Monday 31 August 2020

Women exploitation - beginning hidden history यौन अपराध - इस्लाम

 Women exploitation - beginning hidden history

यौन अपराध" इस्लाम


इतिहास के अनुसार "यौन अपराध" इस्लाम की देन है !
यदि टाईम हो तो पढे अन्यथा खिसक ले !
         अद्भूत लेख ~बलात्कार का आरंभ~

मुझे पता है 90 % बिना पढ़े ही निकल लेंगे

आखिर भारत जैसे देवियों को पूजने वाले देश

 में बलात्कार की गन्दी मानसिकता कहाँ से आयी ~~

आखिर क्या बात है कि जब प्राचीन भारत के रामायण

, महाभारत आदि लगभग सभी हिन्दू-ग्रंथ के उल्लेखों 

में अनेकों लड़ाईयाँ लड़ी और जीती गयीं, परन्तु

 विजेता सेना द्वारा किसी भी स्त्री का बलात्कार

 होने का जिक्र नहीं है।

तब आखिर ऐसा क्या हो गया ?? कि आज के

 आधुनिक भारत में बलात्कार रोज की सामान्य

 बात बन कर रह गयी है ??

~श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की पर न ही 

उन्होंने और न उनकी सेना ने पराजित लंका की 

स्त्रियों को हाथ लगाया ।

~महाभारत में पांडवों की जीत हुयी लाखों की संख्या

 में योद्धा मारे गए। पर किसी भी पांडव सैनिक ने किसी 

भी कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ तक न लगाया ।

अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में~

220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक "डेमेट्रियस

 प्रथम" ने भारत पर आक्रमण किया। 183 ईसापूर्व

 के लगभग उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी

 राजधानी बनाया और पंजाब सहित सिन्ध पर भी राज

 किया। लेकिन उसके पूरे समयकाल में बलात्कार का

 कोई जिक्र नहीं।

~इसके बाद "युक्रेटीदस" भी भारत की ओर बढ़ा और

 कुछ भागों को जीतकर उसने "तक्षशिला" को अपनी

 राजधानी बनाया। बलात्कार का कोई जिक्र नहीं

~"डेमेट्रियस" के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें

 बौद्ध शासक "वृहद्रथ" को पराजित कर सिन्धु के पार

 पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया

 परन्तु उसके शासनकाल में भी बलात्कार का

 कोई उल्लेख नहीं मिलता।

~"सिकंदर" ने भारत पर लगभग 326-327

 .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए ।

 इसमें युद्ध जीतने के बाद भी राजा "पुरु" की बहादुरी

 से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु

 को वापस दे दिया और "बेबिलोन" वापस चला गया ।

विजेता होने के बाद भी "यूनानियों" (यवनों) की सेनाओं

 ने किसी भी भारतीय महिला के साथ बलात्कार नहीं

 किया और न ही "धर्म परिवर्तन" करवाया ।

~इसके बाद "शकों" ने भारत पर आक्रमण किया

 (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)।

 "सिन्ध" नदी के तट पर स्थित "मीननगर" 

को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात

 क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी,गंधार

,सिन्ध,मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू

 भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन

 किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार

 का कोई उल्लेख नहीं।

~इसके बाद तिब्बत के "युइशि" (यूची) कबीले की

 लड़ाकू प्रजाति "कुषाणों" ने "काबुल" और "कंधार"

 पर अपना अधिकार कायम कर लिया। जिसमें 

"कनिष्क प्रथम" (127-140ई.) नाम का सबसे 

शक्तिशाली सम्राट हुआ।जिसका राज्य "कश्मीर

 से उत्तरी सिन्ध" तथा "पेशावर से सारनाथ" के 

आगे तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे

 समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु 

इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों

 का बलात्कार किया हो ।

~इसके बाद "अफगानिस्तान" से होते हुए भारत

 तक आये "हूणों" ने 520 AD के समयकाल में भारत

 पर अधिसंख्य बड़े आक्रमण किए और यहाँ पर राज 

भी किया। ये क्रूर तो थे परन्तु बलात्कारी होने का 

कलंक इन पर भी नहीं लगा।

~इन सबके अलावा भारतीय इतिहास के हजारों

 साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये 

जिन्होंने भारत में बहुत मार काट मचाई जैसे "नेपालवंशी"

 "शक्य" आदि। पर बलात्कार शब्द भारत में तब तक

 शायद ही किसी को पता था।

अब आते हैं मध्यकालीन भारत में~
जहाँ से शुरू होता है इस्लामी आक्रमण~
और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन!

