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Samaas / Samas
समस्त पद / सामासिक पद
समास के नियमों से बना शब्द समस्त पद या
सामासिक शब्द कहलाता है|
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समास विग्रह
- समस्त पद के सभी पदों को अलग अलग किए
जाने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है|
जैसे -
■ ‘नील कमल’ का विग्रह ‘नीला है जो कमल’
तथा
■ ‘चौराहा’ का विग्रह ‘चौराहों का समूह’
■ राज+पुत्र → राजा का पुत्र
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पूर्वपद और उत्तरपद
समास में दो पद (शब्द) होते हैं।
■ पहले पद को पूर्वपद
और
■ दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
जैसे-
● गंगाजल → गंगा + जल
इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।
● राजपुत्र → राजा का पुत्र
इसमें राजा पूर्वपद और पुत्र उत्तरपद है।
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जिन दो मुख्य शब्दों के मेल से समास बनता है ,
उन शब्दों को खंड या अव्यय या पद कहते हैं
समस्त पद या समासिक पद का विग्रह करने पर
समस्त पद के दो पद बन जाते हैं
पूर्व पद और उत्तर पद
जैसे
घनश्याम में घन पूर्व पद है और श्याम उत्तर पद है
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● जिस खंड या पद पर अर्थ का मुख्य बल पड़ता है
उसे प्रधान पद कहते हैं
● जिस पद पर अर्थ का मुख्य बल नहीं पड़ता है उसे
गोणपद कहते हैं
■ पूर्व पद प्रधान → अव्ययीभाव
■ उत्तर पद प्रधान → तत्पुरुष , कर्मधारय व द्विगु
■ दोनों पद प्रधान → द्वंद
■ दोनों पद अप्रधान → बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ
प्रधान होता है) | |||
हिंदी में समास के 6 भेद होते हैं|
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Note
अव्यय पद
वे पद जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल
इत्यादि के कारण कोई विकार ( परिवर्तन ) उत्पत्र नहीं होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है।
उदाहरण
हिन्दी अव्यय : जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब , क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु , बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात, प्रति , आ , हर , बे , नि इत्यादि।
संस्कृत अव्यय : अद्य (आज), ह्यः (बीता हुआ कल), श्वः
(आने वाला कल), परश्वः (परसों), अत्र (यहां), तत्र (वहां), कुत्र (कहां), सर्वत्र (सब जगह), यथा (जैसे), तथा (तैसे), कथम् (कैसे) सदा (हमेशा), कदा (कब), यदा (जब), तदा (तब), अधुना (अब), कदापि (कभी भी), पुनः (फिर), च (और), न (नहीं), वा (या), अथवा (या), अपि (भी), तु (लेकिन (तो)), शीघ्रम् (जल्दी), शनैः (धीरे), धिक् (धिक्कार), विना (बिना), सह (साथ), कुतः (कहाँ से), नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण हो), आदि। | ||
पूर्वपद-
अव्यय
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उत्तर पद
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समस्त पद
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आ + मरण = आमरण ( म्रत्यु तक )
प्रतिवर्ष + हर वर्ष = प्रतिवर्ष ( हर वर्ष )
भर + पेट = भरपेट ( पेट भर )
हाथ + हाथ = हाथों-हाथ
(हाथ ही हाथ में )
यथा + संभव = यथासंभव
( जैसा संभव हो )
प्रति + दिन = प्रतिदिन
( प्रत्येक दिन )
अनु + रूप = अनुरूप ( रूप के योग्य )
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यथारूप – रूप के अनुसार
|
यथायोग्य – जितना योग्य हो
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यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
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प्रतिक्षण – प्रत्येक क्षण
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भरपूर – पूरा भरा हुआ
|
अत्यन्त – अन्त से अधिक
