चोर देख रहा था,और आश्चर्यचकित हुआ कि वहां कुछ नहीं था और अचानक उसने एक आदमी को आते देखा जो हाथ में एक मोमबत्ती लेकर आ रहा था
आदमी ने कहा,' तुम अंधेरे में क्या खोज रहे हो? तुमने मुझे उठाया क्यों नहीं? मैं मुख्य द्वार के पास ही सोया था, और मैंने तुम्हें पूरा मकान दिखा दिया होता और आदमी इतना सरल और निर्दोष दिख रहा था, जैसे कि वह समझ ही नहीं सकता कि कोई चोर भी हो सकता है!
उसकी सरलता और निर्दोषता के समक्ष, चोर ने कहा,'शायद आप नहीं जानते कि मैं एक चोर हूं
गुरु ने कहा,' उससे फर्क नहीं पड़ता, हर किसी को कुछ होना होता है। बात यह है कि मैं मकान में तीस वर्षों से हूं और मुझे कुछ नहीं मिला है, तो चलो हम मिल कर ढूंढते हैं! और यदि हमें कुछ मिलता है, तो हम साझेदार हो जाएंगे मुझे इस घर में कुछ नहीं मिला है; यह मात्र रिक्त है।

चोर थोड़ा डरा: आदमी विचित्र मालूम होता है। या तो यह पागल है या...कौन जाने किस प्रकार का आदमी है यह? वह जाना चाहता था, क्योंकि वह दूसरे दो घरों से कुछ वस्तुएं लाया था जो उसने मकान के बाहर छोड़ दी थीं,
गुरु के पास मात्र एक कंबल था — मात्र यही उसके पास था — और ठंडी रात थी,

तो उसने चोर से कहा, 'इस तरह से मत जाओ, मुझे इस तरह से अपमानित मत करो, अन्यथा मैं कभी भी स्वयं को क्षमा नहीं कर पाऊंगा, कि मेरे घर एक निर्धन व्यक्ति आया, मध्य रात्रि, और उसे खाली हाथ जाना पड़ा यह कंबल ले जाओ और यह अच्छा रहेगा — बाहर बहुत ठण्ड है। मैं घर के भीतर हूं; यहां अधिक गर्म है।
उसने चोर को अपने कंबल से ढंक दिया चोर का सर चकराने लगा! उसने कहा,'तुम क्या कर रहे हो? मैं एक चोर हूं!'

गुरु ने कहा,' उससे फर्क नहीं पड़ता इस संसार में हर किसी को कुछ ना कुछ होना होता है, कुछ करना होता है तुम चोरी कर रहे होंगे; उससे फर्क नहीं पड़ता, व्यवसाय व्यवसाय है। बस इसको अच्छे ढंग से करो, मेरे सारे आशीष तुम्हारे साथ हैं। इसको उत्तमता से करो, पकड़े मत जाओ नहीं तो तुम समस्या में पड़ोगे'

चोर ने कहा,' आप विचित्र हैं। आप नग्न हैं और आपके पास कुछ नहीं है!'

गुरु ने कहा,'चिंता मत करो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ आ रहा हूं! मात्र यह कम्बल मुझे घर में रखे हुए था; अन्यथा इस घर में कुछ नहीं है — और कम्बल मैंने तुम्हें दे दिया है। मैं तुम्हारे साथ आ रहा हूं — हम साथ रहेंगे ऐसा प्रतीत होता है तुम्हारे पास बहुत सी वस्तुएं हैं; यह अच्छी साझेदारी रहेगी मैंने अपना सर्वस्व तुम्हें दे दिया है। तुम मुझे थोडा दे सकते हो; यह अच्छा रहेगा
चोर इस पर विश्वास नहीं कर सका! वह उस स्थान से और उस व्यक्ति से भी भागना चाहता था।

उसने कहा,' नहीं, मैं आपको अपने साथ नहीं ले जा सकता मेरी पत्नी हैं, बच्चे हैं, और मेरे पड़ोसी, वे क्या कहेंगे?— 'तुम एक नग्न आदमी लाए हो!''

उसने कहा, ' यह सही है, मैं तुम्हे किसी शर्मनाक परिस्थिति में नहीं लाऊंगा तो तुम जा सकते हो, मैं इस घर में रहूंगा,



और जब चोर जा रहा था, गुरु चिल्लाया, 'सुनो! वापस आओ!'