~सबसे पहले 711 ईस्वी में "मुहम्मद बिन कासिम"

 ने सिंध पर हमला करके राजा "दाहिर" को हराने के

 बाद उसकी दोनों "बेटियों" को "यौनदासियों" के

 रूप में "खलीफा" को तोहफा भेज दिया।

तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार

 बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें

 "हारे हुए राजा की बेटियों" और "साधारण भारतीय 

स्त्रियों" का "जीती हुयी इस्लामी सेना" द्वारा बुरी

 तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।

~फिर आया 1001 इस्वी में "गजनवी"

 इसके बारे में ये कहा जाता है कि इसने

 "इस्लाम को फ़ैलाने" के उद्देश्य से ही आक्रमण

 किया था।

"सोमनाथ के मंदिर" को तोड़ने के बाद इसकी

 सेना ने हजारों "काफिर औरतों" का बलात्कार किया 

फिर उनको अफगानिस्तान ले जाकर "बाजारों में 

बोलियाँ" लगाकर "जानवरों" की तरह "बेच" दिया ।

~फिर "गौरी" ने 1192 में "पृथ्वीराज चौहान" को

 हराने के बाद भारत में "इस्लाम का प्रकाश" फैलाने

 के लिए "हजारों काफिरों" को मौत के घाट उतर दिया 

और उसकी "फौज" ने "अनगिनत हिन्दू स्त्रियों" के साथ

 बलात्कार कर उनका "धर्म-परिवर्तन" करवाया।

~ये विदेशी मुस्लिम अपने साथ औरतों को

 लेकर नहीं आए थे।

~मुहम्मद बिन कासिम से लेकर सुबुक्तगीन, बख्तियार 

खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह,

 तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह,

 मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद,

 गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर

 खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, 

महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, 

अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह 

लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर,

~अपने हरम में "8000 रखैलें रखने वाला शाहजहाँ"।

~ इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर

 मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए 

"मीना बाजार" लगवाने वाला "जलालुद्दीन 

मुहम्मद अकबर"।

~मुहीउद्दीन मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक

 बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है।

 जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों

 "काफिर महिलाओं" "(माल-ए-गनीमत)" 

का बेरहमी से बलात्कार किया और "जेहाद के इनाम"

