Monday 31 August 2020

hindus genocide - hidden history , गंगा जमनी के दुर्भाग्य की महागाथा। hidden history दिल दहलाने वाली सत्य घटना

 गंगा जमनी के दुर्भाग्य की महागाथा। hidden history

दिल दहलाने वाली सत्य घटना
1 बाप, 7 बेटियां और गुजरांवाला का एक कुआं



  आज भी बहुत सारे लोग कितने बड़े अंधकार में 

जी रहे हैं, छल को पाल रहे हैं और समझाने पर

 कहते हैं-- "कहाँ है खतरा?"
***

दिल दहलाने वाली सत्य घटना
1 बाप, 7 बेटियां और गुजरांवाला का एक कुआं...

एक_जमीन…


गुजरांवाला। पाकिस्तान पंजाब का एक शहर। 

सरदार हरि सिंह नलवा की जमीन। यहां कभी

 एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार रहता था। 

मुखिया थे- लाला जी उर्फ बलवंत खत्री। बड़े जमींदार।

 शानदार कोठी थी। लाला जी का एक भरा-पूरा परिवार

 इस कोठी में रहता था। पत्नी थी- प्रभावती और बच्चे

 थे आठ। सात बेटियां और एक बेटा।

एक_परिवार...
लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र तब 20 साल थी। उससे

 छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल की थी। राजवती (रज्जो)

 17 तो भगवती (भागो) 16 की थी। पार्वती (पारो) 15 साल 

और गायत्री (गायो) 13 तथा ईश्वरी (इशो) 11 बरस की थी।


 सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरख की थी। जल्द ही फिर

 से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी। प्रभावती पेट से थीं।

एक_साल...
यह साल 1947 की बात है। हम आजाद हो गए थे। भारत 

का बंटवारा हो गया था। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान 

कर दिया था। गुजरांवाला के आसपास के इलाकों से हिंदू-सिखों

 के कत्लेआम की खबरें आने लगी थी। 'अल्लाह हू अकबर' और

 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का शोर करती भीड़ यलगार करती- 

काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। हम उन्हें हड़प लेंगे।

एक_उम्मीद...
पर लाला जी बेफिक्र थे। उन्हें गांधी के आदर्शों पर यकीन था।

 उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध हैं। दो-चार दिन में शांत

 हो जाएंगे। और गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों

 का शहर है। सब 'अव्वल अल्लाह नूर उपाया' गाने वाले लोग हैं। 


बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद की कविताएं पढ़ते हैं। सूफी मजारों

 पर जाते है। लाला जी का मन कहता था- सब भाई हैं। एक-दूसरे

 का खून नहीं बहाएंगे।

एक_तारीख...
18 सितंबर 1947। एक सिख डाकिया हांफते हुए हवेली पहुॅंचा।

 चिल्लाया- लाला जी इस जगह को छोड़ दो। तुम्हारी बेटियों को उठाने के

 लिए वे लोग आ रहे हैं। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। 

भगवती को… लाला बलवंत ने उस डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। 

कहा- क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है।

 मुख्तार भाई हमारे परिवार की तरह हैं।

एक_चेतावनी...
उसका जवाब था, “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी।

 सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर

 में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।”

 यह कह वह सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर तक भी शायद 

खबर पहुंचानी रही होगी।

एक_संवाद...
लाला जी पीछे मुड़े तो सात महीने की गर्भवती प्रभावती की आंखों

 से आंसू निकल रहे थे। उसने सारी बात सुन ली थी। उसने कहा- लाला जी

 हमे निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे, कागज बांध लेने को

 कहा है। पर लाला जी का मन नहीं मान रहा था। कहा- हम कहीं नहीं जाएंगे।

 सरदार झूठ बोल रहा है। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। 

मैं खुद उनसे बात करूंगा। प्रभावती ने बताया- वे पिछले महीने

 घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि 

दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम

 अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से 

बाहर निकलना बंद कर दिया। लाला बलवंत बोले- तुमने यह बात

 पहले क्यों नहीं बताई। मैं मुख्तार भाई से बात करता।

 प्रभावती बोलीं- आप भी बहुत भोले हैं।

 मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं।

 अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं।

एक_गुरुद्वारा...
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था। पुरुषों के हाथों में 

तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और

 गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के

 द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे।

 कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे। 

महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और

 बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी।

एक_भीड़...
अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी

 मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,
- पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
- हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
- कारों, काटना असी दिखावेंगे
- किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
- हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक_निशाना...
प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। 

इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। 

अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर

 के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया।

 हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल 

लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य 

हथियार थे। गुरुद्वारा उनका निशाना था।

एक_प्रतिज्ञा...
गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार

 पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे। 

अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी। 

वे बोले, “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। 

उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण

 करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है।

 झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों 

को छूने दूंगा।” चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, 

सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह'

 से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी- हममें 

से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।

एक_इंतजार...
50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही

 सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान

 नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह 

देख वह मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट 

तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर वे खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे।

 ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार

 था, वे आ गए थे। हजारों का हुजूम। बाहर हजारों लोग। गुरुद्वारे के अंदर 

मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।

एक_उन्माद...
अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख महिला को आगे

 खींचा। वह नग्न और अचेत थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच 

रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे

 के भीतर फेंक दिया।

एक_सवाल...
गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह

 की बर्बरता के बारे में सुना ही था। पहली बार आंखों से देखा। अब

 हर कोई अपनी स्त्री के बारे में सोचने लगा। यदि उनकी मौत के बात 

उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं तो क्या होगा? उन्हें अब केवल मौत 

ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह।

एक_कत्लेआम...
भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख लड़े 

बांकुरों की तरह। पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने 

कितनी देर टिकते...

एक_मुक्ति...
लाजो ने कहा- तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी।

 लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी।

 लाजो ने फिर कहा- जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत 

फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी

 बेटियों की हत्या कैसे करे? लाजो ने कहा- यदि आपने नहीं

 मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने 

लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी।

 फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। 

लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग 

करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी। लेकिन उस

 मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। 

नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके 

शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।

एक_आदेश...
लाल बलवंत ने प्रभावती से कहा- गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर

 तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें

 सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा।

 तुम दोनों निकलो। प्रभावती ने कहा- मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी।

 लाला जी बोले- तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा।

 तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। 

बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव 

को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया।

एक_पिता...
फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा

 दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था। आखिर दो बच्चों के 

पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था।
लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है। भारत के विभाजन में अपने परिवार

 के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और उनके परिवार के

 कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और 

अजन्मे संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही थीं।

 वे पंजाब के अमृतसर में रहते थे। हाल ही में मुझे किसी ने यह लिंक,

 इस आग्रह के साथ पढ़ने के लिए भेजा था कि इसे हिंदी में अनुवाद कर

 लोगों के सामने रखा जाना चाहिए।

एक_पेंटिंग...
पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों के

 साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। 

उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे द




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Women exploitation - beginning hidden history यौन अपराध - इस्लाम

 Women exploitation - beginning hidden history

यौन अपराध" इस्लाम


इतिहास के अनुसार "यौन अपराध" इस्लाम की देन है !
यदि टाईम हो तो पढे अन्यथा खिसक ले !
         अद्भूत लेख ~बलात्कार का आरंभ~

मुझे पता है 90 % बिना पढ़े ही निकल लेंगे

आखिर भारत जैसे देवियों को पूजने वाले देश

 में बलात्कार की गन्दी मानसिकता कहाँ से आयी ~~

आखिर क्या बात है कि जब प्राचीन भारत के रामायण

, महाभारत आदि लगभग सभी हिन्दू-ग्रंथ के उल्लेखों 

में अनेकों लड़ाईयाँ लड़ी और जीती गयीं, परन्तु

 विजेता सेना द्वारा किसी भी स्त्री का बलात्कार

 होने का जिक्र नहीं है।

तब आखिर ऐसा क्या हो गया ?? कि आज के

 आधुनिक भारत में बलात्कार रोज की सामान्य

 बात बन कर रह गयी है ??

