गीजा का पिरामिड, पीसा की झुकी मीनार के बारे में तो बहुत सुना होगा। लेकिन इसके बारे में नहीं सुना होगा। इतना तय है
क्योंकि हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों के ऐसे अविश्वसनीय कौशल और बलिदान को हमारी आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचने से रोक रखा है।
आइये हम संसार को विश्वगुरु भारत की महान सभ्यता को दिखायें।
चित्रदुर्ग, कर्नाटक
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.#सनातन_इंजीनियरिंग
वो कहेंगे सुई भी नही बनती थी भारत में तो उनसे पूछना ये कौन बना गया?
गीज़ा और पीसा के सामने सेल्फी लेना फैशनेबल लगता है लेकिन अपने ही मंदिरों में जाना तो दूर अधिकांश भारतीय उसके निर्माण के अद्भुत आर्किटेक्चर के बारे में भी नहीं जानते..
भारतीय स्थापत्य का स्वर्णयुग... क्या फिर से नहीं लिखा जाना चाहिये?
🙏 सुचिन्द्रम मंदिर 🙏
कन्याकुमारी,तमिलनाडु
9वीं शताब्दी में बने इस मन्दिर में 1 लाख मूर्तियों की नक्काशी की गयी है.. 😲😲 इसके पिलर्स म्यूजिकल पिलर्स हैं जो संगीत के अलग-अलग सुरों को उतपन्न करते हैं 🙏
हैं न अद्भुत,अद्वितीय ❤️ चलिये शेयर कर के फेमस करिये अब 🚩
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ताजमहल की आज जो ख्याति है, उसका कारण है उस इमारत की अत्याधिक मार्केटिंग। जो कांग्रेस ने 60 साल से बखूबी किया। नहीं तो भारत में एक से बढ़कर एक हिन्दू कलाकृति है, जिसका कांग्रेस ने कभी प्रचार-प्रसार नहीं किया।
जैसे हम्पी मंदिर, जो विजयनगर साम्राज्य की सिर्फ एक बानगी है। जो अद्भुत, अद्वित्य और अप्रतीम है। ताज ताज करने का मतलब ही हिंदुस्तान के गौरव को हीन साबित करना है। यही कई दशकों से किया जा रहा है। पर अब हिन्दू गौरव जाग चुका है।
#नीचे_दिए_गए_चित्र_का_वर्णन 👇
नाम: - सूर्य मंदिर मोढेरा
निर्माता: - भीमदेव प्रथम, सोलंकी वंश
निर्माण काल: - 1026 ई०
देवता: - सूर्य देववास्तु
कला: - हिन्दू
स्थान: - मोढेरा, पाटन, गुजरात, भारत।
#जय_श्री_राम।।
#Sun_Temple,#Modhera,#Gujrat
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जब इस्लाम का जन्म भी नही हुआ, उससे पहले यह मंदिर बन गया !! -
लिंगनाथ मंदिर भुवनेश्वर (उड़ीसा)
यह मंदिर कितना पुराना है, इसका ठीक ठीक अनुमान लगाना संभव नही । माना जाता है, लिट्टी और वसा नाम के दो राक्षसों का वध माता ने यही किया था , ओर भगवान शिव के शांत करने के बाद माता का क्रोध शांत हुआ ।
इस मंदिर का वर्णन 6वीं सदी के ग्रन्थों में भी मिलता है । प्राचीन तो यह इससे भी ज़्यादा ही होगा । यह सिर्फ कुछ स्मृतियां बची है, माना जाता है की यहां पहले 7000 मंदिर थे , बाकी तो इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़ डाले, अब यही शेष बचा है ।।
इस मंदिर की बनावट नक्काशी, मूर्तिया आदि देखें, कितने जतन से बनाया था इस मंदिर को , हमारे पूर्वज कारीगरों, इंजीनियरों, राजाओ आदि ने ... की तोड़ने वाला भी तोड़ तोड़ कर थक गया, लेकिन हमारी संस्कृति, ओर धरोहर की निशानियां नही मिटा पाया ।।
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नीलकंठेश्वर_मंदिर_उदयपुर
जानना चाहते हो अजूबा किसे कहते हैं ?