 के तौर पर कभी वस्तुओं की तरह "सिपहसालारों" में

 बांटा तो कभी बाजारों में "जानवरों की तरह

 उनकी कीमत लगायी" गई।

~ये असहाय और बेबस महिलाएं "हरमों" से लेकर

 "वेश्यालयों" तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं

 पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।

~एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम

 "आक्रमणकारी" अपने साथ "औरतों" को

 लेकर नहीं आए थे।

~वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा

 "पराजित काफिर स्त्रियों का बलात्कार" करना 

एक आम बात थी क्योंकि वो इसे "अपनी जीत

" या "जिहाद का इनाम" (माल-ए-गनीमत) मानते थे।

~केवल यही नहीं इन सुल्तानों द्वारा किये

 अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों के बारे

 में आज के किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा।

~बल्कि खुद इन्हीं सुल्तानों के साथ रहने वाले

 लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं

 और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा

 काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।

~गूगल के कुछ लिंक्स पर क्लिक करके हिन्दुओं

 और हिन्दू महिलाओं पर हुए "दिल दहला" देने वाले 

अत्याचारों के बारे में विस्तार से जान पाएँगे। 

वो भी पूरे सबूतों के साथ।

~इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत

 की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान

 बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने

 तक भागती और बसती रहीं।

~इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा

 के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं

 ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।

~ठीक इसी काल में कभी स्वच्छंद विचरण करने

 वाली भारतवर्ष की हिन्दू महिलाओं को भी 

मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के

 लिए पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई।

~महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का इतना

 घिनौना स्वरूप तो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर

1947 तक अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के 

शासनकाल में भी नहीं दिखीं। अंग्रेजों ने भारत

 को बहुत लूटा परन्तु बलात्कारियों में वे नहीं गिने जाते।

~1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्टर 

एक्शन प्लान, 1947 विभाजन के दंगों से लेकर

 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक 

 फिरउनका अपहरण हो गया। फिर वो कभी नहीं मिलीं।

~इस दौरान स्थिती ऐसी हो गयी थी कि "पाकिस्तान

 समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों" से "बलात्कार"

 किये बिना एक भी "काफिर स्त्री" वहां से वापस 

नहीं आ सकती थी।

~जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आ भी

 गयीं वो अपनी जांच करवाने से डरती थी।

~जब डॉक्टर पूछते क्यों तब ज्यादातर महिलाओं का

 एक ही जवाब होता था कि "हमपर कितने लोगों ने

 बलात्कार किये हैं ये हमें भी पता नहीं"।

~विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों 

में सड़कों पर काफिर स्त्रियों की "नग्न यात्राएं (धिंड) "

निकाली गयीं, "बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं"

~और 10 लाख से ज्यादा की संख्या में उनको

 दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।

~20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम

 बना कर अपने घरों में रखा गया।

 (देखें फिल्म "पिंजर" और पढ़ें पूरा सच्चा

 इतिहास गूगल पर)।

~इस विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले

 सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने

 वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे।

~वे समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना

, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, 

जिंदा जलाना  चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का

 बलात्कार  करने के बाद उनके "स्तनों को काटकर" 

तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।

अंत में कश्मीर की बात~
~19 जनवरी 1990~

~सारे कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट

 लगा दिया जिसमें लिखा था~ "या तो मुस्लिम

 बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या

 फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी

 औरतों को यहीं छोड़कर "

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी

 पण्डित संजय बहादुर उस मंजर को याद

 करते हुए आज भी सिहर जाते हैं।

~वह कहते हैं कि "मस्जिदों के लाउडस्पीकर" 

लगातार तीन दिन तक यही आवाज दे रहे थे

 कि यहां क्या चलेगा, "निजाम-ए-मुस्तफा", 'आजादी 

का मतलब क्या "ला इलाहा इलल्लाह",

 'कश्मीर में अगर रहना है, "अल्लाह-ओ-अकबर"