~श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की पर न ही 

उन्होंने और न उनकी सेना ने पराजित लंका की 

स्त्रियों को हाथ लगाया ।

~महाभारत में पांडवों की जीत हुयी लाखों की संख्या

 में योद्धा मारे गए। पर किसी भी पांडव सैनिक ने किसी 

भी कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ तक न लगाया ।

अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में~

220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक "डेमेट्रियस

 प्रथम" ने भारत पर आक्रमण किया। 183 ईसापूर्व

 के लगभग उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी

 राजधानी बनाया और पंजाब सहित सिन्ध पर भी राज

 किया। लेकिन उसके पूरे समयकाल में बलात्कार का

 कोई जिक्र नहीं।

~इसके बाद "युक्रेटीदस" भी भारत की ओर बढ़ा और

 कुछ भागों को जीतकर उसने "तक्षशिला" को अपनी

 राजधानी बनाया। बलात्कार का कोई जिक्र नहीं

~"डेमेट्रियस" के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें

 बौद्ध शासक "वृहद्रथ" को पराजित कर सिन्धु के पार

 पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया

 परन्तु उसके शासनकाल में भी बलात्कार का

 कोई उल्लेख नहीं मिलता।

~"सिकंदर" ने भारत पर लगभग 326-327

 .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए ।

 इसमें युद्ध जीतने के बाद भी राजा "पुरु" की बहादुरी

 से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु

 को वापस दे दिया और "बेबिलोन" वापस चला गया ।

विजेता होने के बाद भी "यूनानियों" (यवनों) की सेनाओं

 ने किसी भी भारतीय महिला के साथ बलात्कार नहीं

 किया और न ही "धर्म परिवर्तन" करवाया ।

~इसके बाद "शकों" ने भारत पर आक्रमण किया

 (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)।

 "सिन्ध" नदी के तट पर स्थित "मीननगर" 

को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात

 क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी,गंधार

,सिन्ध,मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू

 भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन

 किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार

 का कोई उल्लेख नहीं।

~इसके बाद तिब्बत के "युइशि" (यूची) कबीले की

 लड़ाकू प्रजाति "कुषाणों" ने "काबुल" और "कंधार"

 पर अपना अधिकार कायम कर लिया। जिसमें 

"कनिष्क प्रथम" (127-140ई.) नाम का सबसे 

शक्तिशाली सम्राट हुआ।जिसका राज्य "कश्मीर

 से उत्तरी सिन्ध" तथा "पेशावर से सारनाथ" के 

आगे तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे

 समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु 

इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों

 का बलात्कार किया हो ।

~इसके बाद "अफगानिस्तान" से होते हुए भारत

 तक आये "हूणों" ने 520 AD के समयकाल में भारत

 पर अधिसंख्य बड़े आक्रमण किए और यहाँ पर राज 

भी किया। ये क्रूर तो थे परन्तु बलात्कारी होने का 

कलंक इन पर भी नहीं लगा।

~इन सबके अलावा भारतीय इतिहास के हजारों

 साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये 

जिन्होंने भारत में बहुत मार काट मचाई जैसे "नेपालवंशी"

 "शक्य" आदि। पर बलात्कार शब्द भारत में तब तक

 शायद ही किसी को पता था।

अब आते हैं मध्यकालीन भारत में~
जहाँ से शुरू होता है इस्लामी आक्रमण~
और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन!

~सबसे पहले 711 ईस्वी में "मुहम्मद बिन कासिम"

 ने सिंध पर हमला करके राजा "दाहिर" को हराने के

 बाद उसकी दोनों "बेटियों" को "यौनदासियों" के

 रूप में "खलीफा" को तोहफा भेज दिया।

तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार

 बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें

 "हारे हुए राजा की बेटियों" और "साधारण भारतीय 

स्त्रियों" का "जीती हुयी इस्लामी सेना" द्वारा बुरी

 तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।

~फिर आया 1001 इस्वी में "गजनवी"

 इसके बारे में ये कहा जाता है कि इसने

 "इस्लाम को फ़ैलाने" के उद्देश्य से ही आक्रमण

 किया था।

"सोमनाथ के मंदिर" को तोड़ने के बाद इसकी

 सेना ने हजारों "काफिर औरतों" का बलात्कार किया 

फिर उनको अफगानिस्तान ले जाकर "बाजारों में 

बोलियाँ" लगाकर "जानवरों" की तरह "बेच" दिया ।

~फिर "गौरी" ने 1192 में "पृथ्वीराज चौहान" को

 हराने के बाद भारत में "इस्लाम का प्रकाश" फैलाने

 के लिए "हजारों काफिरों" को मौत के घाट उतर दिया 

और उसकी "फौज" ने "अनगिनत हिन्दू स्त्रियों" के साथ

 बलात्कार कर उनका "धर्म-परिवर्तन" करवाया।

~ये विदेशी मुस्लिम अपने साथ औरतों को

 लेकर नहीं आए थे।

~मुहम्मद बिन कासिम से लेकर सुबुक्तगीन, बख्तियार 

खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह,

 तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह,

 मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद,

 गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर

 खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, 

महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, 

अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह 

लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर,

~अपने हरम में "8000 रखैलें रखने वाला शाहजहाँ"।

~ इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर

 मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए 

"मीना बाजार" लगवाने वाला "जलालुद्दीन 

मुहम्मद अकबर"।

~मुहीउद्दीन मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक

 बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है।

 जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों

 "काफिर महिलाओं" "(माल-ए-गनीमत)" 

