Friday, 28 February 2020

संत-ज्ञान - sant gyan-real worship-Inspirational Story सच्ची आस्था क्या है , भगवान की पूजा कैसे करें




संत-ज्ञान -    Inspirational Story
सच्ची आस्था क्या है  , भगवान की पूजा कैसे करें


एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें...बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते...*

*जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे...*

*एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी...संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई...*
*संत...मुझे लगता है कि आप मेरी ही उम्मीद कर रहे थे...*
*पिता...नहीं, आप कौन हैं...*

*संत ने अपना परिचय दिया...और फिर कहा...मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था...*

*पिता...ओह ये बात...खाली कुर्सी...आप...आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे...*

*संत को ये सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाज़ा बंद कर दिया...*

*पिता...दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने किसी को नहीं बताया...अपनी बेटी को भी नहीं...पूरी ज़िंदगी,

मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है...मंदिर जाता था, पुजारी के श्लोक सुनता...वो सिर के ऊपर से गुज़र जाते....कुछ पल्ले नहीं पड़ता था...मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया…

लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला...उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है....उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो...फिर विश्वास करो कि वहां भगवान खुद ही विराजमान हैं...अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो, जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो...मैंने ऐसा करके देखा...मुझे बहुत अच्छा लगा...फिर तो मैं रोज़ दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा...लेकिन ये ध्यान रखता कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले...अगर वो देख लेती तो उसका ही नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता या वो फिर मुझे साइकाइट्रिस्ट के पास ले जाती...*

*ये सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की...सिर पर हाथ रखा और* *भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा...संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था...इसलिए विदा लेकर चले गए..*

*दो दिन बाद बेटी का संत को फोन आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद मृत्यु हो गई थी, जिस दिन वो आप से मिले थे...*

*संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई...*

*बेटी ने जवाब दिया...नहीं, मैं जब घर से काम पर जा रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया...मेरा माथा प्यार से चूमा...ये सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी...जब मैं वापस आई तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे...लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज़ भी देखी...वो ऐसी* *मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाया हो...संत जी, वो क्या था...*

*ये सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले...बड़ी मुश्किल से बोल पाए...काश, मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊं...*

*किन साँसों का मैं एतबार करूँ जो अंत में मेरा साथ छोड जाऐंगी..!!*

*किस धन का मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरे प्राणों को बचा ही नहीं पाएगा..!!*

*किस तन पे मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरी आत्मा का बोझ भी नहीं उठा पाएगा..!!*

*भगवान की अदालत में वकालत नहीं होती...*
*और यदि सजा हो जाये तो जमानत नहीं होती....*




परम सत्य प्रेम भाव - प्रेम का वास्तविक रूप- real love - short story

परम सत्य प्रेम भाव प्रेम का वास्तविक रूप real love - short story




जहां बैठावै तित ही बैठूं, बेचैं तो बिक जाऊं।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार-बार बलि जाऊं।
जहां बैठावै तित ही बैठूं...

मीरा कहती है: अब तो वह जहां आज्ञा कर देता है वहीं। उसकी आज्ञा--बस मेरा जीवन है। जहां बिठा देता है वहां बैठ जाती हूं। जहां से उठा देता है वहां से उठ जाती हूं। अब मेरी अपने तरफ से कोई विचार और निर्णय की व्यवस्था नहीं रही। अब वह बात समाप्त हो गई है।

यही समर्पण-भाव है: जहां बिठा दे! और जिसने यह कला सीख ली, उसे इस जगत में फिर कोई अड़चन नहीं है। उसे कष्ट आते ही नहीं। कष्ट आते ही इसलिए हैं कि तुम उससे राजी नहीं होते। तुम्हारे भीतर वासना सरकती रहती है...कि मुझे ऐसी जगह बिठाओ, मुझे ऐसा बनाओ। और अगर वैसे तुम नहीं बन पाते तो नाराजगी पकड़ती है। नाराजगी पकड़ती है तो परमात्मा से संबंध टूट जाता है। क्रोध पकड़ता है, तो संबंध टूट जाता है।

एक आदमी ने मुझ से आकर कहा कि मेरा लड़का बीमार था और मैंने जाकर प्रार्थना की। हनुमानजी का भक्त था। और मैंने समय भी दे दिया उनको, अल्टीमेटम दे दिया।


किसी फैक्टरी में काम करता था तो हड़ताली शब्द सीख गया होगा: अल्टीमेटम!

अल्टीमेटम दे दिया हनुमानजी को, कि अगर पंद्रह दिन के भीतर लड़का ठीक नहीं हुआ तो बस समझ लेना, फिर मुझे पक्का हो जाएगा कि कोई भगवान इत्यादि नहीं है। सब बकवास है।

लड़का ठीक हो गया तो वह मेरे पास आया कि हनुमानजी ने मेरी लाज रख ली। मैंने कहा: तुम्हारी रखी लाज कि अपनी रखी? अल्टीमेटम तुमने दिया था कि हनुमानजी ने दिया था?

