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हिंदी कविता
गुरू नानक देव जी से संबंधित हिंदी कविताएं
Hindi Poems on Guru Nanak Dev Ji
1. गुरु नानक-मैथिलीशरण गुप्तमिल सकता है किसी जाति को
आत्मबोध से ही चैतन्य ;
नानक-सा उद्बोधक पाकर
हुआ पंचनद पुनरपि धन्य ।
साधे सिख गुरुओं ने अपने
दोनों लोक सहज-सज्ञान;
वर्त्तमान के साथ सुधी जन
करते हैं भावी का ध्यान ।
हुआ उचित ही वेदीकुल में
प्रथम प्रतिष्टित गुरु का वंश;
निश्चय नानक में विशेष था
उसी अकाल पुरुष का अंश;
सार्थक था 'कल्याण' जनक वह,
हुआ तभी तो यह गुरुलाभ;
'तृप्ता' हुई वस्तुत: जननी
पाकर ऐसा धन अमिताभ ।
पन्द्रहसौ छब्बीस विक्रमी
संवत् का वह कातिक मास,
जन्म समय है गुरु नानक का,-
जो है प्रकृत परिष्कृति-वास ।
जन-तनु-तृप्ति-हेतु धरती ने
दिया इक्षुरस युत बहु धान्य;
मनस्तृप्ति कर सुत माता ने
प्रकट किया यह विदित वदान्य ।
पाने लगा निरन्तर वय के
साथ बोध भी वह मतिमंत;
संवेदन आरंभ और है
आतम-निवेदन जिसका अन्त ।
आत्मबोध पाकर नानक को
रहता कैसे पर का भान ?
तृप्ति लाभ करते वे बहुधा
देकर सन्त जनों को दान ।
खेत चरे जाते थे उनके,
गाते थे वे हर्ष समेत-
"भर भर पेट चुगो री चिड़ियो,
हरि की चिड़ियां, हरि के खेत !''
वे गृहस्थ होकर त्यागी थे
न थे समोह न थे निस्नेह;
दो पुत्रों के मिष प्रकटे थे
उनके दोंनों भाव सदेह ।
तयागी था श्रीचन्द्र सहज ही
और संग्रही लक्ष्मीदास;
यों संसार-सिद्धि युत क्रम से
सफल हुआ उनका सन्यास ।
हुआ उदासी - मत - प्रवर्तक
मूल पुरुष श्रीचन्द्र स्टीक,
बढ़ते हैं सपूत गौरव से
आप बनाकर बनाकर अपनी लीक।
पैतृक धन का अवलम्बन तो
लेते हैं कापुरुष - कपूत,
भोगी भुजबल की विभूतियाँ
था वह लक्ष्मीदास सपूत ।
पुत्रवान होकर भी गुरु ने,
दिखलाकर आर्दश उदार,
कुलगत नहीं, शिष्य-गुणगत ही
रक्खा गदी का अधिकार ।
इसे विराग कहें हम उनका
अथवा अधिकाधिक अनुराग,
बढ़े लोक को अपनाने वे
करके क्षुद्र गेह का त्याग ।
प्रव्रज्या धारन की गुरु ने,
छोड़ बुद्ध सम अटल समाधि,
सन्त शान्ति पाते हैं मन में
हर हर कर औरों की आधि ।
अनुभव जन्य विचारों को निज
दे दे कर 'वाणी' का रूप
उन्हें कर्मणा कर दिखलाते
भग्यवान वे भावुक-भूप ।
एक धूर्त विस्मय की बातें
करता था गुरु बोले-'जाव,
बड़े करामाती हो तुम तो
अन्न छोड़ कर पत्थर खाव ।'
वही पूर्व आदर्श हमारे
वेद विहित, वेदांत विशिष्ट,
दिये सरल भाषा में गुरु ने
हमें और था ही क्या इष्ट ?
उसी पोढ़ प्राचीन नीव पर
नूतन गृह-निर्माण समान
गुरु नानक के उपदेशों ने
खींचा हाल हमारा ध्यान ।
दृषदूती तट पर ऋषियों ने
गाये थे जो वैदिक मन्त्र ।
निज भाषा में भाव उन्हींके
नानक भरने लगे स्वतन्त्र ।
निर्भय होकर किया उन्होंने
साम्य धर्म का यहाँ प्रचार,
प्रीति नीति के साथ सभी को
शुभ कर्मों का है अधिकार ।
सारे, कर्मकाण्ड निष्फल हैं
न हो शुद्ध मन की यदि भक्ति,
भव्य भावना तभी फलेगी
जब होगी करने की शक्ति ।
यदि सतकर्म नहीं करते हो,
भरते नहीं विचार पुनीत,
तो जप-माला-तिलक व्यर्थ है,
उलटा बन्धन है उपवीत ।
परम पिता के पुत्र सभी सम,
कोई नहीं घृणा के योग्य;
भ्रातृभाव पूर्वक रह कर सब
पाओ सौख्य-शान्ति-आरोग्य
"काल कृपाण समान कठिन है,
शासक हैं हत्यारे घोर,"
रोक न सका उन्हें कहने से
शाही कारागार कठोर ।
अस्वीकृत कर दी नानक ने
यह कह कर बाबर की भेट-
"औरों की छीना झपटी कर
भरता है वह अपना पेट !"