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रातोँरात – रात ही रात मेँ
|
अनुदिन – दिन पर दिन
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निरन्ध्र – रन्ध्र से रहित
|
आमरण – मरने तक
|
आजन्म – जन्म से लेकर
|
आजीवन – जीवन पर्यन्त
|
प्रतिशत – प्रत्येक शत (सौ) पर
|
भरपेट – पेट भरकर
|
प्रत्यक्ष – अक्षि (आँखोँ) के सामने
|
दिनोँदिन – दिन पर दिन
|
सार्थक – अर्थ सहित
|
सप्रसंग – प्रसंग के साथ
|
प्रत्युत्तर – उत्तर के बदले उत्तर
|
यथार्थ – अर्थ के अनुसार
|
आकंठ – कंठ तक
|
घर–घर – हर घर/प्रत्येक घर
|
यथाशीघ्र – जितना शीघ्र हो
|
श्रद्धापूर्वक – श्रद्धा के साथ
|
अनुरूप – जैसा रूप है वैसा
|
अकारण – बिना कारण के
|
हाथोँ हाथ – हाथ ही हाथ मेँ
|
बेधड़क – बिना धड़क के
|
प्रतिपल – हर पल
|
नीरोग – रोग रहित
|
यथाक्रम – जैसा क्रम है
|
साफ–साफ – बिल्कुल स्पष्ट
|
यथेच्छ – इच्छा के अनुसार
|
प्रतिवर्ष – प्रत्येक वर्ष
|
निर्विरोध – बिना विरोध के
|
नीरव – रव (ध्वनि) रहित
|
बेवजह – बिना वजह के
|
प्रतिबिँब – बिँब का बिँब
|
दानार्थ – दान के लिए
|
उपकूल – कूल के समीप की
|
क्रमानुसार – क्रम के अनुसार
|
कर्मानुसार – कर्म के अनुसार
|
अंतर्व्यथा – मन के अंदर की व्यथा
|
यथासंभव – जहाँ तक संभव हो
|
यथावत् – जैसा था, वैसा ही
|
यथास्थान – जो स्थान निर्धारित है
|
प्रत्युपकार – उपकार के बदले किया जाने वाला
उपकार |
मंद–मंद – मंद के बाद मंद, बहुत ही मंद
|
प्रतिलिपि – लिपि के समकक्ष लिपि
|
यावज्जीवन – जब तक जीवन रहे
|
प्रतिहिँसा – हिँसा के बदले हिँसा
|
बीचोँ–बीच – बीच के बीच मेँ
|
कुशलतापूर्वक – कुशलता के साथ
|
प्रतिनियुक्ति – नियमित नियुक्ति के बदले
नियुक्ति |
एकाएक – एक के बाद एक
|
प्रत्याशा – आशा के बदले आशा
|
प्रतिक्रिया – क्रिया से प्रेरित क्रिया
|
सकुशल – कुशलता के साथ
|
प्रतिध्वनि – ध्वनि की ध्वनि
|
सपरिवार – परिवार के साथ
|
दरअसल – असल मेँ
|
अनजाने – जाने बिना
|
अनुवंश – वंश के अनुकूल
|
पल–पल – प्रत्येक पल
|
चेहरे–चेहरे – हर चेहरे पर
|
प्रतिदिन – हर दिन
|
प्रतिक्षण – हर क्षण
|
सशक्त – शक्ति के साथ
|
दिनभर – पूरे दिन
|
निडर – बिना डर के
|
भरसक – शक्ति भर
|
सानंद – आनंद सहित
|
व्यर्थ – बिना अर्थ के
|
यथामति – मति के अनुसार
|
निर्विकार – बिना विकार के
|
अतिवृष्टि – वृष्टि की अति
|
नीरंध्र – रंध्र रहित
|
यथाविधि – जैसी विधि निर्धारित है
|
प्रतिघात – घात के बदले घात
|
अनुदान – दान की तरह दान
|
अनुगमन – गमन के पीछे गमन
|
प्रत्यारोप – आरोप के बदले आरोप
|
अभूतपूर्व – जो पूर्व मेँ नहीँ हुआ
|
आपादमस्तक – पाद (पाँव) से लेकर मस्तक तक
|
यथासमय – जो समय निर्धारित है
|
घड़ी–घड़ी – घड़ी के बाद घड़ी
|
अत्युत्तम – उत्तम से अधिक
|
अनुसार – जैसा सार है वैसा
|
निर्विवाद – बिना विवाद के
|
यथेष्ट – जितना चाहिए उतना
|
अनुकरण – करण के अनुसार करना
|
अनुसरण – सरण के बाद सरण (जाना)
|
अत्याधुनिक – आधुनिक से भी आधुनिक
|
निरामिष – बिना आमिष (माँस) के
|
घर–घर – घर ही घर
|
बेखटके – बिना खटके
|
यथासामर्थ्य – सामर्थ्य के अनुसार
|
Note ( विभिन्न समीकरण )
(1) अव्यय+अव्यय–ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, इधर-उधर,
आस-पास, जैसे-तैसे, यथा-शक्ति, यत्र-तत्र।
(2) अव्ययोँ की पुनरुक्ति– धीरे-धीरे, पास-पास,
जैसे-जैसे।
(3) संज्ञा+संज्ञा– नगर-डगर, गाँव-शहर, घर-द्वार।
(4) संज्ञाओँ की पुनरुक्ति– दिन-दिन, रात-रात,
घर-घर, गाँव-गाँव, वन-वन।
(5) संज्ञा+अव्यय– दिवसोपरान्त, क्रोध-वश।
(6) विशेषण संज्ञा– प्रतिदिवस, यथा अवसर।
(7) कृदन्त+कृदन्त– जाते-जाते, सोते-जागते।
(8) अव्यय+विशेषण– भरसक, यथासम्भव।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण:
|
समास है।
कारक चिह्न इस प्रकार हैँ –
1— कर्ता – ने
2— कर्म – को
3— करण – से (के द्वारा)
4— सम्प्रदान – के लिए