चोर ने ऐसी शक्तिशाली आवाज़ कभी न सुनी थी; वह छुरी की तरह भेद गई| उसको वापस आना पड़ा गुरु ने कहा,' विनम्रता के कुछ तरीके सीखो मैंने तुम्हें कम्बल दिया है और तुमने मुझे धन्यवाद भी नहीं दिया तो पहले, मुझे धन्यवाद दो; यह तुम्हें बहुत सहायता करेगा

दूसरा, बाहर जा कर — तुमने भीतर आते समय द्वार खोला था — द्वार बंद कर दो! क्या तुम देख नहीं सकते की रात ठंडी है, और क्या तुम देख नहीं सकते कि मैंने तुम्हें कम्बल दे दिया है और मैं नग्न हूं? तुम्हारा चोर होना ठीक है, किन्तु जहां तक शिष्टाचार का प्रश्न है, मैं एक कठिन व्यक्ति हू| मैं इस प्रकार का व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर सकता कहो धन्यवाद!'

चोर को कहना पड़ा,' धन्यवाद श्रीमान!' और उसने दरवाज़ा बंद कर दिया और भाग गया वह विश्वास नहीं कर सका जो घटा था! वह पूरी रात नहीं सो सका बार-बार उसे स्मरण आता रहा.. उसने ऐसी शक्तिशाली आवाज़ कभी नहीं सुनी थी, इतना ओज और उस व्यक्ति के पास कुछ नहीं था!

उसने अगले दिन जानकारी निकाली और पाया कि वह एक महान गुरु था उसने अच्छा नहीं किया था यह एकदम वीभत्स था कि वह उस निर्धन व्यक्ति के पास गया; उसके पास कुछ नहीं था किन्तु वह एक महान गुरु था।

चोर ने कहा,' यह मैं स्वयं समझ सकता हूं — कि वह एक विचित्र प्रकार का व्यक्ति है| अपने जीवन में मैं अनेक प्रकार के व्यक्तियों से संपर्क में आता रहा हूं, सबसे निर्धन व्यक्तियों से लेकर सबसे धनवान व्यक्तियों तक, किन्तु कभी भी..... उसको याद करके भी, मेरे शरीर में झुरझुरी आ जाती है।
' जब उसने मुझे वापस बुलाया, मैं भाग नहीं सका मैं पूर्णतया स्वतन्त्र था, मैं वस्तुएं लेकर भाग सकता था, मगर मैं नहीं जा सका उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जिसने मुझे वापस खींच लिया,


कुछ महीनों बाद चोर पकड़ा गया, और कचहरी में न्यायधीश ने उससे पूछा,' क्या तुम कोई व्यक्ति बता सकते हो जो तुम्हें इस क्षेत्र में जानता हो?'
उसने कहा, ' हां एक व्यक्ति मुझे जानता है'.. और उसने गुरु का नाम बताया

न्यायाधीश ने कहा,' यह पर्याप्त है — गुरु को बुलाओ उसका वक्तव्य दस हज़ार व्यक्तियों के मूल्य का है। जो वह तुम्हारे बारे में कहेगा पर्याप्त होगा निर्णय देने के लिए।

न्यायाधीश ने गुरु से पूछा, ' क्या आप इस व्यक्ति को जानते हैं?'

उसने कहा, ' जानता हूं? हम साझेदार हैं। यह मेरा मित्र है। यह मुझसे मिलने एक रात मध्य रात्रि भी आया था। बाहर बहुत ठण्ड थी और मैंने इसे अपना कम्बल दिया। यह उसे उपयोग कर रहा है, आप देख सकते हैं। यह कम्बल सारे देश में प्रसिद्ध है; सब जानते हैं कि यह मेरा है।

न्यायाधीश ने कहा, ' यह आपका मित्र है? और क्या यह चोरी करता है?'

गुरु ने कहा,' कभी नहीं! यह कभी चोरी नहीं कर सकता यह इतना सज्जन है कि जब मैंने इसको अपना कम्बल दिया इसने मुझ से कहा, 'धन्यवाद श्रीमान' जब यह घर से बाहर गया, इसने चुपचाप द्वार बंद कर दिया यह बहुत विनम्र, अच्छा व्यक्ति है|'

न्यायाधीश ने कहा,' यदि तुम ऐसा कहते हो, तो सारे गवाहों के बयान जिन्होंने कहा है कि यह चोर है, मैं रद्द करता हूं, इसको मुक्त किया जाता है। गुरु बाहर चला गया और चोर ने उसका पीछा किया

गुरु ने कहा, ' तुम क्या कर रहे हो? तुम मेरे साथ क्यों आ रहे हो?'

