भारतीय दंड संहिता 1860
(Indian panel 1860)
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IPC की महत्वपूर्ण धाराएं
धारा 1
संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार
धारा 2
भारत के भीतर किए गए अपराधों का दंड
धारा 3 भारत से परे किए गए किंतु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दंड
धारा 8 लिंग
धारा 10 पुरुष एवं स्त्री
धारा 11 व्यक्ति
धारा 16 भारत सरकार
धारा 17 सरकार
धारा 19 न्यायाधीश
धारा 20 न्यायालय
धारा 21 लोकसेवक
धारा 22 जंगम संपत्ति
धारा 24 बेईमानी से
धारा 25 कपट पूर्वक
धारा 40 अपराध
धारा 44 छती
धारा 45 जीवन
धारा 46 मृत्यु
धारा 47 जीवन जंतु
धारा 48 जलयान
धारा 49 वर्ष मास
धारा 50 धारा
धारा 51 शपथ
धारा 52 सद्भाव पूर्वक
धारा 52 का (क) संश्रय
धारा 53 दंड यानी पनिशमेंट
धारा 54 मृत्यु दंड आदेश को लघु करण
धारा 55 आजीवन कारावास के दंडआदेश का लघु करण
धारा 80 विधि पूर्ण कार्य करने में दुर्घटना
धारा 82 7 वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य
धारा 83 7 वर्ष से ऊपर किंतु 12 वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य
धारा 84 विकतचित् व्यक्ति का कार्य
धारा 107 किसी बात का दुष्प्रेरण
धारा 108 दुष्ट प्रेरक
धारा 120 (क) - अपराधिक षड्यंत्र की परिभाषा
धारा 120 क (ख) अपराधिक षड्यंत्र का दंड
धारा 121 भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना और युद्ध करने का प्रयत्न करना और युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना
धारा 124 का (क) राजद्रोह
धारा 141 विधि विरुद्ध जमाव
धारा 142 विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होना
धारा 143 दंड
धारा 146 बलवा करना
धारा 147 बलवा करने के लिए दंड
धारा 148 घातक आयुध से सजजीत होकर बलवा करना
धारा 159 दंगा
धारा160 दंगा करने के लिए दंड
धारा 171 का (क) रिश्वत
धारा 171 का (ड) रिश्वत के लिए दंड
धारा 191 मिथ्या साथ देना
धारा 230 सिक्का की परिभाषा भारतीय सिक्का
धारा 231 सिक्के का कूट करण
धारा 232 भारतीय सिक्के का कूट करण
धारा 264 तोलने के लिए खोटे उपकरणों का कपट पूर्वक उपयोग
धारा 265 खोटे बाद या माफ का कपट पूर्वक उपयोग
धारा 266 खोटे बाट या मां को कब्जे में रखना
धारा 267 खोटे बाट व माफ को बनाना या बेचना
धारा 268 लोक न्यूसेंस
धारा 269 उपेक्षा पूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकट पूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभव हो
धारा 279 लोक मार्ग पर उतावलापन से वाहन चलाना यह हाकन
धारा 283 लोक मार्गयान परिवहन पथ में संकट या बाधा
धारा 284 विषैले पदार्थ के संबंध में उपेक्षतापूर्ण आचरण
धारा 285 अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में उपेक्षा पूर्ण आचरण
धारा 286 विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षा पूर्ण आचरण
धारा 289 जीव जंतु के संबंध में उपेक्षा पूर्ण आचरण
धारा 292 में अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय आदि
धारा 293 तरुण व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं का विक्रय ईटीसी
धारा 294 अश्लील कार्य और गाने
धारा 294 काका लॉटरी कार्यालय रखना
धारा 295 किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना
धारा 295 का (क) विदेश पूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हो
धारा 296 धार्मिक जमाव में विघ्न करना
धारा 297 कब्रिस्तान आदि में अतिचार करना
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दंड प्रक्रिया संहिता 1973
(Criminal Procedure Code)
धारा 1 संक्षिप्त नाम विस्तार तथा प्रारंभ
धारा 2 परिभाषाएं जमानती अपराध
धारा 4 भारतीय दंड संहिता और अन्य विधियों के अधीन अपराधों का विचार
धारा 6 दंड न्यायालयों के वर्ग
धारा 8 महानगर क्षेत्र (Metropolitan Area)
धारा 9 सेशन न्यायालय (Setion Court)