जो सन्तोषी जीव नहीं हैं
क्यों न मचावेंगे वे लूट ?
लुटें कुटेंगे क्यों न भला वे
फैल रही है जिनमें फूट ?
मिले अनेक महापुरुषों से,
घूमे नानक देश विदेश;
सुने गये सर्वत्र चाव से
भाव भरे उनके उपदेश ।
हुए प्रथम उनके अनुयायी
शूद्रादिक ही श्रद्धायुक्त,
ग्लानि छोड़ गुरु को गौरव ही
हुआ उन्हें करके भय-मुक्त ।
छोटी श्रेणी ही में पहले
हो सकता है बड़ा प्रचार;
कर सकते हैं किसी तत्व को
प्रथम अतार्किक ही स्वीकार ।
समझे जाते थे समाज में
निन्दित; घृणित और जो नीच,
वे भी उसी एक आत्मा को
देख उठे अब अपने बीच ।
वाक्य-बीज बोये जो गुरु ने
क्रम से पाने लगे विकाश
यथा समय फल आये उनमें,
श्रममय सृजन, सहज है नाश ।
उन्हें सींचते रहे निरन्तर
आगे के गुरु-शिष्य सुधीर
बद्धमूल कर गये धन्य वे
देकर भी निज शोणित-नीर ।
2. नानक-अलामा मुहम्मद इकबालकौम ने पैग़ामे गौतम की ज़रा परवाह न की
कदर पहचानी न अपने गौहरे यक दाना की
आह ! बदकिसमत रहे आवाज़े हक से बेख़बर
ग़ाफ़िल अपने फल की शीरीनी से होता है शजर
आशकार उसने कीया जो ज़िन्दगी का राज़ था
हिन्द को लेकिन ख़याली फ़लसफ़े पर नाज़ था
शमएं-हक से जो मुनव्वर हो ये वो महफ़िल न थी
बारिशे रहमत हूयी लेकिन ज़मीं काबिल न थी
आह ! शूदर के लीए हिन्दुसतान ग़म ख़ाना है
दरदे इनसानी से इस बसती का दिल बेगाना है
ब्रहमन शरशार है अब तक मये पिन्दार में
शमएं गौतम जल रही है महफ़िले अग़यार में
बुतकदा फिर बाद मुद्दत के रौशन हूआ
नूरे इबराहीम से आज़र का घर रौशन हूआ
फिर उठी आख़िर सदा तौहीद की पंजाब से
हिन्द को इक मरदे कामिल ने जगाया ख़ाब से
3. गुरू नानक शाह-नज़ीर अकबराबादीहैं कहते नानक शाह जिन्हें वह पूरे हैं आगाह गुरू ।
वह कामिल रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे माह गुरू ।
मक़्सूद मुराद, उम्मीद सभी, बर लाते हैं दिलख़्वाह गुरू ।
नित लुत्फ़ो करम से करते हैं हम लोगों का निरबाह गुरु ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।१।।
हर आन दिलों विच याँ अपने जो ध्यान गुरू का लाते हैं ।
और सेवक होकर उनके ही हर सूरत बीच कहाते हैं ।
गर अपनी लुत्फ़ो इनायत से सुख चैन उन्हें दिखलाते हैं ।
ख़ुश रखते हैं हर हाल उन्हें सब तन का काज बनाते हैं ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।२।।
जो आप गुरू ने बख़्शिश से इस ख़ूबी का इर्शाद किया ।
हर बात है वह इस ख़ूबी की तासीर ने जिस पर साद किया ।
याँ जिस-जिस ने उन बातों को है ध्यान लगाकर याद किया ।
हर आन गुरू ने दिल उनका ख़ुश वक़्त किया और शाद किया ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।३।।
दिन रात जिन्होंने याँ दिल बिच है यादे-गुरू से काम लिया ।
सब मनके मक़्सद भर पाए ख़ुश-वक़्ती का हंगाम लिया ।
दुख-दर्द में अपना ध्यान लगा जिस वक़्त गुरू का नाम लिया ।
पल बीच गुरू ने आन उन्हें ख़ुशहाल किया और थाम लिया ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।४।।
याँ जो-जो दिल की ख़्वाहिश की कुछ बात गुरू से कहते हैं ।
वह अपनी लुत्फ़ो शफ़क़त से नित हाथ उन्हीं के गहते हैं ।
अल्ताफ़ से उनके ख़ुश होकर सब ख़ूबी से यह कहते हैं ।
दुख दूर उन्हीं के होते हैं सौ सुख से जग में रहते हैं ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।५।।
जो हरदम उनसे ध्यान लगा उम्मीद करम की धरते हैं ।
वह उन पर लुत्फ़ो इनायत से हर आन तव्ज्जै करते हैं ।
असबाब ख़ुशी और ख़ूबी के घर बीच उन्हीं के भरते हैं ।
आनन्द इनायत करते हैं सब मन की चिन्ता हरते हैं ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।६।।
जो लुत्फ़ इनायत उनमें हैं कब वस्फ़ किसी से उनका हो ।