इस मंदिर की वास्तुकला इस प्रकार की है कि सुबह की पहली किरण वेधशाला, मंडप और गर्भगृह के छोटे से द्वार को चीरती हुई शिवलिंग पर गिरती है। मानो सूर्य भोलेनाथ को प्रणाम कर दुनिया में प्रकाश फैलाने की अनुमति मांगता हो ।
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बादामी गुफाएं ( कर्नाटक )
हमे सिर्फ इस्लामिक स्थापत्य पढ़ाई गयी, यह देखिये हजारो वर्ष पहले पहाड़ को काटकर कैसे अद्भुत भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया है । हमने आधुनिक काल मे भी ऐसा कौई चमत्कार नही किया है।
पहाड़ो को काटना, उसी पहाड़ो की सरंचना से पिल्लर तैयार करना, उसमे फिर नक्काशी भी निकालना, उन्ही पहाड़ो से फिर मूर्तिया भी बनाना, लेकिन पहाड़ो को कोई नुकसान भी नही होना, ओर सबसे बड़ी बात, आजतक इनका जैसा बनाया था, वैसा का वैसा सुरक्षित रहना ....
यह क्या विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य नही है ???
निवेदन - हमारी संस्कृति और कला का जन जन तक प्रचार करना हमारा ही कर्तव्य है ।
बादामी गुफाएं ( कर्नाटक )
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महालक्ष्मी_स्वर्ण_मन्दिर
सोने से निर्मित इस मंदिर में करीब 15000 किलो #शुद्ध_सोने का इस्तेमाल किया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर में लगे सोने के बराबर स्वर्ण पूरे विश्व में किसी पूजा स्थल में प्रयोग नहीं हुआ है। सोने से बने इस मंदिर में धन की #देवी_लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना की जाती है।
तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित इस मंदिर को श्रीपुरम अथवा महालक्ष्मी स्वर्ण मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
वेल्लोर शहर के दक्षिण भाग में बने इस मंदिर को बनाने में 300 करोड़ से ज्यादा की लागत आई थी।मंदिर के अंदर और बाहर दोनों तरफ सोने की लगभग नौ से पंद्रह परतें बनाई गई हैं। #श्रीपुरम_मंदिर का सरोवार भी काफी प्रसिद्ध है, देश की सभी प्रमुख नदियों का पानी लाकर इस मंदिर में सर्वतीर्थम सरोवर का निर्माण किया गया है।
लगभग #100 एकड़ में फैले इस मंदिर के चारों ओर आपको हरियाली देखने को मिलेगी। इस मंदिर के अंदर जाते वक्त कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना पड़ता है। श्रीपुरम मंदिर के अंदर आप शॉर्ट पैंट या निक्कर में प्रवेश नहीं कर सकते। इसके अलावा मंदिर के अंदर मोबाइल फोन, कैमरा आदि किसी भी तरह की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ले जाना सख्त मना है
दर्शन के लिए मंदिर हर रोज सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक खुलता है। मंदिर में खासतौर पर लोगों के आकर्षण के लिए कुछ आर्टिफिशियल लाइट्स लगाई गई हैं। रात के समय लाइट्स की रोशनी में मंदिर को जगमगाता देख आप मंदिर की खूबसूरती से मोहित हो उठेंगे। मंदिर की के आसपास 24 घटें सुरक्षाबलों का कड़ा पहरा रहता है।
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1800 साल पुराना मंदिर, बहुत से रहस्य समेटे हुए है, मंदिर के अंदर एक पानी का कुंड है जो लगातार पानी को बाहर फेंकता रहता है।
मंदिर प्रकृति को दर्शाता है, जिससे मानव शरीर निर्मित है, हवा पानी जल पृथ्वी आकाश का सम्मल्लित रुप है, पानी का स्त्रोत और हवा का प्रेशर जो लगातार पानी को बाहर फेंकता रहता है मंदिर के अंदर फर्स के उपर से मुख द्वार से बाहर निकलता है, कोई भी अभी तक रहस्य का पता नहीं लगा पाया।
ऐसे अनगिनत रहस्य और हमारी संस्कृति को पुर्व की सरकारों ने हमसे छिपाये रखा , चोल वंश द्वारा निर्मित #जंबूकेश्वर_मंदिर तिरुचिरापल्ली तमिलनाडु।
हमारी इन तमाम विरासतों को कांवामीमी इतिहासकारों ने हमसे बहुत ही कुटिल और शातिर तरीके से हमसे छिपाए रखा है..