का बेरहमी से बलात्कार किया और "जेहाद के इनाम"

 के तौर पर कभी वस्तुओं की तरह "सिपहसालारों" में

 बांटा तो कभी बाजारों में "जानवरों की तरह

 उनकी कीमत लगायी" गई।

~ये असहाय और बेबस महिलाएं "हरमों" से लेकर

 "वेश्यालयों" तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं

 पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।

~एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम

 "आक्रमणकारी" अपने साथ "औरतों" को

 लेकर नहीं आए थे।

~वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा

 "पराजित काफिर स्त्रियों का बलात्कार" करना 

एक आम बात थी क्योंकि वो इसे "अपनी जीत

" या "जिहाद का इनाम" (माल-ए-गनीमत) मानते थे।

~केवल यही नहीं इन सुल्तानों द्वारा किये

 अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों के बारे

 में आज के किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा।

~बल्कि खुद इन्हीं सुल्तानों के साथ रहने वाले

 लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं

 और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा

 काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।

~गूगल के कुछ लिंक्स पर क्लिक करके हिन्दुओं

 और हिन्दू महिलाओं पर हुए "दिल दहला" देने वाले 

अत्याचारों के बारे में विस्तार से जान पाएँगे। 

वो भी पूरे सबूतों के साथ।

~इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत

 की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान

 बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने

 तक भागती और बसती रहीं।

~इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा

 के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं

 ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।

~ठीक इसी काल में कभी स्वच्छंद विचरण करने

 वाली भारतवर्ष की हिन्दू महिलाओं को भी 

मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के

 लिए पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई।

~महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का इतना

 घिनौना स्वरूप तो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर

1947 तक अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के 

शासनकाल में भी नहीं दिखीं। अंग्रेजों ने भारत

 को बहुत लूटा परन्तु बलात्कारियों में वे नहीं गिने जाते।

~1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्टर 

एक्शन प्लान, 1947 विभाजन के दंगों से लेकर

 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक 

 फिरउनका अपहरण हो गया। फिर वो कभी नहीं मिलीं।

~इस दौरान स्थिती ऐसी हो गयी थी कि "पाकिस्तान

 समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों" से "बलात्कार"

 किये बिना एक भी "काफिर स्त्री" वहां से वापस 

नहीं आ सकती थी।

~जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आ भी

 गयीं वो अपनी जांच करवाने से डरती थी।

~जब डॉक्टर पूछते क्यों तब ज्यादातर महिलाओं का

 एक ही जवाब होता था कि "हमपर कितने लोगों ने

 बलात्कार किये हैं ये हमें भी पता नहीं"।

~विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों 

में सड़कों पर काफिर स्त्रियों की "नग्न यात्राएं (धिंड) "

निकाली गयीं, "बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं"

~और 10 लाख से ज्यादा की संख्या में उनको

 दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।

~20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम

 बना कर अपने घरों में रखा गया।

 (देखें फिल्म "पिंजर" और पढ़ें पूरा सच्चा

 इतिहास गूगल पर)।

~इस विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले

 सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने

 वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे।

~वे समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना

, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, 

जिंदा जलाना  चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का

 बलात्कार  करने के बाद उनके "स्तनों को काटकर" 

तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।

अंत में कश्मीर की बात~
~19 जनवरी 1990~

~सारे कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट

 लगा दिया जिसमें लिखा था~ "या तो मुस्लिम

 बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या

 फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी

 औरतों को यहीं छोड़कर "

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी

 पण्डित संजय बहादुर उस मंजर को याद

 करते हुए आज भी सिहर जाते हैं।

~वह कहते हैं कि "मस्जिदों के लाउडस्पीकर" 

लगातार तीन दिन तक यही आवाज दे रहे थे

 कि यहां क्या चलेगा, "निजाम-ए-मुस्तफा", 'आजादी 

का मतलब क्या "ला इलाहा इलल्लाह",

 'कश्मीर में अगर रहना है, "अल्लाह-ओ-अकबर"