धारा 10 सहायक सेशन न्यायाधीशों का अधीनस्थ होना
धारा 1 मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आदि
धारा 11 न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय
धारा 13 विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट
धारा 14 न्यायिक मजिस्ट्रेट की स्थानीय अधिकारिता
धारा 15 मजिस्ट्रेट ओं का अधीनस्थ होना
धारा 20 कार्यपालक मजिस्ट्रेट
धारा 21 विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट
धारा 24 लोक अभियोजन
धारा 25 सहायक लोक अभियोजन
धारा 26 न्यायालय जिनके द्वारा अपराध विचार नहीं है
धारा 27 किशोरों के मामलों में अधिकारिता धारा 37 जनता कब मजिस्ट्रेट और पुलिस की सहायता करेगी
धारा 39 कुछ अपराधियों की इत्तिला का जनता द्वारा दिया जाना
धारा 41 पुलिस वारंट के बिना कब गिरफ्तार कर सकेंगे
धारा 41 का का पुलिस अधिकारी के समक्ष हाजिर होने की सूचना
धारा 42 का घ गिरफ्तारी किए गए व्यक्ति का पूछताछ के दौरान अधिवक्ता से मिलने का अधिकार
धारा 42 नाम और निवास बताने से इनकार करने पर गिरफ्तारी
धारा 43 प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया
धारा 44 मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी
धारा 45 सशस्त्र बलों के सदस्यों का गिरफ्तारी से संरक्षण
धारा 46 गिरफ्तारी कैसे की जाएगी
धारा 50 गिरफ्तारी किए गए व्यक्ति को गिरफ्तार की के आधारों और जमानत के अधिकार की इत्तिला दी
धारा 53 पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर चिकित्सा व्यवसाई द्वारा अभी टी की परीक्षा
धारा 53 का का बलातसंघ के अपराधी व्यक्ति की चिकित्सा व्यवसाई द्वारा परीक्षा
धारा 54 गिरफ्तार व्यक्ति की चिकित्सा अधिकारी द्वारा परीक्षा
धारा 54 काका गिरफ्तार व्यक्ति की शिनाख्त
धारा 57 गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का 24 घंटे से अधिक अनिरुद्ध न किया जाना
धारा 64 जब सामान किए गए व्यक्ति ना मिल सके तो तमिल
धारा 70 गिरफ्तारी के वारंट का प्रारूप और अवधि
धारा 81 उस मजिस्ट्रेट द्वारा प्रक्रिया जिसके समक्ष ऐसे गिरफ्तार किया गया व्यक्ति लाया
धारा 82 फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा के लिए उद्घोषणा
धारा 83 फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की
धारा 84 कुर्की के बारे में दावे और आपत्तियां
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धारा 2 का (ढ)
अपराध (Offense) - CPC की धारा 2 की ढा मैं शब्द अपराध को परिभाषित किया गया है इसके अनुसार अपराध से अभिप्राय ऐसे किसी कार्य या नी एक्ट या लोग यानी ओमिशन से है
1 जो ततसमय नवरात्र किसी विधि द्वारा दंडनीय बना दिया गया हो एवं
2 जिसके बारे में पशु अतिचार आदि 1871 की धारा 20 के अंतर्गत परिषाद किया जा सकता है
" ऐसा कार्य करना जो विधि द्वारा निषिद्ध इस है अथवा ऐसा किसी कार्य को करने से विमुख रहना जिसे करना विधिक दायित्व है अपराध है "
उदाहरण = विधि किसी व्यक्ति पर हमला अथवा आक्रमण करने की अनुमति नहीं देती फिर भी यदि कोई व्यक्ति ऐसा हम लाया आक्रमण करता है तो उसका यकृत अपराध की कोठी में आएगा
उत्तर अपराधों की प्रकृति के अनुसार इसे दो भागों में बांटा गया है
संज्ञेय अपराध (Cognizable) अपराधों का यह वर्गीकरण उनकी गंभीर एवं सम्मान प्रकृति के आधार पर किया गया है ऐसे अपराध को गंभीर एवं संगीन प्रकृति के होते हैं संज्ञेय अपराध समझे जाते हैं एवं जो सामान प्रकृति के होते हैं वह असंज्ञेय अपराध समझे जाते हैं
संज्ञेय अपराध (Cognizable) सहिंता की धारा 2 के गा के अनुसार संज्ञेय अपराध एवं मामलों में अभिप्राय ऐसे अपराध एवं मामलों से है जिनमें पुलिस एवं अधिकारी
1 प्रथम अनुसूची के अनुसार
2 या तत्सम प्रवृत्ति किसी विधि के अनुसार
वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है
असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable)