 कहना है।

~और 'असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ

 "रोअस ते बतानेव सान" जिसका मतलब था

 कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है,

 कश्मीरी पंडितों के बिना मगर कश्मीरी

 पंडित महिलाओं के साथ।

~सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त

 हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए

 लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को

 तैयार हो गए थे।

~सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया।

 जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को

 कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी 

मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।

~उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया,

 कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके

, फिर उनकी हत्या करके उनके "नग्न शरीर ‘

को पेड़ पर लटका दिया गया"।

~कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा

 जला दिया गया और बाकियों को लोहे के 

गरम सलाखों से मार दिया गया।

~कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल

 कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक 

बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या 

कर दी गयी।

~बच्चों को उनकी माँओं के सामने स्टील के तार

 से गला घोंटकर मार दिया गया।

~कश्मीरी काफिर महिलाएँ पहाड़ों की गहरी घाटियों

 और भागने का रास्ता न मिलने पर ऊंचे मकानों

 की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी।

~लेखक राहुल पंडिता उस समय 14 वर्ष के थे।

 बाहर माहौल ख़राब था। मस्जिदों से उनके

 ख़िलाफ़ नारे लग रहे थे। पीढ़ियों से उनके

 भाईचारे से रह रहे पड़ोसी ही कह रहे थे, 'मुसलमान 

बनकर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो या वादी छोड़कर भागो'।

~राहुल पंडिता के परिवार ने तीन महीने इस उम्मीद

 में काटे कि शायद माहौल सुधर जाए। राहुल आगे कहते हैं

, "कुछ लड़के जिनके साथ हम बचपन से क्रिकेट खेला

 करते थे वही हमारे घर के बाहर पंडितों के ख़ाली घरों को 

आपस में बांटने की बातें कर रहे थे और हमारी लड़कियों के

 बारे में गंदी बातें कह रहे थे। ये बातें मेरे ज़हन में अब भी ताज़ा हैं।

~1989 में कश्मीर में जिहाद के लिए गठित

जमात-ए-इस्लामी संगठन का नारा था-

 'हम सब एक, तुम भागो या मरो'।

~घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में 

सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण 

किए गए। हालात और बदतर हो गए थे।

~कुल मिलाकर हजारों की संख्या में काफिर

 महिलाओं का बलात्कार किया गया।

~आज आप जिस तरह दाँत निकालकर धरती

 के जन्नत कश्मीर घूमकर मजे लेने जाते हैं 

और वहाँ के लोगों को रोजगार देने जाते हैं।

 उसी कश्मीर की हसीन वादियों में आज भी 

सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बेटियों की बेबस कराहें

 गूंजती हैं, जिन्हें केवल काफिर होने की सजा

 मिली।

~घर, बाजार, हाट, मैदान से लेकर उन खूबसूरत 

वादियों में न जाने कितनी जुल्मों की दास्तानें दफन हैं

 जो आज तक अनकही हैं। घाटी के खाली, जले मकान

 यह चीख-चीख के बताते हैं कि रातों-रात दुनिया जल

 जाने का मतलब कोई हमसे पूछे। झेलम का बहता हुआ

 पानी उन रातों की वहशियत के गवाह हैं जिसने कभी न 

खत्म होने वाले दाग इंसानियत के दिल पर दिए।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित 

रविन्द्र कोत्रू के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा

 की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के 

उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया

 होता जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम

 हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि

 वह किसी कश्मीरी पंडित को चोट पहुंचाने की सोच पाता लेकिन 

तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने 

टेक दिए थे या उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।

~अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर "अबू बकर अल बगदादी" के 

जेहादियों को काफिर "यजीदी महिलाओं" को रस्सियों से बाँधकर

 कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा।

~पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर

 सार्वजनिक रूप से मौलवियों की टीम द्वारा धर्मपरिवर्तन कर

 निकाह कराते देखा होगा।

~बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के 

बलात्कार की हजारों मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी।

~यहाँ तक कि म्यांमार में भी एक काफिर बौद्ध महिला के बलात्कार

 और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।

~केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से

 ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के 

निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा

 इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता

 का विनाश कर दिया।

~परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को

 ही भुगतनी पड़ी.बलात्कार के रूप में

~आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ

 धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत

 के पुरुषों में भी फैलने लगी।

~जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक 

रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर 

चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा 

जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों तक का 

बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये

 भयानक रूप देखने को मिल रहा है!
  



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1992, the Ajmer Serial Gang Rape , अजमेर शरीफ चिश्ती दरगाह बलात्कार काण्ड

 अजमेर शरीफ चिश्ती दरगाह

 बलात्कार काण्ड - hidden history


अजमेर शरीफ चिश्ती दरगाह बलात्कार काण्ड
देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड का घिनोना सच 