वह लुत्फ़ो करम जो करते हैं हर चार तरफ़ है ज़ाहिर वो ।
अल्ताफ़ जिन्हों पर हैं उनके सौ ख़ूबी हासिल हैं उनको ।
हर आन ’नज़ीर’ अब याँ तुम भी बाबा नानक शाह कहो ।
इस बख़्शिश के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू ।
सब सीस नवा अरदास करो, और हरदम बोलो वाह गुरू ।।७।।
(कामिल=मुक्म्मिल,सम्पूर्ण, रहबर=रास्ता दिखाने वाले, माह=
चाँद, मक़्सूद मुराद=दिल चाही इच्छा, अज़मत=बढ़ाई,शान,
इर्शाद=उपदेश दिया, तासीर=प्रभाव, मक़्सद=मनोरथ,इच्छा,
हंगाम=समय पर, शफ़क़त=मेहरबानी, गहते=पकड़ते, अल्ताफ़=
मेहरबानी, तवज्जै=ध्यान देना, वस्फ़=गुणगान)4. जय गुरु नानक-डा. राम वल्लभ आचार्यजय जय गुरु नानक प्यारे ।
जय जय गुरु नानक प्यारे ॥
तुम प्रगटे तो हुआ उजाला
दूर हुए अँधियारे ॥
जय जय गुरु नानक प्यारे ॥
जगत झूठ है सच है ईश्वर
तुमने ही बतलाया ।
वेद पुरान कुरान सभी का
सार हमें समझाया ।
पावन 'गुरुवाणी' से हरते
सब अज्ञान हमारे ॥
जय जय गुरु नानक प्यारे ॥
मानव सेवा, परमारथ का
मार्ग हमें दिखलाया ।
दीन दुखी से प्रेम करो, यह
मंत्र हमें सिखलाया ।
शिष्य भाव को जगा, मिटाये
भाव भेद के सारे ॥
जय जय गुरु नानक प्यारे ॥
भूले भटके जग को तुमने
सच की राह दिखाई ।
घृणा द्वेष को मिटा प्रेम की
मन में ज्योति जलाई ।
एक बार फिर आकर कर दो
अंतर में उजियारे ॥
जय जय गुरु नानक प्यारे ॥
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गुरु नानक देव जी से संबंधित पंजाबी कविताएं हिंदी में
Punjabi Poems in Hindi on Guru Nanak Dev Ji
1. चशमां-मटन साहिबबिसमिल मारतंड दे कंढे
नाद वजांदा आया,
छुह कदमां दी जिन्द पावणी
डुल्हदी नाल ल्याया,
जाग पए पत्थर ओ मोए
रुल गए पानी जीवे,
नवां जनम दे 'मटन साहब' कर
उज्जल थेह वसायआ,-
सुहण्यां दे सुलतान गुरू
जिन नानक नाम सदायआ,
'ब्रहम दास' पंडत नूं एथे
अरशी नूर दिखया,
चशम 'कमाले' दी चा खुहली
कुदरत-वस्स्या दस्स्या,
ताल विचाले थड़ा बणया
गुर बैठ सन्देस सुणायआ ।
इउं कशमीर जिवाके सुहणा
जा कैलाश नूं चड़्हआ,
पर कशमीर आप ही मुड़के
विच्च तबाही वड़्या ।
सिंघ रणजीत मरद दा चेला
देखो बुक्कदा आया,
मुड़ कशमीर जिवाई बिसमिल
मटन साहब रंग खिड़्या,
धरमसाल-छे बारांदरियां
थड़ा विचाल फबायआ,
जिस ते बैठ 'ब्रहम' दा मूधा
सतिगुर कौल खिड़ायआ ।
'नानक-छुह' दा संग अजे तक
बग़दाद सांभके रख्या,
'नानक-छुह' दा थड़ा बंगला
कशमीर ने भन्न गवायआ ।
2. श्री गुरू नानक देव जी तों
कलियां दी सुगंधि सदक्कड़े !अज्ज नसीम जदों कलियां नूं आ के गल्ल सुणाई:-
'गुर नानक प्रीतम कल आसन, पक्की इह अवाई' ।
सुन कलियां भर चाउ आख्या:-'सहीयो अज्ज न खिड़ना,
कल प्रीतम दे आयां कट्ठी देईए मुशक लुटाई' ।
3. श्री गुरू नानक देव जी तों
नुछावर त्रेल'पौन लुके पाणी' ने सहीयो ! जां इह गल्ल सुन पाई:
'गुर नानक प्रीतम कल आसन, पयार छहबरां लाई' ।
पौन कुच्छड़ों तिलक रात नूं, शबनम रूप बणाके
विछ गया सारा धरती उत्ते:-'चरन धूड़ मुख लाई' ।
4. श्री गुरू नानक देव जी दी नज़र-फुल्ल'अज गुर नानक आसन, कहन्दी मालन गई बगीचे,
फुल्लां नूं सुन चाउ चड़्ह ग्या:-'आपा भेटा दीचे' ।
इक इक तों वध चड़्ह पए आखन 'तोड़ सार्यां लै चल
सोहण्यां दे सरदार साहमने नज़र असानूं कीचे' ।
5. श्री गुरू नानक देव जी अते
बुलबुलां दी अभिलाखचड़्ह असमानीं चन्द कूक्या:- 'गुर नानक कल आसन' ।
झुरमट घत्त बुलबुलां धाईआं करदियां वाक बिलासन:-
'गुर नानक कीरतन दे पयारे कीरतन चलो सुणाईए,
तरुट्ठ पए तां नाल आपने अरशां नूं लै जासन' ।
6. परदेसीं गई कोइल दी अरज़ोईमैं सदके मैं सदके सारी सुहण्यां दे सुलतान !