सहिंता की धारा 2 के ठा के अनुसार असंज्ञेय अपराध एवं मामलों से अभिप्राय ऐसे अपराध एवं मामलों से हैं जिन्हें पुलिस अधिकारी को वारंट के बिना गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं होता
इस प्रकार संज्ञेय मामलों में पुलिस बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है जबकि असम के मामलों में बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता मामलों में बिना वारंट गिरफ्तार करने का एकमात्र कारण यह है कि यह अपराध गंभीर एवं संगीत प्रकृति के होते हैं अतः अभियुक्त कहीं बचकर भाग ना जाए एवं अपराध के प्रमाणों को नष्ट कर दे पुलिस ऐसे अपराध की सूचना मिलते ही बिना किसी वारंट के अभियुक्त को गिरफ्तार कर अन्वेषण प्रारंभ कर देती है
संज्ञेय एवं असंज्ञेय अपराधों में अंतर
संज्ञेय अपराध में संज्ञेय अपराध गंभीर एवं संगीन प्रकृति के होते हैं
असंज्ञेय अपराध में असंज्ञेय अपराध समान प्रकृति के होते हैं
संगे अपराधों में पुलिस अभियुक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है
असंज्ञेय के अपराधों में असम के अपराध में पुलिस अभियुक्त को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है
संज्ञेय यह मामलों में पुलिस अधिकारी बिना किसी आदेश के अन्वेषण प्रारंभ कर सकता है
असंज्ञेय मामलों में बिना आदेश के जांच नहीं कर सकती
संज्ञेय मामलों में कार्यवाही करने के लिए परिवाद की आवश्यकता नहीं होती है
असंज्ञेय के मामलों में कार्यवाही का प्रारंभ परिवाद यानी कंप्लेंट से होता है
परिवाद यानी कंप्लेंट क्या है ? इसके आवश्यक लक्षण बताइए ?
(What is complaint ? What is its assential)
उत्तर = परिवाद - परिवाद किसी न्यायिक कार्यवाही का प्रथम चरण है परिवाद प्रस्तुत होने पर न्यायिक कार्यवाही का प्रारंभ होता है
सहिंता की धारा 2 के (घ) में परिवार की परिभाषा इस प्रकार दी गई है -
परिवाद से अभिप्राय इस संहिता के अंतर्गत कार्यवाही किए जाने की दृष्टि से लिखित या मौखिक रूप से किसी मजिस्ट्रेट से किया गया व प्रथम कथन है कि जब किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है चाहे वह व्यक्ति ज्ञात हो या अज्ञात लेकिन अंतर्गत पुलिस रिपोर्ट सम्मिलित नहीं है ।
म्युनिसिपल बोर्ड मिर्जापुर वर्सेस रेजिडेंट इंजीनियर मिर्जापुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी 1971 की ला.ज. -
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक प्रकरण में परिषद की परिभाषा इस प्रकार की है " परिवार से अभिप्राय से लिखित या मौखिक दोष रोपण है से है जो मजिस्ट्रेट के समक्ष कारवाही के लिए प्रस्तुत किया जाता है "
समानता पुलिस रिपोर्ट को परिवाद नहीं माना जाता लेकिन यदि किसी मामले में अन्वेषण के पश्चात किसी संगे अपराध का किया जाना प्रकट होता है तो ऐसी दशा में पुलिस अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट "परिवाद और पुलिस अधिकारी को प्रतिवादी समझा जाए"
पुलिस रिपोर्ट कब परिवाद में परिवर्तित हो जाती है -
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 के (घ) के स्पष्टीकरण के अनुसार किसी ऐसे मामले में जो अन्वेषण के पश्चात किसी संगे अपराध का कार्य किया जाना होता है या प्रकट करता है पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट के द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गई है परिवादी समझा जाता है
परिवाद के आवश्यक लक्षण
1- परिवाद मौखिक अथवा लिखित किसी भी रूप में हो सकता है
2- किसी भी शिकायत को तब तक परिवाद नहीं माना जाता जब तक कि वह ऐसा कोई अपराध घटित नहीं करती जो विधि द्वारा दंडनीय हो
3- परिवाद मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाता है ना कि पुलिस अधिकारी के समक्ष
4- परिवाद का मुख्य उद्देश्य मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किया जाना है जिसके समक्ष प्रस्तुत किया गया है