5— अपादान – से (पृथक भाव मेँ)
6— सम्बन्ध – का, की, के, रा, री, रे
7— अधिकरण – मेँ, पर, ऊपर
8— सम्बोधन – हे!, अरे! ओ!
चूँकि तत्पुरुष समास मेँ कर्ता और संबोधन
कारक–चिह्नोँ का लोप नहीँ होता अतः इसमेँ
इन दोनोँ के उदाहरण नहीँ हैँ।
अन्य कारक चिह्नोँ के आधार पर तत्पुरुष समास
के भेद नीचे दिए गए हैं
|
विग्रह
|
समस्त - पद
|
दुःख को हरने वाला
|
दुःखहर
|
गगन को चूमने वाला
|
गगनचुंबी
|
लाभ को प्रदान करने वाला
|
लाभप्रद
|
देश को गत
|
देशगत
|
परलोक को गमन
|
परलोकगमन
|
स्वर्ग को प्राप्त
|
स्वर्ग प्राप्त
|
पद को प्राप्त
|
पदप्राप्त
|
यश को प्राप्त
|
यशप्राप्त
|
चिड़िया को मारने वाला
|
चिड़ीमार
|
ग्राम को गया हुआ
|
ग्राम गत
|
रथ को चलाने वाला
|
रथ चालक
|
जेब को कतरने वाला
|
जेबकतरा
|
हाथ को गत
|
हस्तगत
|
जाति को गया हुआ
|
जातिगत
|
मुँह को तोड़ने वाला
|
मुँहतोड़
|
दुःख को हरने वाला
|
दुःखहर
|
यश को प्राप्त
|
यशप्राप्त
|
ग्राम को गत
|
ग्रामगत
|
आशा को अतीत(से परे)
|
आशातीत
|
चिड़ी को मारने वाला
|
चिड़ीमार
|
काष्ठ को फोड़ने वाला
|
कठफोड़वा
|
दिल को तोड़ने वाला
|
दिलतोड़
|
जी को तोड़ने वाला
|
जीतोड़
|
जी को भरकर
|
जीभर
|
शरण को आया हुआ
|
शरणागत
|
रोजगार को उन्मुख
|
रोजगारोन्मुख
|
सर्व को जानने वाला
|
सर्वज्ञ
|
गगन को चूमने वाला
|
गगनचुम्बी
|
चित्त को चोरने वाला
|
चित्तचोर
|
ख्याति को प्राप्त
|
ख्याति प्राप्त
|
दिन को करने वाला
|
दिनकर
|
इंद्रियोँ को जीतने वाला
|
जितेन्द्रिय
|
चक्र को धारण करने वाला
|
चक्रधर
|
धरणी (पृथ्वी) को धारण
करने वाला |
धरणीधर
|
गिरि को धारण करने वाला
|
गिरिधर
|
हल को धारण करने वाला
|
हलधर
|
मरने को आतुर
|
मरणातुर
|
काल को अतीत (परे) करके
|
कालातीत
|
वय (उम्र) को प्राप्त
|
वयप्राप्त
|
विग्रह
|
समस्त - पद
|
तुलसी द्वारा कृत
|
तुलसीकृत
|
अकाल से पीड़ित
|
अकालपीड़ित
|
श्रम से साध्य
|
श्रमसाध्य
|
कष्ट से साध्य
|
कष्टसाध्य
|
ईश्वर द्वारा दिया गया
|
ईश्वरदत्त
|
रत्न से जड़ित
|
रत्नजड़ित
|
हस्त से लिखित
|
हस्तलिखित
|
अनुभव से जन्य
|
अनुभव जन्य
|
रेखा से अंकित
|
रेखांकित
|
गुरु द्वारा दत्त
|
गुरुदत्त
|
सूर द्वारा कृत
|
सूरकृत
|
दया से आर्द्र
|
दयार्द्र
|
करुणा से पूर्ण
|
करुणापूर्ण
|
भय से आकुल
|
भयाकुल
|
रेखा से अंकित
|
रेखाअंकित
|
शोक से ग्रस्त
|
शोक ग्रस्त
|
मद से अंधा
|
मदांध
|
मन से चाहा
|
मनचाहा
|
पद से दलित
|
पद दलित
|
सूर द्वारा रचित
|
सररचित
|
मुँह से माँगा
|
मुँहमाँगा
|
मद (नशे) से मत्त
|
मदमत्त
|
रोग से आतुर
|
रोगातुर
|
भूख से मरा हुआ
|
भुखमरा
|
कपड़े से छाना हुआ
|
कपड़छान
|
स्वयं से सिद्ध
|
स्वयंसिद्ध
|
शोक से आकुल
|
शोकाकुल
|
मेघ से आच्छन्न
|
मेघाच्छन्न
|
अश्रु से पूर्ण
|
अश्रुपूर्ण
|
वचन से बद्ध
|
वचनबद्ध
|
वाक् (वाणी) से युद्ध
|
वाग्युद्ध
|
क्षुधा से आतुर
|
क्षुधातुर
|
शल्य (चीर-फाड़) से चिकित्सा
|
शल्यचिकित्सा
|
आँखोँ से देखा
|
आँखोँदेखा
|
विग्रह
|
समस्त - पद
|
देश के लिए भक्ति
|
देशभक्ति
|
गुरु के लिए दक्षिणा
|
गुरुदक्षिणा
|
भूत के लिए बलि
|
भूतबलि
|
प्रौढ़ोँ के लिए शिक्षा
|
प्रौढ़ शिक्षा
|
यज्ञ के लिए शाला
|
यज्ञशाला
|
शपथ के लिए पत्र
|
शपथपत्र
|
स्नान के लिए आगार
|
स्नानागार
|
कृष्ण के लिए अर्पण
|
कृष्णार्पण
|
युद्ध के लिए भूमि
|
युद्धभूमि
|
बलि के लिए पशु
|
बलिपशु
|
पाठ के लिए शाला
|
पाठशाला
|
रसोई के लिए घर
|
रसोईघर
|
हाथ के लिए कड़ी
|
हथकड़ी
|
विद्या के लिए आलय
|
विद्यालय
|
विद्या के लिए मंदिर
|
विद्यामंदिर
|
डाक के लिए गाड़ी
|
डाक गाड़ी
|
सभा के लिए भवन
|
सभाभवन
|
आवेदन के लिए पत्र
|
आवेदन पत्र
|
हवन के लिए सामग्री
|
हवन सामग्री
|
कैदियोँ के लिए गृह
|
कारागृह
|
परीक्षा के लिए भवन
|
परीक्षा भवन
|
सत्य के लिए आग्रह
|
सत्याग्रह
|
छात्रोँ के लिए आवास
|
छात्रावास
|
युवाओँ के लिए वाणी
|
युववाणी
|