तुसीं औणा, सानूं समें फिरन्दे तोर्या होर जहान !
कोइल कूक विलक इक मेरी सदा लवां तुध नाम !
दरशन नहीं तां 'लिव ना टुट्टे' कोइल मंगदी दान !
(परदेस=गुरू नानक गुरपुरब कत्तक विच हुन्दा है,
सरदियां विच कोइल पंजाबों परवास कर जांदी है)
7. गुर नानक गुर नानक तूंनदी किनारे कूक पुकारां,
उम्मल उम्मल बांह उलारां,
'साईआं' 'साईआं' हाकां मारां,
तूं साजन अलबेला तूं ।
'तर के आवां' ज़ोर न बाहीं,
शूके नदी कांग भर आही,
'तुर के आवां' राह न काई,
साजन सखा सुहेला तूं ।
तुलहा मेरा बहुत पुराणा,
घस घस होया अद्धोराणा,
चप्पे पास न कुई मुहाणा,
चड़्ह के पहुंच दुहेला ऊ ।
बद्दलवाई, कहर हवाई,
उडन खटोले वाले भाई,
धूम मचाई, दए दुहाई:-
"ए ना उड्डन वेला उ ।
तूं समरत्थ शकतियां वाला,
जे चाहें कर सकें सुखाला,
फिर तूं मेहरां तरसां वाला,
कर छेती 'मिल-वेला' ऊ ।
8. गुर नानक दा थीअपना कोई नहीं है जी,
अपना कोई नहीं है जी,
गुर नानक दा थी वे बन्द्या !
गुर नानक दा थी ।१।
अपने सुख नूं मिलदे सारे,
घोली सदके जांदे वारे,
दुक्ख प्यां कोई आइ न दवारे,
सभ छड भजदे बुढ्ढे वारे,
अपना कोई नहीं है जी,
अपना कोई नहीं है जी,
गुर नानक दा थी वे बन्द्या !
गुर नानक दा थी ।२।
दरद रंञाण्यां दा उह मेली,
बुढ्ढे ठेर्यां दा उह बेली,
पुक्कर पैंदा औखे वेलीं,
खेड़ दए ज्युं फुल्ल चम्बेली,
अपना कोई नहीं है जी,
अपना कोई नहीं है जी,
गुर नानक दा थी वे बन्द्या !
गुर नानक दा थी ।३।
'धन्न गुर नानक' लल लगाईं,
'धन्न गुर नानक' दईं दुहाई,
'गुर नानक' 'गुर नानक' गाईं,
कदे ना तैनूं उह छड जाई,
गुर नानक दा थी वे बन्द्या !
गुर नानक दा थी ।४।
9. गुरु नानक आयाटेक-सहीयो नी ! गुरु नानक आया ।
गुरु नानक गुरु नानक आया ।
नाद उठयो: 'गुरु नानक आया' ।
शबद हुयो: 'गुरु नानक आया' ।१।
मुशक उठे मेरे बन ते बेले,
खिड़ पए बागीं फुल्ल रंगीले ।
सभ ने अनहत राग अलाया :
'गुरु नानक गुरु नानक आया' ।२।
जाग पए पंछी अख खोल्हण
गावन गीत रंगीले बोलन :-
'देखो अहु गुरु नानक आया',
'गुरु नानक गुरु नानक आया' ।३।
तपियां जुगां द्यां अख खोल्ही
तयागी मौन, बोल पए बोली:-
'अहु तक्को गुरु नानक आया',
'गुरु नानक गुरु नानक आया' ।४।
दुखियां कन्नीं पई बलेल:-
दुखां नूं जो करे दबेल ।
'अहु गुरु नानक नानक आया',
सुक्ख सबीली नाल ल्याया' ।५।
कूक उठी दुनियां पई गावे,
मसत अलसती तानां लावे:-
'धुन्द हनेरे होए दूर
फैल ग्या है नूरो नूर
'सहीयो नी गुरु नानक आया',
'गुरु नानक गुरु नानक आया' ।६।
मेरा मेरा मेरा अपना,
किसे ना ओप्रा सभ दा अपना,
उह गुरु नानक नानक आया
'सहीयो नी गुरु नानक आया' ।७।
10. बाबा नानक ! ए तेरा कमालबाबा नानक ! ए तेरा कमाल, रूहां टुम्ब जगाईआं ।
फाथियां मायआ दे आल जंजाल, रोंदियां तूंहें हसाईआं ।
देश बदेशीं तूं फेरे चा पाए,
नाद इलाही तूं दर दर वजाए,
सुत्ते दित्ते तूं टुम्ब उठाल,
नवियां जिन्दियां पाईआं ।
बाबा नानक ! ए तेरा कमाल, रूहां टुम्ब जगाईआं ।
फाथियां मायआ दे आल जंजाल, रोंदियां तूंहें हसाईआं ।
भरमां दे छौड़ दिलां चों चा कट्टे,
उतों पाए खुल्ल्हे नाम दे छट्टे,
विछड़े मेले तूं साईं दे नाल,
लिव दियां डोरां लगाईआं ।
बाबा नानक ! ए तेरा कमाल, रूहां टुम्ब जगाईआं ।
फाथियां मायआ दे आल जंजाल, रोंदियां तूंहें हसाईआं ।
संगत सारी दी है ए दुहाई,
सानूं वी ख़ैर ओ नाम दी पाईं,
ला लईं आपने चरनां दे नाल,
बख़शीं साडियां उकाईआं ।
बाबा नानक ! ए तेरा कमाल, रूहां टुम्ब जगाईआं ।
फाथियां मायआ दे आल जंजाल, रोंदियां तूंहें हसाईआं ।
11. बुढ्ढन शाह दी अरज़ोईसुत्ते नूं आ जगाके, हिरदे परीत पाके,
मोए नूं जी जिवाके, ढट्ठे नूं गल लगाके,
अपना बना के साईं, सानूं न छड्ड जाईं,
मिलके असां गुसाईं बिरहों न हुन दिखाईं,
चरनीं जि आप लाया, रस प्रेम दा चखाया,
दास आपना बनाया, विच्छुड़ न हुन गुसाईं !