जय_सनातन
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किसी ने साजिश तो जरूर की होगी वरना हिंदुस्तान सिर्फ ताजमहल से शुरू होकर लाल किले तक खत्म नही होता ..
#भव्य_भारत_दिव्य_भारत
लुनावाला महाराष्ट्र
प्राचीन काल में भारत में मानव ही वास करते थे या खुद #ईश्वर ??
हमने आधुनिक काल मे एक भी ऐसा महल नही बनाया है, औेर इन्होंने तो दर्जनों पहाड़ खोद रखे है ।।
पहाड़ो को खोदकर बनाई गई #भाजा एवम् #कारला की गुफाएं ( लुनावाला महाराष्ट्र )
ऐसे पोस्ट को पढ़ कर खुद गर्व करें और इसे दूसरों तक भी पहुंचाएं ताकि अब कि भावी पीढ़ी भी हमारे सनातन संस्कृति को समझ सके और एक नया युग का निर्माण हो।
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हमे सिर्फ इस्लामिक स्थापत्य पढ़ाई गयी, यह देखिये हजारो वर्ष पहले पहाड़ को काटकर कैसे अद्भुत भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया है । हमने आधुनिक काल मे भी ऐसा कौई चमत्कार नही किया है।
पहाड़ो को काटना, उसी पहाड़ो की सरंचना से पिल्लर तैयार करना, उसमे फिर नक्काशी भी निकालना, उन्ही पहाड़ो से फिर मूर्तिया भी बनाना, लेकिन पहाड़ो को कोई नुकसान भी नही होना, ओर सबसे बड़ी बात, आजतक इनका जैसा बनाया था, वैसा का वैसा सुरक्षित रहना ....
यह क्या विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य नही है ???
निवेदन - हमारी संस्कृति और कला का जन जन तक प्रचार करना हमारा ही कर्तव्य है । 🙏
बादामी गुफाएं ( कर्नाटक )
C/p- guru ji
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अरुणमंदिर Bangkok,Thailand
Statue of Indra(इंद्र की मुर्ति )
इस मंदिर की वास्तुकला और शिल्पकला को एक बार ध्यानपूर्वक समझें
आपको यह सपनों की दुनिया से कम नजर नहीं आता
मुख्यत ये सुर्य एवं उनके सारथी अरुण(प्रथम किरण the rising sun ) के सम्मान में बना मंदिर है।
सनातन संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि आप इससे दूर कभी जा ही नहीं सकते है
#AncientTemple #भारतवर्ष
#पृथ्वीराजसनातन
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💎मंदिरों में सबसे विशाल कंदरिया महादेव मंदिर मूलतः शिव मंदिर है। इस मंदिर को चंदेल बंश के राजा यसोबर्मन ने सन् ई. 1025_1050 आसपास बनबाया था,इसकी लंबाई 109, चौड़ाई 60' और ऊँचाई 116' है।
💎स्थानीय मत के अनुसार इसका कंदरिया नामांकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया।ये मंदिर चतुर्भुज मंदिर के रूप भी जाना जाता है
#स्थापत्य