समाचार के लिए पत्र
|
समाचार पत्र
|
वाचन के लिए आलय
|
वाचनालय
|
चिकित्सा के लिए आलय
|
चिकित्सालय
|
बंदी के लिए गृह
|
बंदीगृह
|
प्रयोग के लिए शाला
|
प्रयोगशाला
|
स्नान के लिए घर
|
स्नानघर
|
यज्ञ के लिए शाला
|
यज्ञशाला
|
गौ के लिए शाला
|
गौशाला
|
देश के लिए भक्ति
|
देशभक्ति
|
डाक के लिए गाड़ी
|
डाक गाड़ी
|
परीक्षा के लिए भवन
|
परीक्षा भवन
|
हाथ के लिए कड़ी
|
हथकड़ी
|
विग्रह
|
समस्त - पद
|
रोग से मुक्त
|
रोगमुक्त
|
लोक से भय
|
लोकभय
|
राज से द्रोह
|
राजद्रोह
|
जल से रिक्त
|
जलरिक्त
|
नरक से भय
|
नरकभय
|
देश से निष्कासन
|
देशनिष्कासन
|
दोष से मुक्त
|
दोषमुक्त
|
बंधन से मुक्त
|
बंधनमुक्त
|
जाति से भ्रष्ट
|
जातिभ्रष्ट
|
कर्तव्य से च्युत
|
कर्तव्यच्युत
|
पद से मुक्त
|
पदमुक्त
|
जन्म से अंधा
|
जन्मांध
|
देश से निकाला
|
देशनिकाला
|
काम से जी चुराने वाला
|
कामचोर
|
जन्म से रोगी
|
जन्मरोगी
|
भय से भीत
|
भयभीत
|
पद से च्युत
|
पदच्युत
|
धर्म से विमुख
|
धर्मविमुख
|
पद से आक्रान्त
|
पदाक्रान्त
|
कर्तव्य से विमुख
|
कर्तव्यविमुख
|
पथ से भ्रष्ट
|
पथभ्रष्ट
|
सेवा से मुक्त
|
सेवामुक्त
|
गुण से रहित
|
गुण रहित
|
बुद्धि से हीन
|
बुद्धिहीन
|
धन से हीन
|
धनहीन
|
भाग्य से हीन
|
भाग्यहीन
|
धन से हीन
|
धन हीन
|
पथ से भ्रष्ट
|
पथभ्रष्ट
|
पद से च्युत
|
पदच्युत
|
देश से निकाला
|
देशनिकाला
|
ऋण से मुक्त
|
ऋणमुक्त
|
गुण से हीन
|
गुणहीन
|
पाप से मुक्त
|
पापमुक्त
|
जल से हीन
|
जलहीन
|
विग्रह
|
समस्त - पद
|
देव का दास
|
देवदास
|
लाखोँ का पति (मालिक)
|
लखपति
|
करोड़ोँ का पति
|
करोड़पति
|
राष्ट्र का पति
|
राष्ट्रपति
|
सूर्य का उदय
|
सूर्योदय
|
राजा का पुत्र
|
राजपुत्र
|
जगत् का नाथ
|
जगन्नाथ
|
मंत्रियोँ की परिषद्
|
मंत्रिपरिषद्
|
राज्य की (शासन) भाषा
|
राजभाषा
|
राष्ट्र की भाषा
|
राष्ट्रभाषा
|
जमीन का दार (मालिक)
|
जमीँदार
|
भू का कम्पन
|
भूकंप
|
राम का चरित
|
रामचरित
|
दुःख का सागर
|
दुःखसागर
|
राजा का प्रासाद
|
राजप्रासाद
|
गंगा का जल
|
गंगाजल
|
जीवन का साथी
|
जीवनसाथी
|
देव की मूर्ति
|
देवमूर्ति
|
सेना का पति
|
सेनापति
|
प्रसंग के अनुकूल
|
प्रसंगानुकूल
|
भारत का वासी
|
भारतवासी
|
पर के अधीन
|
पराधीन
|
स्व (स्वयं) के अधीन
|
स्वाधीन
|
मधु की मक्खी
|
मधुमक्खी
|
भारत का रत्न
|
भारतरत्न
|
राजा का कुमार
|
राजकुमार
|
राजा की कुमारी
|
राजकुमारी
|
दशरथ का सुत
|
दशरथ सुत
|
ग्रन्थोँ की अवली
|
ग्रन्थावली
|
दीपोँ की अवली (कतार)
|
दीपावली
|
गीतोँ की अंजलि
|
गीतांजलि
|
कविता की अवली
|
कवितावली
|
पदोँ की अवली
|
पदावली
|
कर्म के अधीन
|
कर्माधीन
|
लोक का नायक
|
लोकनायक
|
रक्त का दान
|
रक्तदान
|
सत्र का अवसान
|
सत्रावसान
|
अश्व का मेध
|
अश्वमेध
|
माखन का चोर
|
माखनचोर
|
नन्द का लाल
|
नन्दलाल
|
दीनोँ का नाथ
|
दीनानाथ
|
दीनोँ (गरीबोँ) का बन्धु
|
दीनबन्धु
|
कर्म का योग
|
कर्मयोग
|
ग्राम का वासी
|
ग्रामवासी
|
दया का सागर
|
दयासागर
|
अक्ष का अंश
|
अक्षांश
|
देश का अन्तर
|
देशान्तर
|
तुला का दान
|
तुलादान
|
कन्या का दान
|
कन्यादान
|
गौ (गाय) का दान
|
गोदान
|
ग्राम का उत्थान
|
ग्रामोत्थान
|
वीर की कन्या
|
वीर कन्या
|
पुत्र की वधू
|
पुत्रवधू
|
धरती का पुत्र
|
धरतीपुत्र
|
वन का वासी
|
वनवासी
|
भूतोँ का बंगला
|
भूतबंगला
|
राजा का सिँहासन
|
राजसिंहासन
|
राजा का पुत्र
|
राजपुत्र
|
राजा की आज्ञा
|
राजाज्ञा
|
पर के आधीन
|
पराधीन
|
राजा का कुमार
|
राजकुमार
|
देश की रक्षा
|
देशरक्षा
|
शिव का आलय
|
शिवालय
|
ग्रह का स्वामी
|
गृहस्वामी
|
विद्या का सागर
|
विद्यासागर
|
विग्रह
|
समस्त - पद
|
ग्राम मेँ वास
|
ग्रामवास
|
आप पर बीती
|
आपबीती
|
शोक मेँ मग्न
|
शोकमग्न
|
जल मेँ मग्न
|
जलमग्न
|
आत्म पर निर्भर
|
आत्मनिर्भर
|
तीर्थोँ मेँ अटन (भ्रमण)
|
तीर्थाटन
|
नरोँ मेँ श्रेष्ठ
|
नरश्रेष्ठ
|