12. सच्चे तबीब दा मानमैं बीमार रोग अति भारी,
कारी करे न कोई,
साफ़ जवाब स्याण्यां दित्ते,
फाहवी हो हो रोई आ ढट्ठी गुर नानक दवारे
वैद अरश दा तूंहीयों !
हां बीमार ख़ुशी पर डाढी
पा तेरे दर ढोई ।
13. बाबा जी दी प्राहुणचारी(ख़ालसा समाचार कत्तक दी २५ संमत ना: शा: ४४८, नवम्बर ९, सन्न १९१६ ई:)
१
उठ नी सखी,
चल वेखन चलीए,
अजब मूरतां आईआं नी ।
थां-थां छत्तर लग्गे हन भारे,
इक तों इक सवाईआं नी ।
अजब महक है फैली सारे,
वज्जन सहज वधाईआं नी ।
कंवलां नूं हन भौरे भुल्ले,
दिन्दे फिरदे धाईआं नी ।
प्रीत मदहोशी छाई सारे,
लग्गियां उच्चियां साईआं नी ।
आकाश पवित्तर धरत पवित्तर,
चीज़ां तीरथ नहाईआं नी ।
प्यार गगन है छायआ उपर,
सारियां बाबल जाईआं नी ।
२
पा कपड़े चल वेखन चलीए,
कौण-कौन रिख आए नी ।
शिवजी नाल गौरजां लै के,
चड़्ह कंधी उह धाए नी ।
नीझ लाय के देखो सखीओ,
विशनूं आण सहाए नी ।
कंवल नैन उह लच्छमी आई
सुहप्पण-गगन रंगाए नी ।
वीना हत्थ विच्च नारद आए,
राग रंगीन वजाए नी ।
धरू प्रहलाद आण बाबे घर,
सिफ़त सलाहां गाए नी ।
जले हरी-ए थले हरी ए,
सुहने शबद सुणाए नी ।
३
उट्ठ नी सखी चल्ल वेखन चलीए,
होर रंगीला आया ई ।
छाईं माईं "राम" नाम है,
"नानक" नाद वजायआ ई ।
लूंअ-लूंय हस्से रग-रग टप्पे,
होर वड्डा इक आया ई ।
नैणां झमकन तारे झमकण,
ए नैणां दी आया ई ।
बंसी बीन वजाए मिट्ठी,
"नानक" "नानक" गायआ ई ।
आखे सभ तों वड्डा बाबा
दुनियां तारन आया ई ।
बुद्ध आए ते जीना आए,
धन्न गुरू नानक गायआ ई ।
ईसा नाल मुहंमद आए,
"नानक धन्न" अलायआ ई ।
४
वेहड़ा बाबे जी दा भारी,
मिटदी सभ असनाई है ।
भूत भविक्ख ते वरतमान दी,
आई सभ लोकाई है ।
रूप ना रेख ना रंग ना सूरत,
इको प्यार इलाही है ।
इक सुर हो जद मिलदे सारे,
नैणां छहबर लाई है ।
रसिक चुप्प दी मिट्ठ विच्च बोले,
धरमसाल सभ भाई है ।
सभ बाबे दे बाबा सभ दा,
इहो जोत जगाई है ।
सभ ने रल के गीत गाव्या,
अनहत धुनी उठाई है ।
"सभ तों वड्डा सतिगुर नानक,"
नानक धन्न कमाई है ।
14. बाबा नानकजिस दे चानन रिशमां पाईआं लहने दे आईने ते,
उस जोत ने छाप लगाई कंधारी दे सीने ते ।
बालक वागी बुढा कीता, बेर बणायआ रेठे दा,
राय बुलार मुरीद कर ल्या, पा के नूर नगीने ते ।
किरती दा भंडार विखायआ, अन्न्हे मायआ धारी नूं,
सज्जन ठग्ग नूं झात पुआई, घर विच पए दफ़ीने ते ।
ब्राहमन काजी दोवें रगड़े, नियत दी घसवट्टी ते,
उह अछूत बराबर तोले, करतब दे तख़मीने ते ।
प्रेम नशे थीं खीवा कीता, अमलां दे दीवाने नूं ।
मक्के वाले नूं भरमायआ, दिल दे पाक मदीने ते ।
वहदत दा व्युपारी आया, हादी हिन्दू मुसलिम दा,
मन्दर मसजिद सांझे कीते, मिटी पाई कीने ते ।
आ जा मन अज शुकराने करीए बाबे एकंकारी दे,
जिस ने जोत जगाई आण गुआचे माल खजीने ते ।
दुनियां वाल्यो, कुझ ना पुछो मेरे ऐब सवाबां दी,
चात्रिक दा है तकवा आपने रहबर दाने बीने ते ।
15. तैं की दरद न आयाअक्खां नाल न दिसे तसवीर तेरी,
कुदरत देख के मूंह थीं वाह निकले !