💎यह विशाल मंदिर खजुराहो की वास्तुकला का एक आदर्श नमूना है। यह अपने बाह्य आकार में 84समरस आकृति के छोटे- छोटे अंग तथा श्रंग शिखरों में जोड़कर बनाया, अनूठे उच्च शिखर से युक्त हे। मंदिर अपने अलंकरण एवं विशेष लय के कारण दर्शनीय है। मंदिर भव्य आकृति और अनुपातिक सुडौलता, उत्कृष्ट शिल्पसज्जा और वास्तु रचना के कारण मध्य भारतीय वास्तुकृतियों में श्रेष्ठ माना जाता है।
💎मुख्य मंडप, मंडप और महामंडप के साथ साथ इसका आधार-योजना, रुप, ऊँचाई, उठाव, अलंकरण तथा आकार शास्रीय पद्धति का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसकी विशिष्टता यह भी है कि इसकी ऊँचाई की ओर जाते हुए उत्थान श्रंग अत्यंत प्रभावशाली प्रतीत होता है। खजुराहो का यह एक मात्र मंदिर है, जिसकी जगती के दोनों पार्श्वों में और पीछे प्रक्षेपण है।
💎इसकी जगती लगभग तीन मीटर ऊँची है। इसकी धराशिला ग्रेनाईट पत्थर की है तथा इस पर रेतीले पत्थर की खार-शिलाएँ बनी हुई हैं। मंदिर भित्ति कमल पुष्प की पत्तियों से सजे हैं तथा जालय, कुंभ और बाहर को निकली पट्टिकाएँ तमाल पत्रों से सजी हुई हैं। मंदिर ऊँचे अधिस्थान पर स्थापित है, जिसपर अनेक सुसज्जित मूर्तियाँ हैं।
💎इन मूर्तियों में दो पंक्तियाँ, हाथियों, घोड़ों, योद्धाओं, शिकारियों, मदारियों, संगीतज्ञों, नर्तकों और भक्तों की मूर्तियाँ आसीन है। मंदिर की तीन पट्टियों में देवी- देवताओं, सुर सुंदरियों, मिथुनों, व्यालों और नागिनों की मूर्तियाँ हैं। मंदिर के भीतर दो मकर-तोरण है।
💎अप्सराओं की प्रतिमाएँ सुंदरता के साथ अंकित की गयी है। यहाँ की सभी मूर्तियाँ लंबी हैं तथा आकृति में संतुलित प्रतीत होती है। यहाँ नारी के कटावों का सौंदर्य स्पष्ट दिखता है।
💎तलच्छंद और ऊर्ध्वच्छंद के प्रत्येक अंगों की रचना और इसका अलंकरण अद्वितीय है। उर्ध्वच्छंद में सबसे अधिक लयबद्ध प्रक्षेपणों और रथिकाओं के सहित इसकी दांतेदार योजना उल्लेखनीय है।
#मध्यप्रदेश
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श्रीकांतेश्वर_मंदिर_कर्नाटक
मित्रों ! हमारे महादेव को समर्पित श्रीकांतेश्वर मंदिर को देखिए
भारत का प्राचीन आर्किटेक्चर दुनियाँ में सबसे अच्छा था । अगर किसी को लगता है कि मैं मिथ्या अभिमानी हूँ तो..आगे बढ़ो और चुनौती दो..मुझे विश्वास है कि मेरी उन्नत संस्कृति के उदाहरणों के तीर के आगे तुम्हारे तर्क धराशायी हो जाएंगे ।
#हर_हर_महादेव
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(किराडू मंदिर, राजस्थान)
कोई क्रेन नहीं, कोई आधुनिक उपकरण नहीं, कोई इंजीनियरिंग तकनीक नहीं, लेकिन कैसे हमारे पूर्वजों ने आधुनिक तकनीक के बिना 100% सटीकता के साथ इसे बनाया ।
क्या सच में इंजीनियरिंग तकनीक नहीं थी या मुगलों की महिमा घट जाने के डर से वामपंथी इतिहासकारों ने हमसे झूठ बोला ?