गृह मेँ प्रवेश
|
गृहप्रवेश
|
घोड़े पर सवार
|
घुड़सवार
|
वाक् मेँ पटु
|
वाक्पटु
|
धर्म मेँ रत
|
धर्मरत
|
धर्म मेँ अंधा
|
धर्माँध
|
लोक पर केन्द्रित
|
लोककेन्द्रित
|
काव्य मेँ निपुण
|
काव्यनिपुण
|
रण मेँ वीर
|
रणवीर
|
रण मेँ धीर
|
रणधीर
|
रण मेँ जीतने वाला
|
रणजीत
|
आत्मा पर विश्वास
|
आत्मविश्वास
|
वन मेँ वास
|
वनवास
|
लोक मेँ प्रिय
|
लोकप्रिय
|
नीति मेँ निपुण
|
नीतिनिपुण
|
ध्यान मेँ मग्न
|
ध्यानमग्न
|
सिर मेँ दर्द
|
सिरदर्द
|
देश मेँ अटन
|
देशाटन
|
कवियोँ मेँ पुंगव (श्रेष्ठ)
|
कविपुंगव
|
पुरुषोँ मेँ उत्तम
|
पुरुषोत्तम
|
रस मेँ डूबा हुआ गुल्ला
|
रसगुल्ला
|
दही मेँ डूबा हुआ बड़ा
|
दहीबड़ा
|
रेल (पटरी) पर चलने वाली गाड़ी
|
रेलगाड़ी
|
मुनियोँ मेँ श्रेष्ठ
|
मुनिश्रेष्ठ
|
नरोँ मेँ उत्तम
|
नरोत्तम
|
वाक् मेँ वीर
|
वाग्वीर
|
पर्वत पर आरोहण (चढ़ना)
|
पर्वतारोहण
|
कर्म मेँ निष्ठ
|
कर्मनिष्ठ
|
युद्ध मेँ स्थिर रहने वाला
|
युधिष्ठिर
|
सर्व मेँ उत्तम
|
सर्वोत्तम
|
कार्य मेँ कुशल
|
कार्यकुशल
|
दान मेँ वीर
|
दानवीर
|
कर्म मेँ वीर
|
कर्मवीर
|
कवियोँ मेँ राजा
|
कविराज
|
सत्ता पर आरुढ़
|
सत्तारुढ़
|
शरण मेँ आया हुआ
|
शरणागत
|
गज पर आरुढ़
|
गजारुढ़
|
शोक में मग्न
|
शोकमग्न
|
पुरुषों में उत्तम
|
पुरुषोत्तम
|
आप पर बीती
|
आपबीती
|
गृह में प्रवेश
|
गृहप्रवेश
|
लोक में प्रिय
|
लोकप्रिय
|
धर्म में वीर
|
धर्मवीर
|
कला में श्रेष्ठ
|
कलाश्रेष्ठ
|
आनंद में मग्न
|
आनंदमग्न
|
उपर्युक्त भेदोँ के अलावा तत्पुरुष समास के दो
उपभेद होते हैँ – |
(i) अलुक् तत्पुरुष – इसमेँ समास करने पर पूर्वपद की
विभक्ति का लोप नहीँ होता है।
जैसे—
● युधिष्ठिर—युद्धि (युद्ध मेँ) + स्थिर = ज्येष्ठ पाण्डव
● मनसिज—मनसि (मन मेँ) + ज (उत्पन्न) = कामदेव
● खेचर—खे (आकाश) + चर (विचरने वाला) = पक्षी
|
(ii) नञ् तत्पुरुष – इस समास मेँ द्वितीय पद प्रधान
होता है किन्तु प्रथम पद संस्कृत के नकारात्मक अर्थ को देने वाले ‘अ’ और ‘अन्’ उपसर्ग से युक्त होता है।
इसमेँ निषेध अर्थ मेँ ‘न’ के स्थान पर यदि बाद मेँ
व्यंजन वर्ण हो तो ‘अ’ तथा बाद मेँ स्वर हो तो ‘न’ के स्थान पर ‘अन्’ हो जाता है। |
अनाथ –
|
न (अ) नाथ
|
अन्याय –
|
न (अ) न्याय
|
अनाचार –
|
न (अन्) आचार
|
अनादर –
|
न (अन्) आदर
|
अजन्मा –
|
न जन्म लेने वाला
|
अमर –
|
न मरने वाला
|
अडिग –
|
न डिगने वाला
|
अशोच्य –
|
नहीँ है शोचनीय जो
|
अनभिज्ञ –
|
न अभिज्ञ
|
अकर्म –
|
बिना कर्म के
|
अनादर –
|
आदर से रहित
|
अधर्म –
|
धर्म से रहित
|
अनदेखा –
|
न देखा हुआ
|
अचल –
|
न चल
|
अछूत –
|
न छूत
|
अनिच्छुक –
|
न इच्छुक
|
अनाश्रित –
|
न आश्रित
|
अगोचर –
|
न गोचर
|
अनावृत –
|
न आवृत
|
नालायक –
|
नहीँ है लायक जो
|
अनन्त –
|
न अन्त
|
अनादि –
|
न आदि
|
असंभव –
|
न संभव
|
अभाव –
|
न भाव
|
अलौकिक –
|
न लौकिक
|
अनपढ़ –
|
न पढ़ा हुआ
|
निर्विवाद –
|
बिना विवाद के
|
जिस समास मेँ उत्तरपद प्रधान हो तथा पहला पद
विशेषण अथवा उपमान (जिसके द्वारा उपमा दी जाए) हो और दूसरा पद विशेष्य अथवा उपमेय (जिसके द्वारा तुलना की जाए) हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैँ। |
इस समास के दो रूप हैँ–
| |
(i) विशेषता वाचक कर्मधारय– इसमेँ प्रथम पद द्वितीय
पद की विशेषता बताता है। | |
महाराज –
|
महान् है जो राजा
|
महापुरुष –
|
महान् है जो पुरुष
|
नीलाकाश –
|
नीला है जो आकाश
|
महाकवि –
|
महान् है जो कवि
|
नीलोत्पल –
|
नील है जो उत्पल (कमल)
|
महापुरुष –
|
महान् है जो पुरुष
|
महर्षि –
|
महान् है जो ऋषि
|
महासंयोग –
|
महान् है जो संयोग
|
शुभागमन –
|
शुभ है जो आगमन
|
सज्जन –
|
सत् है जो जन
|
महात्मा –
|
महान् है जो आत्मा
|
सद्बुद्धि –
|
सत् है जो बुद्धि
|
मंदबुद्धि –
|
मंद है जिसकी बुद्धि
|
मंदाग्नि –
|
मंद है जो अग्नि
|
बहुमूल्य –
|
बहुत है जिसका मूल्य
|
पूर्णाँक –
|