5- परिवार संबंधी कार्यवाही संबंधित संहिता में उपबंधित रीती से की जानी चाहिए
6- पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट को परिवाद नहीं माना जाता उसे परिवार उसी अवस्था में माना जाता है जबकि अन्वेषण के पश्चात संगे अपराध का घोषित होना प्रकट करती है
Note - विचारण
संहिता में विचारण शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है सामान्यतया विचारण में से अभिप्राय उन सभी कार्यवाही से है जिनमें किसी अभियुक्त को दोष सिद्धि या दोष युक्त करने के लिए न्यायालय सशक्त हो
धारा 2 का (छ)
जांच (Enquiry) - सहिंता की धारा 2 की छ के अनुसार जांच से अभिप्राय विचारों से भिन्न उस प्रत्येक जांच से हैं जो इस संहिता के अंतर्गत किसी मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाए
धारा 2 का (ज)
अन्वेषण (Investigation) - सहिंता की धारा 2 के झा के अनुसार अन्वेषण के अंतर्गत वे सभी कार्यवाही या आती हैं जो साक्ष्य एकत्रित करने के लिए किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या मजिस्ट्रेट से भिन्न ऐसे किसी व्यक्ति के द्वारा की जाती है जो मजिस्ट्रेट द्वारा इस प्रयोजन के लिए प्राधिकृत किया जाता है
इस प्रकार अन्वेषण के अंतर्गत हुए सभी कार्यवाही या आती हैं जो
A) पुलिस अधिकारी द्वारा की जातीहै
B) मजिस्ट्रेट से भिन्न ऐसे व्यक्ति के द्वारा की जाती हैं जो मजिस्ट्रेट द्वारा इस प्रयोजन के लिए प्राधिकृत किया जाता है
C) जो इस संहिता के अधीन की जाती है
D) जिनका उद्देश्य साक्ष्य एकत्र करना होता है
अन्वेषण अधिकारी अन्वेषण के दौरान मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अभियुक्त से भौतिक नमूने यानी (Physical Samples) आवाज के नमूने यानी (Voice Samples) आदिल नहीं ले सकता
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गिरफ्तारी के समय हथकड़ी का प्रयोग आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए हथकड़ी का प्रयोग करते समय गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का हैसियत को ध्यान में रखा जाना अपेक्षित है एक मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार किए जाने उसे हथकड़ी लगाने एवं उसके साथ बल प्रयोग किए जाने की को SC द्वारा अनुचित माना गया है
धारा - 57
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक विरुद्ध ना रखा जाना -
स्टेट बनाम आर. ए. चौधरी (AIR 1955 AllD)
सहिंता की धारा 57 गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर न्यायालय के समक्ष पेश किए जाने का निर्देश देती है यदि किसी अभियुक्त को 24 घंटे से अधिक समय अवधि के लिए अभिरक्षा में विरोध किया जाना आवश्यक प्रतीत हो तो इसके लिए मजिस्ट्रेट का विशेष आदेश प्राप्त करना होगा लेकिन ऐसा आदेश भी 15 दिनों से अधिक का नहीं हो सकेगा
स्टेट बनाम कनकडू AIR 1954 हैदराबाद - 85
इन 24 घंटों में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक पहुंचने में लगा आवश्यक समय सम्मिलित नहीं है
यह एक संवैधानिक व्यवस्था है जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 में किया गया है
धारा - 50
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों एवं जमानत के अधिकार से अवगत कराया जाना -
1) जहां किसी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार किया गया हो वहां उसे गिरफ्तारी के कारणों से तुरंत अवगत किया जाएगा
2) यदि गिरफ्तार किया जाने वाला व्यक्ति जमानती अपराध का अभियुक्त हो तो उसे यह जानकारी दी जाएगी कि वह जमानत पर छोड़े जाने का अधिकारी है और प्रतिभूतियों की व्यवस्था करें
धारा 55 का (क) / धारा 8 का (क)
दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम 2008 द्वारा सहिंता में 2 नई धाराएं 55 का (क) एवं 60 का (क) अंत स्थापित की गई हैं धाराओं में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं
अभीयुक्त की देखभाल का कर्तव्य -
धारा 55 के (क) में यह प्रावधान किया गया है कि
अभियुक्ति को अभिरक्षा में रखने वाला व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह अभियुक्ति के स्वास्थ्य और सुरक्षा की युक्ति युक्त देखभाल करें
ऐसी अभिरक्षा पुलिस अभिरक्षा( Police Costody) अथवा न्यायिक अभिरक्षा (Judicial Custody) भी हो सकती है
धारा 60 का (क)
धारा 60 का काम है यह बताया गया है कि गिरफ्तारी किस प्रकार की जाएगी इसके अनुसार गिरफ्तारी निम्नानुसार की जा सकेगी अथवा नहीं -
A) इस संहिता में उपबंधो के अनुसार
B) ततसमय प्रवृति किसी अन्य विधि के उपबंधो के अनुसार
अभिप्राय हुआ कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी केवल विभिन्न आसार की जा सकेगी अन्यथा नहीं
धारा 77
धारा 77 के अनुसार गिरफ्तारी का वारंट भारत के किसी भी स्थान में निष्पादित किया जा सकता है
हाजिर होने की विवश करने के लिए आदेसिकाएं
न्याय का यह एक आवश्यक सिद्धांत है कि न्यायालय को किसी भी प्रश्न का न्याय निर्णयन बिना ऐसे पक्षकार को सुनवाई का अवसर दिए और न्यायालय के समक्ष अपने गवाह प्रस्तुत किए नहीं करना चाहिए जो उस न्याय निर्णयन में प्रभावित अथवा बाध्य होता हो
प्राकृतिक न्याय का भी यही सिद्धांत है
अर्थात
1- वाद के पक्षकारों को सुनवाई का युक्ति युक्त अवसर दिया जाना चाहिए
2- यदि वे अपनी ओर से गवाह प्रस्तुत करना चाहें तो उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि किसी भी मामले की सुनवाई के दौरान उसमें के पछकारों एवं उसके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले गवाहों का न्यायालय में उपस्थित रहना आवश्यक है न्यायालय में ऐसे व्यक्तियों की उपस्थिति को
बाधय करने के लिए जन संसाधनों का प्रयोग किया जाता है वह समन (Summuns) एवं वारंट (Warrant) कहलाते हैं
समन का अर्थ
समन एक ऐसा आदेश होता है जो किसी व्यक्ति को एक निश्चित तिथि समय एवं स्थान पर उपस्थित होने के लिए दिया जाता है
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार -
सामान एक ऐसी आदेश का है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की न्यायालय में उपस्थिति की अपेक्षा की जाती है
सामान में निम्नलिखित दो बातों को सम्मिलित किया जाता है
समय स्थान एवं तिथि
अपराध की प्रकृति
सामान का प्रारूप धारा - 61
संहिता की धारा 61 के अनुसार समन के लिए निम्नांकित बातें आवश्यक है -
1) सामान लिखित होना चाहिए
2) यह दो प्रतियों में होना चाहिए - सामान दो प्रतियों में तैयार किया जाना चाहिए क्योंकि इसकी एक प्रति उस व्यक्ति को दी जाती है जिस पर समान तालमेल किया जाता है
3) यह हस्ताक्षरित होना चाहिए - समय पर पठित सील अधिकारी या उच्च न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट किसी अधिकारी के हस्ताक्षर होना चाहिए
4) उस पर न्यायालय की मुद्रा अंकित की जानी चाहिए - प्रत्येक सामान पर उच्च न्यायालय की मुद्रा अंकित की जानी चाहिए जिससे उसे जारी किया है इस प्रकार समन न्यायालय में उपस्थिति का एक सहज साधारण एवं प्रथम माध्यम है
वारंट (Warrant)
जानकी प्रसाद ILR 8 Alld 293 - कतिपय वादों को छोड़कर यह एक सामान्य नियम है कि किसी भी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता अतः जब कोई किसी व्यक्ति को वारंट पर गिरफ्तार करता है तो उसके पास उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने का वारंट होना चाहिए
वारंट से अभिप्राय
गिरफ्तारी का वारंट वारंट ऑफ फॉरेस्ट एक ऐसा उपदेश है जो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है वारंट जारी करते समय न्यायालय बड़ी सावधानी बरतना है क्योंकि गिरफ्तारी का वारंट किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाप्त अथवा प्रतिबंधित करता है
वारंट के प्रकार
गिरफ्तारी के वारंट दो प्रकार के होते हैं
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