आओ हम इसका प्रचार करें ।
(किराडू मंदिर, राजस्थान)
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चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर
(🙏🏼कृपया सारे फ़ोटो देखे 🙏🏼)
*इस मंदिर को एक बार देखे बिना मृत्यु होना मतलब आप का भारत मे जन्म लेना व्यर्थ है।*
*भारत का गौरव* दुनिया का अजूबा
यह मंदिर कर्नाटक राज्य के हासन ज़िले के बेलूर नामक ऐतिहासिक स्थान पर स्थित हैं।
#यहमंदिरक़रीब900वर्षपुरानाहैं। इस मंदिर का निर्माण होयसल वंश के राजा विष्णुवर्धन द्वारा 1106 से 1117 के बीच करवाया गया था। 1104 में युद्ध जीतने की ख़ुशी में विष्णुवर्धन ने इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया जो की 1117 में पूरा हुआ।
पुराने दिनों के दौरान, यह "द्वारसमुद्र" के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है "समुद्र का द्वार"।
इस मंदिर की कई जगाह इतनी महीन शिल्पकारी है कि जिसे सामान्य आंखों से देख पाना ना मुमकिन है उसे देखने समझने के लिए मेग्नीफाइन ग्लॉस की जरूरत होती है सोचिये ये उस 10वी 11वी सदी के कारीगरों ने बनाया कैसे होगा जबकि मेग्नीफाईन ग्लास की खोज 1296 में इंग्लैंड में हुई है।
आधुनिक दुनिया मे होली की पिचकारी की खोज और पेटेंट 1896 का है पर इस मंदिर के शिल्पों में 10वी 11वी सदी में ही होली में पिचकारी का उपयोग करते हुवे शिल्प है जिन्हें हाली ही में खोजा गया है
🙏🏼
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श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर, चेन्नई, तमिलनाडु, भारत
जिस सनातन धर्म के केवल मंदिरो की नक्काशी इतनी मनमोहक हैं।
उसका इतिहास कितना सुनहरा रहा होगा ! मुझे गर्व हैं मेरी सभ्यता और संस्कृति पर
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर, चेन्नई, तमिलनाडु, भारत 🇮🇳
यह एक हिंदू मंदिर है जो भारत के चेन्नई में दिव्य त्रिमूर्ति जगन्नाथ, बलदेव और सुभद्रा को समर्पित है। समुद्र के किनारे ईस्ट कोस्ट रोड पर कन्नथुर में स्थित मंदिर जगन्नाथ मंदिर, पुरी की याद दिलाते हुए कलिंग वास्तुकला में बनाया गया है। यह शिव, गणेश, बिमला को समर्पित मंदिर हैं।
🚩जय श्री राम🚩जय जगन्नाथ 🚩
#आर्यावर्त_का_अघोर_अतीत
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पार्श्वनाथ , जैन मंदिर. ,कलकत्ता.
इन अद्भुत अलौकिक वैज्ञानिक कलाकृतियों को देख कर भी उन्हे शर्म नही आती है जो मुगलों अंग्रेजों के गुणगान करते नही थकते हैं
#आर्यावर्त_का_अघोर_अतीत
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जैन तीर्थंकर आदिनाथ का मंदिर
सोनी जी की नसियाँ, अजमेर, राजस्थान, भारत 🇮🇳
सोनी जी की नसियाँ, राजस्थान राज्य के अजमेर में स्थित एक जैन मंदिर है।
करोली के लाल पत्थरों से बना यह ख़ूबसूरत दिगंबर मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ का मंदिर है।
यह मंदिर 1864-1865 ईस्वी का बना हुआ हैं।
लाल पत्थरों से बना होने के कारण इसे 'लाल मंदिर' भी कहा जाता है।
इसमें एक स्वर्ण नगरी भी है जिसमें जैन धर्म से सम्बंधित पौराणिक दृश्य, अयोध्या नगरी, प्रयागराज के दृश्य अंकित हैं।
यह स्वर्ण नगरी अपनी बारीक कारीगिरी और पिच्चीकारी के लिये प्रसिद्ध है।
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(महाबलीपुरम, तमिलनाडु)
पूर्वजों ने एक से एक महान वास्तुकला
के स्तम्भ स्थापित किये हैं। उनकी रचना का एक एक बिंदु हमें अचंभित करता है।
" कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम आज कितने भी उन्नत हैं, हम अपने पूर्वजों के कौशल के स्तर को छू नहीं सकते "
क्या आप विश्वास करेंगे अगर मैं कहूँ की यह हाथी केवल एक पत्थर को तराश कर बनाया गया है ?