पूर्ण है जो अंक
|
भ्रष्टाचार –
|
भ्रष्ट है जो आचार
|
शिष्टाचार –
|
शिष्ट है जो आचार
|
अरुणाचल –
|
अरुण है जो अचल
|
शीतोष्ण –
|
जो शीत है जो उष्ण है
|
देवर्षि –
|
देव है जो ऋषि है
|
परमात्मा –
|
परम है जो आत्मा
|
अंधविश्वास –
|
अंधा है जो विश्वास
|
कृतार्थ –
|
कृत (पूर्ण) हो गया है जिसका
अर्थ (उद्देश्य) |
दृढ़प्रतिज्ञ –
|
दृढ़ है जिसकी प्रतिज्ञा
|
राजर्षि –
|
राजा है जो ऋषि है
|
अंधकूप –
|
अंधा है जो कूप
|
कृष्ण सर्प –
|
कृष्ण (काला) है जो सर्प
|
नीलगाय –
|
नीली है जो गाय
|
नीलकमल –
|
नीला है जो कमल
|
महाजन –
|
महान् है जो जन
|
महादेव –
|
महान् है जो देव
|
श्वेताम्बर –
|
श्वेत है जो अम्बर
|
पीताम्बर –
|
पीत है जो अम्बर
|
अधपका –
|
आधा है जो पका
|
अधखिला –
|
आधा है जो खिला
|
लाल टोपी –
|
लाल है जो टोपी
|
सद्धर्म –
|
सत् है जो धर्म
|
कालीमिर्च –
|
काली है जो मिर्च
|
महाविद्यालय –
|
महान् है जो विद्यालय
|
परमानन्द –
|
परम है जो आनन्द
|
दुरात्मा –
|
दुर् (बुरी) है जो आत्मा
|
भलमानुष –
|
भला है जो मनुष्य
|
महासागर –
|
महान् है जो सागर
|
महाकाल –
|
महान् है जो काल
|
महाद्वीप –
|
महान् है जो द्वीप
|
कापुरुष –
|
कायर है जो पुरुष
|
बड़भागी –
|
बड़ा है भाग्य जिसका
|
कलमुँहा –
|
काला है मुँह जिसका
|
नकटा –
|
नाक कटा है जो
|
जवाँ मर्द –
|
जवान है जो मर्द
|
दीर्घायु –
|
दीर्घ है जिसकी आयु
|
अधमरा –
|
आधा मरा हुआ
|
निर्विवाद –
|
विवाद से निवृत्त
|
महाप्रज्ञ –
|
महान् है जिसकी प्रज्ञा
|
नलकूप –
|
नल से बना है जो कूप
|
परकटा –
|
पर हैँ कटे जिसके
|
दुमकटा –
|
दुम है कटी जिसकी
|
प्राणप्रिय –
|
प्रिय है जो प्राणोँ को
|
अल्पसंख्यक –
|
अल्प हैँ जो संख्या मेँ
|
पुच्छलतारा –
|
पूँछ है जिस तारे की
|
नवागन्तुक –
|
नया है जो आगन्तुक
|
वक्रतुण्ड –
|
वक्र (टेढ़ी) है जो तुण्ड
|
चौसिँगा –
|
चार हैँ जिसके सीँग
|
अधजला –
|
आधा है जो जला
|
अतिवृष्टि –
|
अति है जो वृष्टि
|
महारानी –
|
महान् है जो रानी
|
नराधम –
|
नर है जो अधम (पापी)
|
नवदम्पत्ति –
|
नया है जो दम्पत्ति
|
(ii) उपमान वाचक कर्मधारय– इसमेँ एक पद उपमान तथा
द्वितीय पद उपमेय होता है।
जैसे
| |
बाहुदण्ड –
|
बाहु है दण्ड समान
|
चंद्रवदन –
|
चंद्रमा के समान वदन (मुख)
|
कमलनयन –
|
कमल के समान नयन
|
मुखारविँद –
|
अरविँद रूपी मुख
|
मृगनयनी –
|
मृग के समान नयनोँ वाली
|
मीनाक्षी –
|
मीन के समान आँखोँ वाली
|
चन्द्रमुखी –
|
चन्द्रमा के समान मुख वाली
|
चन्द्रमुख –
|
चन्द्र के समान मुख
|
नरसिँह –
|
सिँह रूपी नर
|
चरणकमल –
|
कमल रूपी चरण
|
क्रोधाग्नि –
|
अग्नि के समान क्रोध
|
कुसुमकोमल –
|
कुसुम के समान कोमल
|
ग्रन्थरत्न –
|
रत्न रूपी ग्रन्थ
|
पाषाण हृदय –
|
पाषाण के समान हृदय
|
देहलता –
|
देह रूपी लता
|
कनकलता –
|
कनक के समान लता
|
करकमल –
|
कमल रूपी कर
|
वचनामृत –
|
अमृत रूपी वचन
|
अमृतवाणी –
|
अमृत रूपी वाणी
|
विद्याधन –
|
विद्या रूपी धन
|
वज्रदेह –
|
वज्र के समान देह
|
संसार सागर –
|
संसार रूपी सागर
|
एकलिंग –
|
एक ही लिँग
|
दोराहा –
|
दो राहोँ का समाहार
|
तिराहा –
|
तीन राहोँ का समाहार
|
चौराहा –
|
चार राहोँ का समाहार
|
पंचतत्त्व –
|
पाँच तत्त्वोँ का समूह
|
शताब्दी –
|
शत (सौ) अब्दोँ (वर्षोँ) का समूह
|
पंचवटी –
|
पाँच वटोँ (वृक्षोँ) का समूह
|
नवरत्न –
|
नौ रत्नोँ का समाहार
|
त्रिफला –
|
तीन फलोँ का समाहार
|
त्रिभुवन –
|
तीन भुवनोँ का समाहार
|
त्रिलोक –
|
तीन लोकोँ का समाहार
|
त्रिशूल –
|
तीन शूलोँ का समाहार
|
त्रिवेणी –
|
तीन वेणियोँ का संगम
|
त्रिवेदी –
|
तीन वेदोँ का ज्ञाता
|
द्विवेदी –
|
दो वेदोँ का ज्ञाता
|
चतुर्वेदी –
|
चार वेदोँ का ज्ञाता
|
तिबारा –
|
तीन हैँ जिसके द्वार
|
सप्ताह –
|
सात दिनोँ का समूह
|
चवन्नी –
|
चार आनोँ का समाहार
|
अठवारा –
|
आठवेँ दिन को लगने वाला बाजार
|
पंचामृत –
|