और मैंने कहा: अब दुबारा मत देना अल्टीमेटम, नहीं तो उनकी लाज बार-बार वे न रख पाएंगे। यह तो संयोग की बात कि लड़का बच गया। अब दुबारा भूल कर मत करना, नहीं तो नास्तिक हो जाओगे।

यह तुम्हारी आस्तिकता बहुत कमजोर है। लड़का मर जाता तो? तो लड़का नहीं मरता, हनुमानजी मरते। तो लड़के की अरथी नहीं निकलती, हनुमानजी की अरथी निकलती। अब यह भूल कर तुम दुबारा मत करना।

उसने कहा: आप यह क्या कहते हैं? मुझे तो एक कुंजी हाथ लग गई।
तो मैंने कहा: तुम्हारी मर्जी। जल्दी ही तुम पाओगे कि झंझट में पड़े।

और दो महीने बाद वह आया।

उसने कहा: आप ठीक कहते थे। सब श्रद्धा, आस्था नष्ट हो गई। मेरे बड़े लड़के की नौकरी नहीं लग रही थी, मैं अल्टीमेटम दे आया। पंद्रह दिन निकल गए, कुछ नहीं हुआ।

फिर मैंने कहा कि चलो पंद्रह दिन और दो। वे पंद्रह दिन भी निकल गए, फिर भी कुछ नहीं हुआ। अब मुझे अश्रद्धा पैदा हो रही है।

मैंने कहा: भई पंद्रह दिन और दे। अब तू झंझट में तो पड़ेगा ही। क्योंकि अब तेरी एक वासना है; वह अगर परमात्मा पूरी करे तो उनका होना न होना, इसी पर निर्भर है।

यह कोई श्रद्धा थोड़े ही है; यह सुविधा है। यह तो तुम परमात्मा का भी उपयोग करने लगे।
नहीं, उठा ले परमात्मा तो भी राजी हो जाना। जैसा रखे वैसे से राजी होना। अपनी कोई शर्त ही न हो।

एक डा.शुक्ल थे । उसकी पत्नी चल बसी। उनका नाम मीरा था। अब वे दुखी हैं; बेचैन हैं।

स्वभावतः उन्होंने बहुत लगाव से अपनी पत्नी को रखा था, उनका बड़ा मोह था। अब पत्नी चली गई तो अब वे बिलकुल दीवाने हैं। अब वे कहते हैं: मैं अकेला कैसे रहूं? कोई बच्चा भी नहीं है; घर सूना है।
और वर्षों से दोनों साथ थे; अब बड़ी बेचैनी है, बड़ी तड़पन है। स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि परमात्मा की मर्जी थी, तो इसमें भी कुछ लाभ ही होगा; कुछ कल्याण ही होगा।

कौन जाने परमात्मा ने इसीलिए मीरा को उठा लिया कि डा. अब चौंको, कब तक मीरा से उलझे रहोगे! अब गोपाल की सुध लो!...नहीं तो वे बिलकुल छाया बन गए थे। उन्हें लग रहा था कि सब ठीक हो गया है; इससे अन्यथा और क्या चाहिए। शायद इसीलिए मीरा को हटा लिया गया, ताकि यह जो प्रेम क्षणभंगुर में लग गया था, यह शाश्वत की तरफ उठे।

भक्त ऐसा ही सोचेगा। भक्त सदा मार्ग खोज लेगा कि प्रभु ने चाहा है तो कुछ अर्थ होगा। अगर प्रेमी को छीन लिया है तो इसीलिए छीना है कि अब एक नये प्रेम की शुरुआत हो; एक नये प्रेम का जन्म हो।

देह तो गई। देह से प्रेम किया था, वह टूट गया; अब अदेही से प्रेम करो।

अब ऐसे से प्रेम करो, जो कभी नहीं मरेगा। मरने वालों से तो बहुत प्रेम किया जन्मों-जन्मों में, और हर बार तकलीफ हुई; हर बार वही बेचैनी। यह कोई डाक्टर को पहली दफे थोड़े हो गई है; कितनी-कितनी बार नहीं हुई होगी!

चौंको! जागो! सजग हो जाओ! अब एक नये प्रेम की शुरुआत करो। एक नया प्रेम--जो शाश्वत से है; जिसकी कोई मृत्यु नहीं होती।

मेरी उनकी प्रीत पुराणी, उन बिन पल न रहाऊं।
जहां बैठावे तित ही बैठूं, बेचैं तो बिक जाऊं।

और यह भाव होना चाहिए कि बेच दे तो बिकने को राजी; ना-नूच जरा भी नहीं। नहीं उठेगी ही नहीं। बेच दे तो बिकने को राजी।

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--03)





shivling - शिवलिंग- की महत्वता अध्यात्म - शिवलिंग के बारे में

शिवलिंग : की महत्वता अध्यात्म ,  शिवलिंग के बारे में


शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई।

उसमें आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है।

और आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह भी छिपा है। और जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आप में ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है।

और फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना ही आनंद बढ़ता जाता है।

*हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है।*


शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की- यह अनूठी घटना है।

जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा।

और देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं।

उसके कुछ कारण हैं।

उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं।

अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि *जिस दिन परममिलन घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है।*

आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है।

और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता।

अगर आप बायोलॉजिस्ट से पूछें आज, वे कहते हैं- हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है।

वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है।

होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधे-आधे आप होना ही चाहिए।
अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते।
सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते।

लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है।

आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं- *आप अर्धनारीश्वर हैं।*




बायोलॉजी ने तो अब खोजा है, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में आज से पचास हजार साल पहले इस धारणा को स्थापित कर दिया।

यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर।

*क्योंकि जब योगी अपने भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं। और मुझमें दोनों मिल रहे हैं।*

मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है।

और उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; एक वर्तुल पूरा हो गया है।

मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है।

और अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है।

उन दोनों में एक मिलन चल रहा है।

शिव की जगह-जगह पूजा हो रही है, लेकिन पूजा की बात नहीं है।

शिवत्व उपलब्धि की बात है।

वह जो शिवलिंग तुमने देखा है बाहर मंदिरों में, वृक्षों के नीचे, तुमने कभी ख्याल नहीं किया, उसका आकार ज्योति का आकार है।

जैसे दीये की ज्योति का आकार होता है।
शिवलिंग अंतर्ज्योति का प्रतीक है।

जब तुम्हारे भीतर का दीया जलेगा तो ऐसी ही ज्योति प्रगट होती है, ऐसी ही शुभ्र!

यही रूप होता है उसका।

और ज्योति बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है।
और धीरे धीरे ज्योतिर्मय व्यक्ति के चारों तरफ एक आभामंडल होता है;

उस आभामंडल की आकृति भी अंडाकार होती है।

रहस्यवादियों ने तो इस सत्य  को सदियों पहले जान लिया था।

लेकिन इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे। लेकिन अभी रूस में  एक बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग हो रहा है किरलियान फोटोग्राफी।



मनुष्य के आसपास जो ऊर्जा का मंडल होता है,
अब उसके चित्र लिये जा सकते हैं। इतनी सूक्ष्म फिल्में बनाई जा चुकी हैं, जिनसे न केवल तुम्हारी देह का चित्र बन जाता है, बल्कि देह के आसपास जो विद्युत प्रगट होती है, उसका भी चित्र बन जाता है। और किरलियान चकित हुआ है, क्योंकि जैसे -जैसे व्यक्ति शांत होकर बैठता है,

वैसे – वैसे उसके आसपास का जो विद्युत मंडल है,
उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है।

उसको तो शिवलिंग का कोई पता नहीं है, लेकिन उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है।

शांत व्यक्ति जब बैठता है - ध्यान तो उसके आसपास की ऊर्जा अंडाकार हो जाता है।

अशांत व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा अंडाकार नहीं होती, खंडित होती है, टुकड़े -टुकड़े होती है। उसमें कोई संतुलन नहीं होता। एक हिस्सा छोटा- कुरूप होती है।

शिवलिंग ध्यान का प्रतीक है। वह ध्यान की आखिरी गहरी अवस्था का प्रतीक है। और जिसने ध्यान जाना हो, उसके ही भीतर गोरख जैसा ज्ञान पैदा होता है।

संतों की परंपरा में गोरख का बड़ा मूल्य है। क्योंकि गोरख ने जितनी  ध्यान को पाने की विधिया दी है उतनी किसी ने नहीं दी हैं।

गोरख ने जितने द्वार ध्यान के खोले, किसी ने नहीं खोले।
गोरख ने इतने द्वार खोले ध्यान के कि , गोरख के नाम
से एक शब्द भीतर चल पड़ा है- गोरखधंधा!

गोरख ने इतने द्वार खोले  कि लोगों को लगा कि यह
तो उलझन की बात हो गयी। गोरख ने एक- आध द्वार नहीं खोला, अनंत द्वार खोल दिये! गोरख ने इतनी बातें कह दीं, जितनी किसी ने कभी नहीं कही थीं।

बुद्ध ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, विपस्सना; बस पर्याप्त।

महावीर ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, शुक्ल ध्यान; बस पर्याप्त।

पतंजलि ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, निर्विकल्प समाधि। बस पर्याप्त।

गोरख ने परमात्मा के मंदिर के जितने संभव द्वार हो सकते हैं, सब द्वारों की चाबिया दी हैं। लोग तो उलझन में पड़ गये, बिबूचन में पड़ गये, इसलिए गोरखधंधा शब्द बना लिया।

जब भी कोई बिबूचन में पड़ जाता है , तो वह कहता है बड़े गोरखधंधे में पड़ा हूं।

तुम्हें भूल ही गया है कि गोरख शब्द कहां से आता है;
गोरखनाथ से आता है। गोरखनाथ अद्भुत व्यक्ति हैं।

उनकी गणना उन थोड़े -से लोगों में होनी  चाहिए-कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पतंजलि, गोरख…  बस।

इन थोड़े – से लोगों में ही उनकी गिनती हो सकती है।
वे उन परम शिखरों में से एक हैं।
source
* ओशो *

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