जिसका कोर्ट ने फैसला अब सुनाया।
सन् 1992 लगभग 25 साल पहले सोफिया

 गर्ल्स स्कूल अजमेर की #लगभग_250_से_ज्यादा_

हिन्दू_लडकियों_का_रेप जिन्हें लव जिहाद/प्रेम जाल 

में फंसा कर, न केवल सामूहिक बलात्कार किया बल्कि 

एक लड़की का रेप कर उसकी फ्रेंड/भाभी/बहन आदि को 

लाने को कहा, एक पूरा रेप चेन सिस्टम बनाया, जिसमें

 पीड़ितों की न्यूड तस्वीरें लेकर उन्हें ब्लैकमेल करके

यौन शोषण किया जाता रहा !
#फारूक चिश्ती, #नफीस चिश्ती और #अनवर चिश्ती,

 इस बलात्कार रेपकांड के मुख्य आरोपी थे, 

तीनों अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

 दरगाह के खादिम (केयरटेकर) के रिश्तेदार/वंशज 

तथा_कांग्रेस_यूथ_लीडर_भी ! फारूक चिश्ती

 ने सोफिया गर्ल्स स्कूल की 1 हिन्दू लड़की को 

प्रेमजाल में फंसा कर एक दिन फार्म हाउस पर

 ले जा कर सामूहिकबलात्कार करके, उसकी 

न्यूड तस्वीरें लीं और तस्वीरो से ब्लैकमेल कर 

उस लड़की की सहेलियों को भी लाने को कहा, 


एक के बाद एक लड़की के साथ पहले वाली लड़की

 की तरह फार्म हाउस पर ले जाना बलात्कार

 करना न्यूड तस्वीरें लेना, ब्लैकमेल कर उसकी

 भी बहन/सहेलियों को फार्म हाउस परलाने को

 कहना और उन लड़कियों के साथ भी यही 

घृणित कृत्य करना इस चेन सिस्टम में लगभग

 250 से ज्यादा लडकियों के साथ भी वही

 शर्मनाक कृत्य किया !


उस जमाने में आज की तरह डिजिटल कैमरे नही थे। 

रील वाले थे। रील धुलने जिस स्टूडियो में गयी वह 

भी चिश्ती के दोस्त और मुसलमानसमुदाय का ही था।

 उसने भी एक्स्ट्रा कॉपी निकाल लड़कियों का शोषण

 किया। ये भी कहा जाता है कि स्कूल की इन लड़कियों

 के साथ रेप करने में नेता, सरकारी अधिकारी भी 

शामिल थे ! आगे चलकर ब्लैकमैलिंग में और भी

 लोग जुड़ते गये । आखिरी में कुल 18 ब्लैकमेलर्स हो

 गये। बलात्कार करनेवाले इनसे तीन गुने। इन लोगों

 में लैब के मालिक के साथ-साथ नेगटिव से फोटोज डेवेलप

 करने वाला टेकनिशियन भी था । यह ब्लैकमेलर्स स्वयं 

तो बलात्कार करते ही, अपने नजदीकी अन्य लोगों को

 भी "ओब्लाइज" करते


इसका खुलासा हुआ तो हंगामा हो गया । इसे भारत का 

अब तक का सबसे बडा सेक्स स्कैंडलमाना गया ।

 इस केस ने बड़ी-बड़ी कोंट्रोवर्सीज की आग को हवा दी ।

 जो भी लड़ने के लिए आगे आता, उसे धमका कर बैठा 

दिया जाता । अधिकारियों ने , कम्युनल टेंशन न हो जाये,

  इसका हवाला दे कर आरोपियों को बचाया। अजमेर शरीफ 

दरगाह के खादिम(केयरटेकर) चिश्ती परिवार का खौफ 

इतना था, जिन लड़कियोंकी फोटोज खींची गई थीं, उनमें 

से कईयों ने सुसाइड कर लिया । एक समय अंतराल 

में 6-7 लड़कियां  ने आत्महत्या की । न सोसाइटी 

आगे आ रही थी, न उनके परिवार वाले। उस समय

 की 'मोमबत्ती गैंग' भी लड़कियों की बजाय आरोपियों

को सपोर्ट कर रही थी । डिप्रेस्ड होकर इन लड़कियों ने

 आत्महत्या जैसा कदम उठाया । एक ही स्कूल की 

लड़कियों का एक साथ सुसाइड करना अजीब सा था।


सब लड़कियां नाबालिग और 10वी, 12वी में पढने वाली 

मासूम किशोरियां । आश्चर्य की बात यह कि रेप की गई 

लड़कियों में आईएएस, आईपीएस की बेटियां भी थीं। 

ये सब किया गया अश्लील फोटो खींच कर। पहले एक लड़की,

 फिर दूसरी और ऐसेद्वारा लूटी जा रही थी तब वे कहाँ थे ?

