Friday, 28 February 2020

shivling - शिवलिंग- की महत्वता अध्यात्म - शिवलिंग के बारे में

शिवलिंग : की महत्वता अध्यात्म ,  शिवलिंग के बारे में


शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई।

उसमें आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है।

और आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह भी छिपा है। और जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आप में ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है।

और फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना ही आनंद बढ़ता जाता है।

*हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है।*


शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की- यह अनूठी घटना है।

जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा।

और देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं।

उसके कुछ कारण हैं।

उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं।

अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि *जिस दिन परममिलन घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है।*

आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है।

और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता।

अगर आप बायोलॉजिस्ट से पूछें आज, वे कहते हैं- हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है।

वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है।

होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधे-आधे आप होना ही चाहिए।
अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते।
सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते।

लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है।

आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं- *आप अर्धनारीश्वर हैं।*




बायोलॉजी ने तो अब खोजा है, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में आज से पचास हजार साल पहले इस धारणा को स्थापित कर दिया।

यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर।

*क्योंकि जब योगी अपने भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं। और मुझमें दोनों मिल रहे हैं।*

मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है।

और उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; एक वर्तुल पूरा हो गया है।

मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है।

और अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है।

उन दोनों में एक मिलन चल रहा है।

शिव की जगह-जगह पूजा हो रही है, लेकिन पूजा की बात नहीं है।

शिवत्व उपलब्धि की बात है।

वह जो शिवलिंग तुमने देखा है बाहर मंदिरों में, वृक्षों के नीचे, तुमने कभी ख्याल नहीं किया, उसका आकार ज्योति का आकार है।

जैसे दीये की ज्योति का आकार होता है।
शिवलिंग अंतर्ज्योति का प्रतीक है।

जब तुम्हारे भीतर का दीया जलेगा तो ऐसी ही ज्योति प्रगट होती है, ऐसी ही शुभ्र!

यही रूप होता है उसका।

और ज्योति बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है।
और धीरे धीरे ज्योतिर्मय व्यक्ति के चारों तरफ एक आभामंडल होता है;

उस आभामंडल की आकृति भी अंडाकार होती है।

रहस्यवादियों ने तो इस सत्य  को सदियों पहले जान लिया था।

लेकिन इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे। लेकिन अभी रूस में  एक बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग हो रहा है किरलियान फोटोग्राफी।



मनुष्य के आसपास जो ऊर्जा का मंडल होता है,
अब उसके चित्र लिये जा सकते हैं। इतनी सूक्ष्म फिल्में बनाई जा चुकी हैं, जिनसे न केवल तुम्हारी देह का चित्र बन जाता है, बल्कि देह के आसपास जो विद्युत प्रगट होती है, उसका भी चित्र बन जाता है। और किरलियान चकित हुआ है, क्योंकि जैसे -जैसे व्यक्ति शांत होकर बैठता है,

वैसे – वैसे उसके आसपास का जो विद्युत मंडल है,
उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है।

उसको तो शिवलिंग का कोई पता नहीं है, लेकिन उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है।

शांत व्यक्ति जब बैठता है - ध्यान तो उसके आसपास की ऊर्जा अंडाकार हो जाता है।

अशांत व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा अंडाकार नहीं होती, खंडित होती है, टुकड़े -टुकड़े होती है। उसमें कोई संतुलन नहीं होता। एक हिस्सा छोटा- कुरूप होती है।

शिवलिंग ध्यान का प्रतीक है। वह ध्यान की आखिरी गहरी अवस्था का प्रतीक है। और जिसने ध्यान जाना हो, उसके ही भीतर गोरख जैसा ज्ञान पैदा होता है।

संतों की परंपरा में गोरख का बड़ा मूल्य है। क्योंकि गोरख ने जितनी  ध्यान को पाने की विधिया दी है उतनी किसी ने नहीं दी हैं।

गोरख ने जितने द्वार ध्यान के खोले, किसी ने नहीं खोले।
गोरख ने इतने द्वार खोले ध्यान के कि , गोरख के नाम
से एक शब्द भीतर चल पड़ा है- गोरखधंधा!

गोरख ने इतने द्वार खोले  कि लोगों को लगा कि यह
तो उलझन की बात हो गयी। गोरख ने एक- आध द्वार नहीं खोला, अनंत द्वार खोल दिये! गोरख ने इतनी बातें कह दीं, जितनी किसी ने कभी नहीं कही थीं।

बुद्ध ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, विपस्सना; बस पर्याप्त।

महावीर ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, शुक्ल ध्यान; बस पर्याप्त।

पतंजलि ने ध्यान की एक प्रक्रिया दी है, निर्विकल्प समाधि। बस पर्याप्त।

गोरख ने परमात्मा के मंदिर के जितने संभव द्वार हो सकते हैं, सब द्वारों की चाबिया दी हैं। लोग तो उलझन में पड़ गये, बिबूचन में पड़ गये, इसलिए गोरखधंधा शब्द बना लिया।

जब भी कोई बिबूचन में पड़ जाता है , तो वह कहता है बड़े गोरखधंधे में पड़ा हूं।

तुम्हें भूल ही गया है कि गोरख शब्द कहां से आता है;
गोरखनाथ से आता है। गोरखनाथ अद्भुत व्यक्ति हैं।

उनकी गणना उन थोड़े -से लोगों में होनी  चाहिए-कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पतंजलि, गोरख…  बस।

इन थोड़े – से लोगों में ही उनकी गिनती हो सकती है।
वे उन परम शिखरों में से एक हैं।
source
* ओशो *



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