कनी दरद दी कोई खिलारिया वे,
ऐडे वग के सभ प्रवाह निकले !
ठाठां मारदे बहर ने कुदरतां दे,
ज़र्रे ज़र्रे थीं दरद दी भाह निकले !
लोकी जिन्द कहन्दे असीं दरद कहीए,
जिथे दरद होवे उथों आह निकले !
जिथे कोइल दी कूक न पवे कन्नी,
अम्बों सखने बाग़ों वैरान चंगे ।
जिथे बुलबुलां बैठ न गीत गाउण,
खिड़े फुलां तों रड़े मैदान चंगे ।
जिथे पानी ना मिले प्यास्यां नूं,
उन्हां बसतियां थीं बियाबान चंगे ।
दरदों सखने दिलां तों सच जाणो,
रुख बिरख चंगे ते हैवान चंगे ।
भागों हीण्या भारता ! अज केहड़ा,
चार हंझू केरे तेरे हाल उते ?
तेरे चार चुफेरड़े अग भड़की,
लम्बे पए बलदे वाल वाल उते ।
योए बाबरा ! गज़ब की मार्या ई,
प्या शाह दा ज़ोर कंगाल उते ।
ज़ोरां वाल्यां नूं यारो भुल जांदा,
"लेखा देवना पवे ऐमाल उते" ।
वेखे बाप दा हाल आ पुत कोई,
वेखे वीर कुहींवदा वीर कोई ।
फड़क कालजा सीन्युं बाहर आवे,
नैणों प्या वगे सोमा नीर कोई ।
दरदी दिलां थीं दरद दी आह निकले,
पथर दिलां ते करे तासीर ओई ।
भारत वरश दा दरद अज कौन वंडे,
कढे आए कलेज्युं तीर कोई ?
आगू मुलक दे सेठ सरदार जितने,
देश कौम नूं वेचदे गरज़ बदले ।
खान हीर्यां दी भारत देश प्यारा,
नकद माल लुटाउंदे गरज़ बदले ।
बाहू बल ते हिन्द दी शान उची,
दिती खोह गुलामी दी मरज़ बदले ।
कोई दरद वाली अक्ख अज वेखे,
केरे लहू दे हंझू इस तरज़ बदले ।
जीहदे रिदे च ताह है दरद वाली,
सारे दिलां दे नाल पैवन्द होई ।
जेहदी बांह गलवकड़ी आजज़ां दी,
छाती जिसदी पिता मानिन्द होई ।
जिसदे हथ यतीमां दी छतर छायआ,
जिसदी अक्ख न किसे वल बन्द होई ।
नानक गुरू ने वेख्या हाल आ के,
सचे साईं वल बिनै बुलन्द होई ।
लै मरदान्यां छेड़ रबाब रबी,
साथों ज़ुलम इह सेहा ना जांवदा ई ।
साडे रिदे थीं दरद-सदा आई,
बाझों कहन दे रेहा ना जांवदा ई ।
लोकी चुप हो के ज़ुलम सही जांदे,
मूंहों बोल के केहा ना जांवदा ई ।
पहुंचे दरद दी कूक अकाश जा के,
इह हाल प्या दिल तड़फांवदा ई ।
दिती छेड़ मरदाने रबाब रबी,
जेहड़ी राग आज़ादी वजान लग पई ।
"बेड़ी कट दे मीर वे दरदियां दी",
बुलबुल पिंजरे विच ही गान लग पई ।
बन्दीखाने नूं भुल्या बन्दियां ने,
नवीं लहर कोई दिल तड़फान लग पई ।
नानक गुरू दी दरद-सदा निकली,
सारे दिलां दी तार हिलान लग पई ।
"खुरासान खसमाना किया हिन्दुसतानु ड्रायआ ।
आपै दोसु न देई करता जमु करि मुगलु चड़ायआ ।
एती मार पई करलाने तैं की दरदु न आया ।"
नानक गुरू दी "दरद-सदा" इको,
कईआं दिलां दी पीड़ काफूर कर गई ।
बूहा खोल्ह दिता बन्दी ख़ान्यां दा,
बाबर शाह दे ताईं मजबूर कर गई ।
लगे घायो विछोड़े दे दिलां उते,
मर्हम मेल दी दुखड़े दूर कर गई ।
आह ! 'दरद' दी दरद हटाय देंदी,
दुनी विच इह गल मशहूर कर गई ।
(नवम्बर १९१९)
16. वेख मरदान्यां तूं रंग करतार दे(इक सुपना)
उठ मरदान्यां तूं चुक लै रबाब भाई,
वेखीए इकेरां फेर रंग संसार दे ।
पै रही आवाज़ कन्नीं मेरे है दरद वाली,
आ रहे सुनेहड़े नी डाढे हाहाकार दे ।
जंगलां पहाड़ां विच वसतियां उजाड़ां विच,