 कहना है।

~और 'असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ

 "रोअस ते बतानेव सान" जिसका मतलब था

 कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है,

 कश्मीरी पंडितों के बिना मगर कश्मीरी

 पंडित महिलाओं के साथ।

~सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त

 हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए

 लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को

 तैयार हो गए थे।

~सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया।

 जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को

 कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी 

मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।

~उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया,

 कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके

, फिर उनकी हत्या करके उनके "नग्न शरीर ‘

को पेड़ पर लटका दिया गया"।

~कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा

 जला दिया गया और बाकियों को लोहे के 

गरम सलाखों से मार दिया गया।

~कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल

 कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक 

बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या 

कर दी गयी।

~बच्चों को उनकी माँओं के सामने स्टील के तार

 से गला घोंटकर मार दिया गया।

~कश्मीरी काफिर महिलाएँ पहाड़ों की गहरी घाटियों

 और भागने का रास्ता न मिलने पर ऊंचे मकानों

 की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी।

~लेखक राहुल पंडिता उस समय 14 वर्ष के थे।

 बाहर माहौल ख़राब था। मस्जिदों से उनके

 ख़िलाफ़ नारे लग रहे थे। पीढ़ियों से उनके

 भाईचारे से रह रहे पड़ोसी ही कह रहे थे, 'मुसलमान 

बनकर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो या वादी छोड़कर भागो'।

~राहुल पंडिता के परिवार ने तीन महीने इस उम्मीद

 में काटे कि शायद माहौल सुधर जाए। राहुल आगे कहते हैं

, "कुछ लड़के जिनके साथ हम बचपन से क्रिकेट खेला

 करते थे वही हमारे घर के बाहर पंडितों के ख़ाली घरों को 

आपस में बांटने की बातें कर रहे थे और हमारी लड़कियों के

 बारे में गंदी बातें कह रहे थे। ये बातें मेरे ज़हन में अब भी ताज़ा हैं।

~1989 में कश्मीर में जिहाद के लिए गठित

जमात-ए-इस्लामी संगठन का नारा था-

 'हम सब एक, तुम भागो या मरो'।

~घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में 

सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण 

किए गए। हालात और बदतर हो गए थे।

~कुल मिलाकर हजारों की संख्या में काफिर

 महिलाओं का बलात्कार किया गया।

~आज आप जिस तरह दाँत निकालकर धरती

 के जन्नत कश्मीर घूमकर मजे लेने जाते हैं 

और वहाँ के लोगों को रोजगार देने जाते हैं।

 उसी कश्मीर की हसीन वादियों में आज भी 

सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बेटियों की बेबस कराहें

 गूंजती हैं, जिन्हें केवल काफिर होने की सजा

 मिली।

~घर, बाजार, हाट, मैदान से लेकर उन खूबसूरत 

वादियों में न जाने कितनी जुल्मों की दास्तानें दफन हैं

 जो आज तक अनकही हैं। घाटी के खाली, जले मकान

 यह चीख-चीख के बताते हैं कि रातों-रात दुनिया जल

 जाने का मतलब कोई हमसे पूछे। झेलम का बहता हुआ

 पानी उन रातों की वहशियत के गवाह हैं जिसने कभी न 

खत्म होने वाले दाग इंसानियत के दिल पर दिए।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित 

रविन्द्र कोत्रू के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा

 की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के 

उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया

 होता जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम

 हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि

 वह किसी कश्मीरी पंडित को चोट पहुंचाने की सोच पाता लेकिन 

तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने 

टेक दिए थे या उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।

~अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर "अबू बकर अल बगदादी" के 

जेहादियों को काफिर "यजीदी महिलाओं" को रस्सियों से बाँधकर

 कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा।

~पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर

 सार्वजनिक रूप से मौलवियों की टीम द्वारा धर्मपरिवर्तन कर

 निकाह कराते देखा होगा।

~बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के 

बलात्कार की हजारों मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी।

~यहाँ तक कि म्यांमार में भी एक काफिर बौद्ध महिला के बलात्कार

 और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।

~केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से

 ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के 

निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा

 इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता

 का विनाश कर दिया।

~परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को

 ही भुगतनी पड़ी.बलात्कार के रूप में

~आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ

 धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत

 के पुरुषों में भी फैलने लगी।

~जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक 

रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर 

चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा 

जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों तक का 

बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये

 भयानक रूप देखने को मिल रहा है!
  



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