उसने कहा,' अब मैं आपको कभी नहीं छोड़ सकता आपने मुझे अपना मित्र कहा है, आपने मुझे अपना साझेदार कहा है। किसी ने भी मुझे कोई सम्मान नहीं दिया है।आप पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने कहा है कि मैं एक सज्जन व्यक्ति हूं, एक अच्छा व्यक्ति हूं। मैं आपके चरणों में बैठ कर सीखूंगा कि आपके जैसा कैसे हुआ जाए आपने यह परिपक्वता कहां से पाई, यह शक्ति, यह ओज, यह चीज़ों को बिलकुल भिन्न रूप से देखना?'

गुरु ने कहा, ' क्या तुम जानते हो उस रात मुझे कितना बुरा लगा? तुम जा चुके थे; बहुत ठण्ड थी कम्बल के बिना सोना असंभव था मैं खिड़की के पास बैठ कर पूर्णिमा के चांद को देख रहा था,

और मैंने एक कविता लिखी:'यदि मैं धनी होता तो मैंने उस ग़रीब व्यक्ति को यह पूर्ण चन्द्रमा दे दिया होता, जो अंधेरे में एक निर्धन व्यक्ति के घर में कुछ खोजने आया था। मैंने चांद दे दिया होता, यदि मैं इतना धनवान होता, किन्तु मैं स्वयं निर्धन हूं' मैं तुम्हें कविता दिखाऊंगा, मेरे साथ आओ

' मैं उस रात रोया, कि चोरों को कुछ चीज़ें सीखनी चाहिएं कम से कम उन्हें एक या दो दिन पहले सूचना दे देनी चाहिए जब वे मेरे जैसे व्यक्ति के पास आएं, तो हम कुछ व्यवस्था कर लें, ताकि वे खाली हाथ न जाएं,

'यह अच्छा हुआ कि तुमने मुझे कचहरी में याद किया, नहीं तो वे लोग खतरनाक हैं, वे तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार कर सकते थे।

मैंने तुम्हें उसी रात न्यौता दिया था तुम्हारे साथ आने का और तुम्हारा साझेदार बनने का, किन्तु तुमने मना कर दिया| अब तुम चाहते हो.. कोई समस्या नहीं है, तुम आ सकते हो जो भी मेरे पास है, मैं तुमसे बांट लूंगा किन्तु यह कोई पदार्थ नहीं है: यह कुछ अदृश्य है।

चोर ने कहा,' यह मैं महसूस कर सकता हूं; यह कुछ अदृश्य है। किन्तु आपने मेरा जीवन बचाया है, और अब यह आपका है। जो कुछ भी आप इसका बना सकते हैं, बना लीजिये मैं मात्र इसको बर्बाद करता रहा हूं,आपको देख कर, आपकी आंखों में देख कर, एक बात निश्चित है — की आप मुझे रूपांतरित कर सकते हैं।मैं प्रेम में पड़ गया हूं उसी रात से

तात्पर्य है कि

दोस्तों एक परिपक्व व्यक्ति  बनिए

एक परिपक्व व्यक्ति के गुण बड़े विचित्र हैं, क्योंकि परिपक्वता ऐसा आभास देती है जैसे की वह अनुभवी हो गया है, जैसे कि वह आदमी बूढ़ा होता है। शारीरिक दृष्टि से वह बूढ़ा हो सकता है, मगर आत्मिक दृष्टि से वह एक निर्दोष बालक होता है। उसकी परिपक्वता मात्र जीवन से इकठ्ठा किया गया अनुभव नहीं है। फिर वह बच्चा नहीं होगा, और फिर वह एक उपस्थिति नहीं होगा; वह एक अनुभवी व्यक्ति होगा — ज्ञानवान किन्तु परिपक्व नहीं।