 किसकी मन्नत पूरी कर रहे थे ? ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

 की दरगाह पर मन्नतें मांगने वालों को विचार करना चाहिए

 कि कहीं वे वहां जा कर पाप तो नहीं कर रहे ?



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Rama Khandwala hidden history रमा_खंडवाला: सिर्फ एक टूर गाइड नहीं, वह नेताजी के साथ सेकंड लेफ्टिनेंट भी थी



रमा_खंडवाला: सिर्फ एक टूर गाइड नहीं, वह नेताजी

 के साथ सेकंड लेफ्टिनेंट भी थी -hidden history



रमा_खंडवाला: सिर्फ एक टूर गाइड नहीं,

 वह नेताजी के साथ सेकंड लेफ्टिनेंट भी थी

आपने अगर शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा अभिनीत 

"जब हैरी मेट सेजल" देखी होगी तो उसमें एक टूर गाइड की

 भूमिका में एक वृद्धा को एक छोटे से,  मगर यादगार 

रोल में भी देखा होगा.

दरअसल यह 94-वर्षीय रमा खंडवाला थीं. वह मुंबई की 

 नियमित टूरिस्ट गाइड रही हैं. यह काम उन्होंने अब से

 लगभग पचास वर्ष पूर्व नेताजी सुभास चन्द्र बोस की

 आजाद हिन्द फ़ौज से क्रियाशीलता खत्म होने के बाद

 आजीविका के लिए करना शुरू किया था. वह १७-वर्ष 

की आयु में नेताजी की सेना की रानी लक्ष्मी बाई 

बटालियन में एक सिपाही के रूप में भर्ती हुई थीं और

 अपनी निष्ठा, समर्पण और जूनून से सेकंड लेफ्टिनें

ट के पद तक जा पहुंची.

अभी मुंबई के गिरगांव क्षेत्र में अपने एक कमरे के छोटे

 से फ्लैट में रहने वाली रमा का जन्म रंगून के एक 

सम्पन्न मेहता परिवार में हुआ था. रमा को इस भर्ती

 के लिए किसी और ने नहीं उसकी अपनी माँ ने प्रेरित 

किया था जो स्वयं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रानी 

लक्ष्मी बाई बटालियन की भर्ती इंचार्ज की उनका

 मानना था कि अंग्रेजों को इस उपनिवेश से भगाने

 के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बेहतर कोई

 विकल्प नहीं था.


रमा का नेताजी से पहला सामना अचानक तब हुआ जब

 वह प्रशिक्षण केंद्र के इलाके की देख रहे करते हुए एक 

खाई  में गिरकर घायल हो गई. यहाँ शत्रु पक्ष की सेना ने भयंकर 

गोलाबारी की थी. आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया

. वहां सुभाष चंद्र बोस मौजूद थे. वह यह देखकर विस्मित हो गए 

कि एक कम उम्र की लड़की जिसके पैरों से कई जगह से लगातार

 खून बह रहा था, वह सामान्य रूप से अपनी मरहम-पट्टी कराए

ने का इंतजार कर रही थी. उसकी आंखों में कोई आँसू  नहीं थे

. उन्होंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा,

“यह  तो एक शुरुआत भर है. ..एक छोटी-सी दुर्घटना थी. अभी

 बहुत बड़ी लड़ाइयों के लिए कमर कसनी है. देश की आजादी 

के जूनून में रहना है तो हिम्मत बनाये रखो. तुम जैसी 

लड़कियों के जूनून से ही हम,हमारा भारत देश आजाद हो

 कर रहेगा.”