(महाबलीपुरम, तमिलनाडु)
जय सनातन
।। जय श्रीराम ।।
#आर्यावर्त_का_अघोर_अतीत
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कैलाश_मंदिर !!
कैलाश_मंदिर !! जिसे औरंगजेब ने की तोड़ने की नाकाम कोशिश
इस मंदिर के बारे मे पश्चिम के वैज्ञानिक कहते हैं कि इसे किसी एलियन सभ्यता ने बनाया होगा ,आजका मनुष्य भी ऐसे मंदिर आज भी नहीं बना सकता
सन 1682 में उस मुग़ल शासक ने 1000 मजदूरों को इकट्ठा किया और इस मंदिर को तोड़ने का काम दिया,
मजदूरों ने 1 साल तक इसे तोड़ा,
1 साल लगातार तोड़ने के बाद वो सब इसकी कुछ मूर्तियाँ ही तोड़ सके, हार कर उस मुग़ल शासक ने उन्हें वापस बुला लिया,
वो शासक था औरंगजेब, जिसकी मूर्ख सेना ये समझ बैठी थी कि ये कोई ईंट और मिट्टी से बना साधारण मंदिर है।।
लेकिन उन्हें कहाँ पता था कि ये मंदिर हमारे पूर्वजों ने धरती की सबसे कठोर चट्टान को चीरकर बनाया है।
ये वही पत्थर है जो करोड़ों साल पहले धरती के गर्भ से लावे के रूप में निकला था और बाद में ठंडा होकर जमने से, इसने पत्थर का रूप लिया
कैलास मंदिर को U आकार में उपर से नीचे काटा गया है जिसे पीछे की तरफ से 50 मीटर गहरा खोदा गया है। पर आप सोचिये इतनी कठोर और मजबूत चट्टान को किस चीज़ से काटा गया होगा?।।
हथौड़े और छेनी से??
आपको मंदिर की दीवारों पर छेनी के निशान दिख जायेंगे पर वहाँ के आध्यात्मिक गुरुओं का कहना है कि ये छेनी के निशान बाद के हैं,।।
जब पूरा मंदिर बना दिया गया ये बस किनारों को Smooth करने के लिए उपयोग की गयीं थी। इतनी कठोर बेसाल्ट चट्टान को खोद कर उसमे से इस मंदिर को बना देना कहाँ तक संभव है???
कुछ खोजकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार की जटिल संरचना का आधुनिक तकनीक की मदद से निर्माण करना आज भी असंभव है।
क्या वो लोग जिन्होंने इस मंदिर को बनाया आज से भी ज्यादा आधुनिक थे?।।
ये एक जायज सवाल है
यहाँ कुछ वैज्ञानिक आँकड़ों पर बात कर लेते हैं,।।
पुरातात्विदों का कहना है कि इस मंदिर को बनाने के लिए 400,000 टन पत्थर को काट कर हटाया गया होगा और ऐसा करने में उन्हें 18 साल का समय लगा होगा ।
तो आइये एक सरल गणित की कैलकुलेशन करते हैं
माना की इस काम को करने के लिए वहाँ काम कर रहे लोग 12 घंटे प्रतिदिन एक मशीन की तरह कार्य कर रहे होंगे जिसमें उन्हें कोई ब्रेक या रेस्ट नहीं मिलता होगा वो पूर्ण रूप से मशीन बन गये होंगे ।
तो अगर 400,000 टन पत्थर को 18 साल में हटाना है तो उन्हें हर साल 22,222 टन पत्थर हटाना होगा , जिसका मतलब हुआ 60 टन हर दिन और 5 टन हर घंटे ।
ये समय तो हुआ मात्र पत्थर को काट कर अलग करने का।।।
उस समय का क्या जो इस मंदिर की डिजाईन, नक्काशी और इसमें बनाई गयीं सैंकड़ों मूर्तियों में लगा होगा।
एक प्रश्न जो और है वो ये है कि जो पत्थर काट कर बाहर निकाला गया वो कहाँ गया?? उसका इस मंदिर के आसपास कोई ढेर नहीं मिलता।।
ना ही उस पत्थर का इस्तेमाल किसी दूसरे मंदिर को बनाने या अन्य किसी संरचना में किया गया,।।
आखिर वो गया तो गया कहाँ??