*बियोंड साइकोलॉजी , Talk #37*
ओशो






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Friday 14 February 2020

जो होता है, तू होने दे। तू मत कह कि ऐसा करूं, वैसा करूं- short inspiration story


जो होता है, तू होने दे। तू मत कह कि ऐसा करूं, वैसा करूं,
एक बहुत प्रेरणादायक कहानी - short inspiration story




बंगाल में एक बहुत अनूठे संन्यासी हुए, युक्तेश्वर गिरि। (yukteshwar giri ) वे योगानंद के गुरु थे। योगानंद ने पश्चिम में फिर बहुत ख्याति पाई।

गिरि अदभुत आदमी थे।

ऐसा हुआ एक दिन कि गिरि का एक शिष्य गांव में गया।

किसी शैतान आदमी ने उसको परेशान किया, पत्थर मारा, मार—पीट भी कर दी

वह यह सोचकर कि मैं संन्यासी हूं क्या उत्तर देना, चुपचाप वापस लौट आया। और फिर उसने सोचा कि जो होने वाला है, वह हुआ होगा, मैं क्यों अकारण बीच में आऊं। तो वह अपने को सम्हाल लिया। सिर पर चोट आ गई थी। खून भी थोड़ा निकल आया था। खरोंच भी लग गई थी। लेकिन यह मानकर कि जो होना है, होगा। जो होना था, वह हो गया है। वह भूल ही गया।

जब वह वापस लौटा आश्रम कहीं से भिक्षा मांगकर, तो वह भूल ही चुका था कि रास्ते में क्या हुआ।


गिरि ने देखा कि उसके चेहरे पर चोट है, तो उन्होंने पूछा, यह चोट कहां लगी? तो वह एकदम से खयाल ही नहीं आया उसे कि क्या हुआ। फिर उसे खयाल आया। उसने कहा कि आपने अच्छी याद दिलाई। रास्ते में एक आदमी ने मुझे मारा।

तो गिरि ने पूछा, लेकिन तू भूल गया इतनी जल्दी!

तो उसने कहा कि मैंने सोचा कि जो होना था, वह हो गया। और जो होना ही था, वह हो गया, अब उसको याद भी क्या रखना!

अतीत भी निश्चिंतता से भर जाता है, भविष्य भी। लेकिन एक और बड़ी बात इस घटना में है आगे।

गिरि ने उसको कहा, लेकिन तूने अपने को रोका तो नहीं था? जब वह तुझे मार रहा था, तूने क्या किया?

तो उसने कहा कि एक क्षण तो मुझे खयाल आया था कि एक मैं भी लगा दूं। फिर मैंने अपने को रोका कि जो हो रहा है, होने दो।

तो गिरि ने कहा कि फिर तूने ठीक नहीं किया। फिर तूने थोड़ा रोका। जो हो रहा था, वह पूरा नहीं होने दिया। तूने थोड़ी बाधा डाली। उस आदमी के कर्म में तूने बाधा डाली, गिरि ने कहा।

उसने कहा, मैंने बाधा डाली! मैंने उसको मारा नहीं, और तो मैंने कुछ किया नहीं। क्या आप कहते हैं, मुझे मारना था!

गिरि ने कहा, मैं यह कुछ नहीं कहता। मैं यह कहता हूं जो होना था, वह होने देना था। और तू वापस जा, क्योंकि तू तो निमित्त था। कोई और उसको मार रहा होगा।

और बड़े मजे की बात है कि वह संन्यासी वापस गया। वह आदमी बाजार में पिट रहा था। लौटकर वह गिरि के पैरों में पड़ गया। और उसने कहा कि यह क्या मामला है?

गिरि ने कहा कि जो तू नहीं कर पाया, वह कोई और कर रहा है। तू क्या सोचता है, तेरे बिना नाटक बंद हो जाएगा!
तू निमित्त था।

बड़ी अजीब बात है यह। और सामान्य नीति के नियमों के बड़े पार चली जाती है।

कृष्ण अर्जुन को यही समझा रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि जो होता है, तू होने दे। तू मत कह कि ऐसा करूं, वैसा करूं, संन्यासी हो जाऊं, छोड़ जाऊं। कृष्‍ण उसको रोक नहीं रहे हैं संन्यास लेने से। क्योंकि अगर संन्यास होना ही होगा, तो कोई नहीं रोक सकता, वह हो जाएगा।