पैन पए वैन वांङूं डाढे दुख्यार दे ।
चल्ल इक वेर फेरा पावीए वतन विच,
छेती हो विखाईए तैनूं रंग करतार दे ।
वेख तूं पंजाब विच लहू दे तालाब भरे,
हसदे ने कोई, कोई रो रो के पुकारदे ।
करदे सलामां कई रिड़्हदे ने ढिडां भार,
वेखदे तमाशा कई गोले सरकार दे ।
ताड़ ताड़ गोलियां चलांवदे बिदोस्यां ते,
बन्द्यां दे उते ढंग सिखदे शिकार दे ।
लख लख मिलदे इनाम पए शिकारियां नूं,
पशूआं दे वांग जेहड़े बच्चे बुढे मारदे ।
असां नहीउं लैणियां वधाईआं अज किसे पासों,
अज मेरे सीने विच फट नी कटार दे ।
जदों तीक होंवदी खलास नहींयों बन्दियां दी,
जदों तीक दुखी लखां दबे हेठां भार दे ।
जदों तीक तोपां ते मशीनां दा है राज इथे,
सच दे नी चन्न दबे हेठां अंधकार दे ।
ओदों तीक चैन नहीं मैनूं मरदान्यां वे,
सोचां, इह की वरत रहे रंग करतार दे ।
वेख्या तमाशा मरदान्या ई कदी तुध ?
सैर मेरे नाल कीते सारे संसार दे ।
अग लैन आई ते सुआनी बनी सांभ घर,
घूर घूर हुकम मनावे हंकार दे ।
खावो पीवो बोलो चालो आवो जावो पुछ पुछ,
हुकम पए चलदे ने डाढी सरकार दे ।
सच दे प्यारे कई ताड़े बन्दीखाने विच,
वेख मरदान्यां तूं रंग करतार दे ।
इक पासे तोप ते मशीनां, बम्ब, जेहल, फांसी,
कहन्दे, कौन आ के साडे साहवें दम मारदे ।
'सच' ते 'न्याइ' झंडा पकड़ के आज़ादी वाला,
दूजे पासे वतन दे सूरमे वंगारदे ।
सूरज आज़ादी वाला बदलां ने घेर ल्या,
काले काले घनियर शूंकदे फूंकारदे !
मार लिशकारे पर सूरज अकाश चड़्हे,
वेख मरदान्यां तूं रंग करतार दे ।
वेख तलवंडी विच भंडियां नी मच रहियां,
रंडियां दे नाच हुन्दे विच दरबार दे ।
उठ गईआं सफ़ां मरदान्यां असाडियां ओ,
कौन आ के कहे अज हाल दिलदार दे ।
जिथे सचे सौद्यां दे कीते सतसंग असां,
जिथे दिन कटे असां नाल राय बुलार दे ।
ओथे अज लगियां दुकानां दुराचार दियां,
वेख मरदान्यां ए रंग करतार दे ।
दस केहड़ी थांइ पहलां चलीए प्यार्या वे,
आंवदे सन्देसे सभ पासों वांग तार दे ।
चलीए हज़ारी बाग़ बीर रणधीर पास,
चकियां पेहाईए कोल बैठ सोहने यार दे ।
चन्दन दे बूटे ने महकाई है सुगंध जिथे,
सुंघ लईए भौर बण फुल गुलज़ार दे ।
अज इह हज़ारी बाग़ लक्खी ते करोड़ी बाग़,
सांईं दे प्यारे इह तों तन मन वारदे ।
फेर अंडेमान फेरा पावीए प्यार्या वे,
देश दे प्यारे जिथे दुखड़े सहारदे ।
पिंजरे दे विच कोई पुछदा ना बात जिथे,
जप के आज़ादी 'नाम' समें नूं गुज़ारदे ।
छाती ला के सार्यां प्यार्यां नूं इक वेर,
फेर जा जगाईए सुत्ते होए शेर बार दे ।
खुल्ह गई अक्ख 'शेरा उठ' दी आवाज़ सुण,
सुपने विखाए डाढे रंग करतार दे ।
(नवम्बर १९२०)
17. हे गुरू नानकबाग धरम ते कहर अन्हेरी,
पतझड़ हो के झुल्ल रही ।
फुल्ल टुट्टे कलियां कुमलाईआं,
बुलबुल दर दर रुल्ल रही ।
विछड़े फुल्ल टहणियां नालों,
होनी तक तक फुल रही ।
कोमल पत्तियां लूसन टुट्टण,
वेख वेख अक्ख डुल्ल्ह रही ।
जेहड़ा फुल्ल सुगंधी देवे,
उहीयो तोड़ उजाड़ी दा ।
हे गुरू नानक ! पहुंच अचानक,
राखा हो फुलवाड़ी दा ।
खोह खोह खिड़ियां कलियां "पत्तझड़",