क्या आप को अभी भी लगता है कि ये कारनामा आज से हजारों वर्ष पहले मात्र छेनी और हथौड़े की मदद से अंजाम दिया गया होगा।
राष्ट्रकूट राजाओं ने वास्तुकला को चरम पर लाकर रख दिया, जैसा कि बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम(756 - 773) ने करवाया था।
यह मंदिर उस भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है जिसका मुकाबला पूरी दुनिया में आज भी कोई नहीं कर सकता।
ये उस मुग़ल शासक की बर्बरता और इस मंदिर के विरले कारीगरों की कुशलता दोनों को साथ में लिए आज भी खड़ा है और हमारे पूर्वजों के कौशल और पुरुषार्थ के सबूत देते हुए आधुनिक मानव को उसकी औकात दिखाते हुए कह रहा है कि दम है तो मुझे फिर से बनाकर दिखाओ।
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औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में भगवान शिव का मंदिर है।।।
ये औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में भगवान शिव का मंदिर है।।।
जो एक पहाड़ को काटकर बनाया गया है और इसको बनाने में 200 साल लगे हैं।
अच्छे से अच्छा धरोहर हमारे देश मे हैं कभी इनपर ध्यान दीजिए।
औरंगाबाद का कैलाश शिव मंदिर:
हम बात कर रहे हैं औरंगाबाद में स्थित भगवान शिव के इस मंदिर की।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान शिव के इस मंदिर के रहस्य के बारें में आज भी मात्र 10 से 15 प्रतिशत हिन्दू ही जानते हैं।
लेकिन औरंगाबाद स्थित कैलाश मंदिर के बारें में बोला जाता है कि इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि इसमें ईंट और पत्थरों का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
एक पहाड़ी को इस तरह से काटा गया है कि आज एक पहाड़ी ही मंदिर है।
इस मंदिर को ऊपर से नीचे बनाया गया है।
जबकि आज इमारत हम नीचे से ऊपर बनाते हैं।
आज तक विज्ञान भी कैलाश मंदिर की इस सच्चाई का पता नहीं लगा पाया है कि किस तरह से और किस तरह की मशीनों से इस शिव मंदिर का निर्माण किया गया होगा।
भारत तो दूर की बात है अमेरिका, रूस के वैज्ञानिक भी ऐसा बोलते हैं कि इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे मंदिर स्वर्ग से बना-बनाया ही उतारा गया हैं।
वेदों में बौमास्त्र नामक एक अस्त्र लिखा गया गया है जो शायद इस तरह के निर्माण को कर सकता था।
इस मंदिर के निर्माण में 40 हजार टन भारी पत्थर का निर्माण किया गया है तब जाकर 90 फीट ऊँचा मंदिर बना
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वेणुगोपाल मंदिर ताली कर्नाटक।
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भारत के वो अध्भुत मंदिर जिनका निर्माण कब्र के कई सताब्दी पहले हो चुका था और इनकी कलाकृतिया भारत से कई अधिक बेहतर थी।
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Temples in india
केदारनाथ टेंपल
Kedar Nath Temple : यह एक हिंदू टेंपल है जो कि भगवान शिव का एक मंदिर है |
यह गढ़वाल हिमालय रेंज के पास मंदाकिनी नदी के पास स्थित है
यह उत्तराखंड में आता है
इस ऊंचाई पर अक्सर मौसम बहुत भयानक होता उसी कारण
यह सिर्फ अप्रैल (हिंदी में इसे अक्षय तृतीय ) से लेकर नवंबर हिंदी में कार्तिक पूर्णिमा के बीच श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है
शीतकालीन में यानी ( winter ) में पुजारी जिन्हें विग्रहॉस कहां जाता है वह केदारनाथ मंदिर से उतर कर उखीमठ पर अगले 6 महीने तक पूजा करते हैं |
भगवान केदारनाथ को शिव का ही एक रूप कहा जाता है इसलिए उनकी वहां पूजा होती है |