इस बात को ठीक से समझ लें।

अगर संन्यास ही घटित होने को हो अर्जुन के लिए, तो कृष्ण रोकने वाले नहीं हैं। वे सिर्फ इतना कह रहे हैं कि तू चेष्टा करके कुछ मत कर। तू निश्चेष्ट भाव से, निमित्त मात्र हो जा और जो होता है, वह हो जाने दे।

अगर युद्ध हो, तो ठीक। और अगर तू भाग जाए और संन्यास ले ले, तो वह भी ठीक।

तू बीच में मत आ, तू स्रष्टा मत बन। तू केवल निमित्त हो।

गीता दर्शन  भाग–5, अध्‍याय—11
ओशो



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हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें - दिल को छू जाने वाली कहानी


एक *जज अपनी पत्नी को क्यों दे रहे हैं तलाक???*।
* रोंगटे खड़े कर देने वाली स्टोरी*  को जरूर पढ़े और लोगों को शेयर करें।

⚡कल रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी *ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया*.


करीब 7 बजे होंगे, शाम को मोबाइल बजा ।

उठाया तो *उधर से रोने की आवाज*...
मैंने शांत कराया और पूछा कि *भाभीजी आखिर हुआ क्या*?

उधर से आवाज़ आई..
*आप कहाँ हैं??? और कितनी देर में आ सकते हैं*?

मैंने कहा:- *"आप परेशानी बताइये"*।
और "भाई साहब कहाँ हैं...?माताजी किधर हैं..?" "आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन
*उधर से केवल एक रट कि "आप आ जाइए"*,

मैंने आश्वाशन दिया कि *कम से कम एक घंटा पहुंचने में लगेगा*. जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट में पहुँचा;


देखा तो भाई साहब [हमारे मित्र जो जज हैं] सामने बैठे हुए हैं;


*भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं* 12 साल का बेटा भी परेशान है; 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।

मैंने भाई साहब से पूछा कि *""आखिर क्या बात है""*???

*""भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे ""*.

फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये *तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार करा के लाये हैं*, मुझे तलाक देना चाहते हैं,

मैंने पूछा - *ये कैसे हो सकता है???. इतनी अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है. ""प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है""*.

लेकिन मैंने बच्चों से पूछा  *दादी किधर है*,
बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले *नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट* कर दिया है.

मैंने घर के नौकर से कहा।

मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ;

कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को *बहुत कोशिशें कीं चाय पिलाने की*.लेकिन उन्होंने नहीं पी और कुछ ही देर में वो एक *"मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे "*

बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
*पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली*. कि *""मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती""*

ना तो ये उनसे बात करती थी और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे. *रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी*. नौकर तक भी *अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे*

माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू मुझे *ओल्ड ऐज होम* में शिफ्ट कर दे.


मैंने बहुत *कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने की*, लेकिन *किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की*.

*जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी दूसरों के घरों में काम करके *""मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ""*.

लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
*उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ*.

पिछले 3 दिनों से मैं *अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ,*जो उसने केवल मेरे लिए उठाये।

मुझे आज भी याद है जब..
*""मैं 10th की परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती""*.

एक बार *माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल से आया था*. उसका *शरीर गर्म था, तप रहा था*. मैंने कहा *माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है*.


लोगों से *उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया*. मुझे *ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं*कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए.   

      *कहते-कहते रोने लगे..और बोले--""जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे""*.

हम जिनके *शरीर के टुकड़े हैं*,आज हम उनको *ऐसे लोगों के हवाले कर आये, ""जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते""*,
जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो *"मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ".*

आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और *माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ*
.
जब *मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे*. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ।

*सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले* करके उस *ओल्ड ऐज होम* में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ।

और अगर *इतना सब कुछ कर के ""माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है"", तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा*.

माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. *माँ की तरह तकलीफ* तो नहीं होगी.

*जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे*.

बातें करते करते रात के 12:30 हो गए।

मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके *भाव भी प्रायश्चित्त और ग्लानि* से भरे हुए थे; मैंने ड्राईवर से कहा अभी हम लोग नोएडा जाएंगे।

भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
*बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला*.

भाई साहब ने उस *गेटकीपर के पैर पकड़ लिए*, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा *मैं जज हूँ,*

उस चौकीदार ने कहा:-

*""जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये,
औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब"*।

इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.