पाँच अमृतोँ का समाहार
|
त्रिलोकी –
|
तीन लोकोँ का
|
सतसई –
|
सात सई (सौ) (पदोँ) का समूह
|
एकांकी –
|
एक अंक है जिसका
|
एकतरफा –
|
एक है जो तरफ
|
इकलौता –
|
एक है जो
|
चतुर्वर्ग –
|
चार हैँ जो वर्ग
|
चतुर्भुज –
|
चार भुजाओँ वाली आकृति
|
त्रिभुज –
|
तीन भुजाओँ वाली आकृति
|
पन्सेरी –
|
पाँच सेर वाला बाट
|
द्विगु –
|
दो गायोँ का समाहार
|
चौपड़ –
|
चार फड़ोँ का समूह
|
षट्कोण –
|
छः कोण वाली बंद आकृति
|
दुपहिया –
|
दो पहियोँ वाला
|
त्रिमूर्ति –
|
तीन मूर्तियोँ का समूह
|
दशाब्दी –
|
दस वर्षोँ का समूह
|
पंचतंत्र –
|
पाँच तंत्रोँ का समूह
|
नवरात्र –
|
नौ रातोँ का समूह
|
सप्तर्षि –
|
सात ऋषियोँ का समूह
|
दुनाली –
|
दो नालोँ वाली
|
चौपाया –
|
चार पायोँ (पैरोँ) वाला
|
षट्पद –
|
छः पैरोँ वाला
|
चौमासा –
|
चार मासोँ का समाहार
|
इकतीस –
|
एक व तीस का समूह
|
सप्तसिन्धु –
|
सात सिन्धुओँ का समूह
|
त्रिकाल –
|
तीन कालोँ का समाहार
|
अष्टधातु –
|
आठ धातुओँ का समूह
|
अन्नजल
|
अन्न और जल
|
देश–विदेश
|
देश और विदेश
|
राम–लक्ष्मण
|
राम और लक्ष्मण
|
रात–दिन
|
रात और दिन
|
खट्टामीठा
|
खट्टा और मीठा
|
जला–भुना
|
जला और भुना
|
माता–पिता
|
माता और पिता
|
दूधरोटी
|
दूध और रोटी
|
पढ़ा–लिखा
|
पढ़ा और लिखा
|
हरि–हर
|
हरि और हर
|
राधाकृष्ण
|
राधा और कृष्ण
|
राधेश्याम
|
राधे और श्याम
|
सीताराम
|
सीता और राम
|
गौरीशंकर
|
गौरी और शंकर
|
अड़सठ
|
आठ और साठ
|
पच्चीस
|
पाँच और बीस
|
छात्र–छात्राएँ
|
छात्र और छात्राएँ
|
कन्द–मूल–फल
|
कन्द और मूल और फल
|
गुरु–शिष्य
|
गुरु और शिष्य
|
राग–द्वेष
|
राग या द्वेष
|
एक–दो
|
एक या दो
|
दस–बारह
|
दस या बारह
|
लाख–दो–लाख
|
लाख या दो लाख
|
पल–दो–पल
|
पल या दो पल
|
आर–पार
|
आर या पार
|
पाप–पुण्य
|
पाप या पुण्य
|
उल्टा–सीधा
|
उल्टा या सीधा
|
कर्तव्याकर्तव्य
|
कर्तव्य अथवा अकर्तव्य
|
सुख–दुख
|
सुख अथवा दुख
|
जीवन–मरण
|
जीवन अथवा मरण
|
धर्माधर्म
|
धर्म अथवा अधर्म
|
लाभ–हानि
|
लाभ अथवा हानि
|
यश–अपयश
|
यश अथवा अपयश
|
हाथ–पाँव
|
हाथ, पाँव आदि
|
नोन–तेल
|
नोन, तेल आदि
|
रुपया–पैसा
|
रुपया, पैसा आदि
|
आहार–निद्रा
|
आहार, निद्रा आदि
|
जलवायु
|
जल, वायु आदि
|
कपड़े–लत्ते
|
कपड़े, लत्ते आदि
|
बहू–बेटी
|
बहू, बेटी आदि
|
पाला–पोसा
|
पाला, पोसा आदि
|
साग–पात
|
साग, पात आदि
|
काम–काज
|
काम, काज आदि
|
खेत–खलिहान
|
खेत, खलिहान आदि
|
लूट–मार
|
लूट, मार आदि
|
पेड़–पौधे
|
पेड़, पौधे आदि
|
भला–बुरा
|
भला, बुरा आदि
|
दाल–रोटी
|
दाल, रोटी आदि
|
ऊँच–नीच
|
ऊँच, नीच आदि
|
धन–दौलत
|
धन, दौलत आदि
|
आगा–पीछा
|
आगा, पीछा आदि
|
चाय–पानी
|
चाय, पानी आदि
|
भूल–चूक
|
भूल, चूक आदि
|
फल–फूल
|
फल, फूल आदि
|
खरी–खोटी
|
खरी, खोटी आदि
|
लम्बा है उदर जिसका वह—गणेश।
यहां पर दोनों पदों ने मिलकर एक तीसरे पद पर
‘शिव’ का संकेत किया , इसलिए यह बहुव्रीहि
समास है :
अजानुबाहु –
|
जानुओँ (घुटनोँ) तक बाहुएँ हैँ
जिसकी वह—विष्णु |
अजातशत्रु –
|
नहीँ पैदा हुआ शत्रु जिसका—कोई
व्यक्ति विशेष |
वज्रपाणि –
|
वह जिसके पाणि (हाथ) मेँ वज्र
है—इन्द्र |
मकरध्वज –
|
जिसके मकर का ध्वज है
वह—कामदेव |
रतिकांत –
|
वह जो रति का कांत (पति)
है—कामदेव |
आशुतोष –
|
वह जो आशु (शीघ्र) तुष्ट हो
जाते हैँ—शिव |
पंचानन –
|
पाँच है आनन (मुँह) जिसके
वह—शिव |
वाग्देवी –
|
वह जो वाक् (भाषा) की देवी
है—सरस्वती |
युधिष्ठिर –
|
जो युद्ध मेँ स्थिर रहता है
— धर्मराज (ज्येष्ठ पाण्डव) |
षडानन –
|
वह जिसके छह आनन हैँ
—कार्तिकेय |
सप्तऋषि –
|
वे जो सात ऋषि हैँ—सात ऋषि
विशेष जिनके नाम निश्चित हैँ |
त्रिवेणी –
|
तीन वेणियोँ (नदियोँ) का
संगमस्थल—प्रयाग |
पंचवटी –
|
पाँच वटवृक्षोँ के समूह वाला स्थान
—मध्य प्रदेश मेँ स्थान विशेष |
रामायण –
|
राम का अयन (आश्रय)—वाल्मीकि
रचित काव्य |
पंचामृत –
|
पाँच प्रकार का अमृत—दूध, दही,