रमा की आँखों में हिम्मत और ख़ुशी के आँसू निकल आए.

 वह जल्दी ही स्वस्थ होकर फिर से अपनी बटालियन के 

कामों में जुट गई. उसने जल्दी ही निशानेबाजी, घुड़सवारी

 और सैन्य बल में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने वाले सब

 गुणों को सीख लिया था. उसका जूनून उसे किसी काम में

 आगे बढ़ने के लिए मदद करता. उसकी लगन के कारण ही

 रमा को जल्दी ही सिपाही से सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर

 प्रोन्नत कर दिया गया.

रमा का कहना है कि अभी भी जब वह किसी असहज

 स्थिति में फंस जाती है तो नेताजी के शब्द “आगे बढ़!”

 उसके कानों में इस तरह से गूँज जाते हैं कि वह अपनी

 मंजिल पर पहुँच ही जाती है.

रमा बताती हैं कि,

“युवा अवस्था में जीवन के वैभव और सारी सुख

-सुविधाओं को छोड़कर संघर्ष का पथ चुनना बहुत

 कठिन फैसला होता है. मैं भी आरंभिक दिनों में

 इतनी परेशान रहती थी कि अकेले में दहाड़ मार

र रोया करती. पर धीरे-धीरे समझ में आ गया. फिर,

 जब नेताजी से स्वयं मुलाकात हुई तो उसके बाद

 तो फिर कभी पीछे मुड़कर देखा ही नहीं. आरम्भिक

 दो महीनों मुझे जमीन पर सोना पड़ा. सादा भोजन

 मिलता था और अनथक काम वो भी बिना किसी 

आराम के करना बहुत कष्टकर था. मैंने मित्र भी बना

 कुछ भी असहज नहीं रहा.”

रमा की तैनाती एक नर्स के रूप में हुई जिस जिम्मेदारी

 को भी उसने बखूबी निभाया.  उसके लिए अनुशासन

समय का महत्त्व, काम के प्रति निष्ठा और जूनून--

 बस इन्हीं शब्दों की जगह रह गई थी. पहले उसे प्लाटून

 कमांडर बनाया गया और फिर सेकंड लेफ्टिनेंट.

जब आजाद हिन्द फ़ौज को ब्रिटिश सेना ने कब्जे में ले लिया

 तो रमा भी गिरफ्तार हुई. उसे बर्मा में ही नजरबंद कर दिया

 गया. सौभाग्य से जल्दी ही देश आजाद हो गया. तब वह मुंबई

 चली आई. उसका विवाह हो गया था. आजीविका के लिए पति

 का साथ देने का निश्चय किया. पहले एक निजी कंपनी में

 सेक्रेटरी का काम किया, फिर टूर गाइड बनी.

तब से अब तक वह सैलानियों को पर्यटन के रास्ते

 दिखाती रही है और तमाम किस्से सुनाया करती है.

 एक बार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उन्हें

 राजनीतिक धारा में भाग लेने का आमन्त्रण भी 

दिया था, पर तब वह हवाई दुर्घटना में नेताजी की

 मृत्यु के समाचार से इतनी विचलित हो गई थी 

कि उसने राजनीति से दूर रहना ही उचित समझा.

बमुश्किल दो साल पहले ही उसने टूर गाइड के काम

 को विदा कहा है, पर अभी भी वह पूरी तरह स्वस्थ

 और मजाकिया है. कहती हैं,

“उम्र के कारण नहीं छोड़ा,  इसलिए छोड़ा है कि नई

 पीढी के लोगों को रास्ते मिलें. मेरी पारी तो खत्म हुई.”

उनके एक बेटी है. पति की मृत्यु सन १९८२ में हो गई थी

. सन २०१७ में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनको बेस्ट

 टूरिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया था. उनके जीवन पर

 एक वृत्त फिल्म भी बनी है, और एक किताब ‘जय हिन्द’

 भी प्रकाशित हुई है.


नमन आपको. 

००००






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