अन्दर से एक महिला आई जो *वार्डन* थी.
उसने *बड़े कातर शब्दों में कहा*:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो
*मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..*?"

मैंने सिस्टर से कहा  *आप विश्वास करिये*. ये लोग *बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं*.

अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. *कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.*

केवल एक फ़ोटो जिसमें *पूरी फैमिली* है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए
लेकिन जब मैंने कहा *हम लोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी*

आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए.

*उनकी भी आँखें नम थीं*
कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.


सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि *शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे*.......

लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की *भावनाओं को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे*.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.

👩 💐 *भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है; ये समझ गई थी* 💐

मैं भी चल दिया. लेकिन *रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे*.

👵 💐*""माँ केवल माँ है""* 💐👵

*उसको मरने से पहले ना मारें.*

*माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की ""रीढ़ कमज़ोर"" हो जाएगी* , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं

अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, *बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें*, अगर *माँ की आँख से आँसू गिर गए तो *"ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा"*, यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर *""सुकून नहीं होगा""* , सुकून सिर्फ *माँ के आँचल* में होता है उस *आँचल को बिखरने मत देना*।
✍👏👏💐💐👏👏
इस *मार्मिक दास्तान को खुद भी पढ़िये और अपने बच्चों को भी पढ़ाइये ताकि पश्चाताप न करना पड़े


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Tuesday 4 February 2020

वादा वही करो जो निभा सको - short inspiration , motivation, bedtime story

Motivational Story


एक ठंडी रात में, एक अरबपति बाहर एक बूढ़े गरीब आदमी से मिला। उसने उससे पूछा, "क्या तुम्हें बाहर ठंड महसूस नहीं हो रही है, और तुमने कोई कोट भी नहीं पहना है?"

बूढ़े ने जवाब दिया, "मेरे पास कोट नहीं है लेकिन मुझे इसकी आदत है।" अरबपति ने जवाब दिया, "मेरे लिए रुको। मैं अभी अपने घर में प्रवेश करूंगा और तुम्हारे लिए एक कोट ले लाऊंगा।"

वह बेचारा बहुत खुश हुआ और कहा कि वह उसका इंतजार करेगा। अरबपति अपने घर में घुस गया और वहां व्यस्त हो गया और गरीब आदमी को भूल गया।

सुबह उसे उस गरीब बूढ़े व्यक्ति की याद आई और वह उसे खोजने निकला लेकिन ठंड के कारण उसे मृत पाया, लेकिन उसने एक चिट्ठी छोड़ी थी, जिसमे लिखा था कि, "जब मेरे पास कोई गर्म कपड़े नहीं थे, तो मेरे पास ठंड से लड़ने की मानसिक शक्ति थी। लेकिन जब आपने मुझे मेरी मदद करने का वादा किया, तो मैं आपके वादे से जुड़ गया और इसने मेरी मानसिक शक्ति को खत्म कर दिया। "

अगर आप अपना वादा नहीं निभा सकते तो कुछ भी वादा न करें। यह आप के लिये जरूरी नहीं भी हो सकता है, लेकिन यह किसी और के लिए सब कुछ हो सकता है। 🙏🙏


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Wednesday 15 January 2020

अपने मन को शांत और फोकस करने के लिए अपने भीतर देखें - A Short Inspiring Story

अपने मन को शांत और फोकस करने के लिए अपने भीतर देखें - A Short Inspiring Story



कथा है कि चीन के सम्राट ने बोधिधर्म से पूछा : ‘मेरा चित्त अशांत है, बेचैन है। मेरे भीतर निरंतर अशांति मची रहती है। मुझे थोड़ी शांति दें या मुझे कोई गुप्त मंत्र बताएं कि कैसे मैं आंतरिक मौन को उपलब्ध होऊं।’’

बोधिधर्म ने सम्राट से कहा : ‘आप सुबह ब्रह्यमुहुर्त में यहां आ जाएं, चार बजे सुबह आ जाएं। जब यहां कोई भी न हो, जब मैं यहां अपने झोपड़े में अकेला होऊं, तब आ जाएं। और याद रहे, अपने अशांत चित्त को अपने साथ ले आएं; उसे घर पर ही न छोड़ आएं।’