शक्कर, गोबर, गोमूत्र का रसायन विशेष |
षड्दर्शन –
|
षट् दर्शनोँ का समूह—छह विशिष्ट
भारतीय दर्शन–न्याय, सांख्य, द्वैत आदि |
चारपाई –
|
चार पाए होँ जिसके
—खाट |
विषधर –
|
विष को धारण करने वाला
—साँप |
अष्टाध्यायी –
|
आठ अध्यायोँ वाला
—पाणिनि कृत व्याकरण |
चक्रधर –
|
चक्र धारण करने वाला
—श्रीकृष्ण |
पतझड़ –
|
वह ऋतु जिसमेँ पत्ते झड़ते हैँ
—बसंत |
दीर्घबाहु –
|
दीर्घ हैँ बाहु जिसके
—विष्णु |
पतिव्रता –
|
एक पति का व्रत लेने वाली
—वह स्त्री |
तिरंगा –
|
तीन रंगो वाला—राष्ट्रध्वज
|
अंशुमाली –
|
अंशु है माला जिसकी—सूर्य
|
महात्मा –
|
महान् है आत्मा जिसकी—ऋषि
|
वक्रतुण्ड –
|
वक्र है तुण्ड जिसकी—गणेश
|
दिगम्बर –
|
दिशाएँ ही हैँ वस्त्र जिसके—शिव
|
घनश्याम –
|
जो घन के समान श्याम है—कृष्ण
|
प्रफुल्लकमल –
|
खिले हैँ कमल जिसमेँ—वह तालाब
|
महावीर –
|
महान् है जो वीर—हनुमान व
भगवान महावीर |
लोकनायक –
|
लोक का नायक है जो—जयप्रकाश
नारायण |
महाकाव्य –
|
महान् है जो काव्य—रामायण,
महाभारत आदि |
अनंग –
|
वह जो बिना अंग का है
—कामदेव |
एकदन्त –
|
एक दंत है जिसके—गणेश
|
नीलकण्ठ –
|
नीला है कण्ठ जिनका—शिव
|
पीताम्बर –
|
पीत (पीले) हैँ वस्त्र जिसके
—विष्णु |
कपीश्वर –
|
कपि (वानरोँ) का ईश्वर है जो
—हनुमान |
वीणापाणि –
|
वीणा है जिसके पाणि मेँ
—सरस्वती |
देवराज –
|
देवोँ का राजा है जो—इन्द्र
|
हलधर –
|
हल को धारण करने वाला
|
शशिधर –
|
शशि को धारण करने वाला
—शिव |
दशमुख –
|
दस हैँ मुख जिसके—रावण
|
चक्रपाणि –
|
चक्र है जिसके पाणि मेँ – विष्णु
|
पंचानन –
|
पाँच हैँ आनन जिसके—शिव
|
पद्मासना –
|
पद्म (कमल) है आसन जिसका
—लक्ष्मी |
मनोज –
|
मन से जन्म लेने वाला—कामदेव
|
गिरिधर –
|
गिरि को धारण करने वाला
—श्रीकृष्ण |
वसुंधरा –
|
वसु (धन, रत्न) को धारण करती है
जो—धरती |
त्रिलोचन –
|
तीन हैँ लोचन (आँखेँ) जिसके
—शिव |
वज्रांग –
|
वज्र के समान अंग हैँ जिसके
—हनुमान |
शूलपाणि –
|
शूल (त्रिशूल) है पाणि मेँ जिसके
—शिव |
चतुर्भुज –
|
चार हैँ भुजाएँ जिसकी—विष्णु
|
लम्बोदर –
|
लम्बा है उदर जिसका—गणेश
|
चन्द्रचूड़ –
|
चन्द्रमा है चूड़ (ललाट) पर जिसके
—शिव |
पुण्डरीकाक्ष –
|
पुण्डरीक (कमल) के समान अक्षि
(आँखेँ) हैँ जिसकी—विष्णु |
रघुनन्दन –
|
रघु का नन्दन है जो—राम
|
सूतपुत्र –
|
सूत (सारथी) का पुत्र है जो—कर्ण
|
चन्द्रमौलि –
|
चन्द्र है मौलि (मस्तक) पर जिसके
—शिव |
चतुरानन –
|
चार हैँ आनन (मुँह) जिसके—ब्रह्मा
|
अंजनिनन्दन –
|
अंजनि का नन्दन (पुत्र) है जो
—हनुमान |
पंकज –
|
पंक् (कीचड़) मेँ जन्म लेता है जो
—कमल |
निशाचर –
|
निशा (रात्रि) मेँ चर (विचरण)
करता है जो—राक्षस |
मीनकेतु –
|
मीन के समान केतु हैँ जिसके
—विष्णु |
नाभिज –
|
नाभि से जन्मा (उत्पन्न) है जो
—ब्रह्मा |
वीणावादिनी –
|
वीणा बजाती है जो—सरस्वती
|
नगराज –
|
नग (पहाड़ोँ) का राजा है जो—हिमालय
|
वज्रदन्ती –
|
वज्र के समान दाँत हैँ जिसके—हाथी
|
मारुतिनंदन –
|
मारुति (पवन) का नंदन है जो
—हनुमान |
शचिपति –
|
शचि का पति है जो—इन्द्र
|
वसन्तदूत –
|
वसन्त का दूत है जो—कोयल
|
गजानन –
|
गज (हाथी) जैसा मुख है जिसका
—गणेश |
गजवदन –
|
गज जैसा वदन (मुख) है जिसका
—गणेश |
ब्रह्मपुत्र –
|
ब्रह्मा का पुत्र है जो—नारद
|
भूतनाथ –
|
भूतोँ का नाथ है जो—शिव
|
षटपद –
|
छह पैर हैँ जिसके—भौँरा
|
लंकेश –
|
लंका का ईश (स्वामी) है जो—रावण
|
सिन्धुजा –
|
सिन्धु मेँ जन्मी है जो—लक्ष्मी
|
दिनकर –
|
दिन को करता है जो—सूर्य
|
के सेक्शन आदि अन्य परीक्षा से संबंधित शिक्षण दिए
गए हैं जिससे आपको तैयारी करने में और चीजों को समझने
में बहुत आसानी होगी
समास और उनके भेद
शब्द विचार
अलंकार और उनके भेद
विराम चिन्ह
छंद
चौपाई
दोहा
सोरठा
रोला
रस और उनके भेद
उपसर्ग और प्रत्यय
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