सम्राट घबरा गया; उसने सोचा कि यह आदमी पागल है। यह कहता है : ‘अपने अशांत चित्त को साथ लिए आना; उसे घर पर मत छोड़ आना। अन्यथा मैं शांत किसे करूंगा? मैं उसे जरूर शांत कर दूंगा, लेकिन उसे ले आना। यह बात स्मरण रहे।’

सम्राट घर गया, लेकिन पहले से भी ज्यादा अशांत होकर गया। उसने सोचा था कि यह आदमी संत है, ऋषि है, कोई मंत्र-तंत्र बता देगा। लेकिन यह जो कह रहा है वह तो बिलकुल बेकार की बात है, कोई अपने चित्त को घर पर कैसे छोड़ आ सकता है?

सम्राट रात भर सो न सका।
बोधिधर्म की आंखें और जिस ढंग से उसने देखा था, वह सम्मोहित हो गया था। मानो कोई चुंबकीय शक्ति उसे अपनी और खींच रही हो। सारी रात उसे नींद नहीं आई। और चार बजे सुबह वह तैयार था। वह वस्तुतः नहीं जाना चाहता था, क्योंकि यह आदमी पागल मालूम पड़ता था। और इतने सबेरे जाना, अंधेरे में जाना, जब वहां कोई न होगा, खतरनाक था।

यह आदमी कुछ भी कर सकता है। लेकिन फिर भी वह गया, क्योंकि वह बहुत प्रभावित भी था।
और बोधिधर्म ने पहली चीज क्या पूछी? वह अपने झोपड़े में डंडा लिए बैठा था। उसने कहा : ‘अच्छा तो आ गए, तुम्हारा अशांत मन कहां है? उसे साथ लाए हो न? मैं उसे शांत करने को तैयार बैठा हूं।’
सम्राट ने कहा : ‘लेकिन यह कोई वस्तु नहीं है; मैं आपको दिखा नहीं सकता हूं। मैं इसे अपने हाथ में नहीं ले सकता; यह मेरे भीतर है।’

बोधिधर्म ने कहा :बहुत अच्छा, अपनी आंखें बंद करो, और खोजने की चेष्टा करो कि चित्त कहां है। और जैसे ही तुम उसे पकड़ लो, आंखें खोलना और मुझे बताना मैं उसे शांत कर दूंगा।’

उस एकांत में और इस पागल व्यक्ति के साथ-सम्राट ने आंखें बंद कर लीं। उसने चेष्टा की, बहुत चेष्टा की। और वह बहुत भयभीत भी था, क्योंकि बोधिधर्म अपना डंडा लिए बैठा था, किसी भी क्षण चोट कर सकता था। सम्राट भीतर खोजने की कोशिश रहा।

उसने सब जगह खोजा, प्राणों के कोने-कातर में झांका, खूब खोजा कि कहां है वह मन जो कि इतना अशांत है। और जितना ही उसने देखा उतना ही उसे बोध हुआ कि अशांति तो विलीन हो गई। उसने जितना ही खोजा उतना ही मन नहीं था, छाया की तरह मन खो गया था।

दो घंटे गुजर गए और उसे इसका पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है। उसका चेहरा शांत हो गया; वह बुद्ध की प्रतिमा जैसा हो गया। और जब सूर्योदय होने लगा तो बोधिधर्म ने कहा  : ‘अब आंखें खोलो। इतना पर्याप्त है। दो घंटे पर्याप्त से ज्यादा हैं। अब क्या तुम बता सकते हो कि चित्त कहा है?’


सम्राट ने आंख खोलीं। वह इतना शांत था जितना कि कोई मनुष्य हो सकता है। उसने बोधिधर्म के चरणों पर अपना सिर रख दिया और कहा :आपने उसे शांत कर दिया।’

सम्राट वू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है :यह व्यक्ति अदभुत है, चमत्कार है। इसने कुछ किए बिना ही मेरे मन को शांत कर दिया। और मुझे भी कुछ न करना पड़ा। सिर्फ मैं अपने भीतर गया और मैंने यह खोजने की कोशिश की कि मन कहां है।

निश्चित ही बोधिधर्म ने सही कहा कि पहले उसे खोजो कि वह कहां है। और उसे खोजने की प्रयत्न ही काफी था--वह कहीं नहीं पाया गया।’



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