धागे हार परो रही ए ।
सीना विन्ने नाल सूई दे,
तिक्खे तीर चुभो रही ए ।
तोड़ तोड़ के कोमल कलियां,
हस्स रही ए ख़ुश हो रही ए ।
वेख वेख के दरदन मालण,
रत्त दे अत्थरू रो रही ए ।
फल्या फुल्या बाग कौम दा,
नाल बेदरदी साड़ी दा ।
हे गुरू नानक ! पहुंच अचानक,
राखा हो फुलवाड़ी दा ।
किधरे खिड़ियां खिड़ियां कलियां,
भट्ठी विच्च ने सड़ रहियां ।
लूस लूस कई चन्दर-मुखियां,
बूट्यां तों ने झड़ रहियां ।
बनन पईआं गुलकन्दां किधरे,
रत्तां किधरे कड़्ह रहियां ।
रूह कढदे ने ता् दे दे के,
ज़ुलमी भट्ठियां चड़्ह रहियां ।
प्या पसारी अरक खिच्चदा,
फुल दी नाड़ी नाड़ी दा ।
हे गुरू नानक ! पहुंच अचानक,
राखा हो फुलवाड़ी दा ।
फुल्ल बहारी झाड़े "पत्तझड़",
बाग बना रही जंगल है ।
चन्दरा माली फड़ फड़ पंछी,
पा रहआ कड़ियां संगल है ।
जे कोई होड़े हटके, इसनूं,
घुलदा करदा दंगल है ।
पत-झड़ काहदी साडे भा दा,
राहू केतू मंगल है ।
याद तिरी विच्च तेरे प्यारे,
सहन्दे वार कुहाड़ी दा ।
हे गुरू नानक ! पहुंच अचानक,
राखा हो फुलवाड़ी दा ।
18. प्यारा गुरू नानकतेरा रूप है रब्ब दा रूप नानक,
तेरा दिल है सदा निरंकार अन्दर ।
कागों हंस होवे उच्ची वंस वाला,
इह है प्रभता तेरे दरबार अन्दर ।
बन के वैद जे दएं हर-नाम चुटकी,
नवीं फूक दएं रूह बीमार अन्दर ।
छल्ल वल्ल सारे पल्ल विच्च कढ्ढें,
मेटें कल्ल दी कल्ल पलकार अन्दर ।
मिट्ठा राग है तेरी रबाब अन्दर,
प्रेम रस्स है सत करतार अन्दर ।
विक्क जाएं तूं किसे दे पयार उत्तों,
पहुंचें पल विच्च काबल कंधार अन्दर ।
वली पीर फ़कीर ते साध जोगी,
सिफ़त नहीं इह किसे अवतार अन्दर ।
सभस वासते नूर वरसान वाला,
तेरा मुखड़ा है संसार अन्दर ।
19. सच्चे मलाहदुखी भारत ने जदों पुकार कीती,
रोंदी होई नूं धीर बन्हान आए ।
सिदक, धरम, सचाई, ग्यान, भगती,
प्रेम प्रीत दी रीत चलान आए ।
भुक्खे दरस दे झुंड अपच्छरां दे,
उत्तों प्रेम दे फुल्ल बरसान आए ।
सूरज चन्द्रमा वेख प्रकाश सुन्दर,
करन बन्दना सीस निवान आए ।
ब्रहमा, इन्द्र, कुबेर ते शिव शंभू,
वांग ढाडियां दे जस गान आए ।
नानक गुरू जी साडे मलाह बणके,
डुबदे बेड़्यां नूं बन्ने लान आए ।
जदों पाप सागर छल्लां मारदा सी,
बेड़ा धरम खांदा डिको-डोलड़े सी ।
घुंमन घेर पखंड सी ज़ोर उत्ते,
झुल्ले वहम दे वा वरोलड़े सी ।
जगत डुब्ब्या सी भरम-वहन अन्दर,
डाढे दुखी होए लोक भोलड़े सी ।
जदों दंभी मलाह चड़्हाऊआं नूं,
करदे मुल खरीद दे गोलड़े सी ।
भगती, नाम, ग्यान दा ला चप्पा,
डुब्बे होयां नूं पार लंघान आए ।
नानक गुरू जी साडे मलाह बणके,
डुबदे बेड़्यां नूं बन्ने लान आए ।
20. मलक भागो नूंभागो सच्च ही तूं भगवान हुन्दों,
सुत्ता जे कदे ना तेरा भाग हुन्दा ।
मोती मान सरोवरों प्या चुगदा,
जे ना दिल तेरा काला काग हुन्दा ।
तैनूं वेख के पए गरीब जीउंदे,
जे ना बोल तेरा मारू राग हुन्दा ।
वद्ध चन्द तों पूज्या जांवदों तूं,
जेकर दूई दा ना तैनूं दाग हुन्दा ।
लहू तेरे भंडारे विच्च वरतदा ना,
दसां नव्हां दी हुन्दी जे कार तेरी ।
जेकर दिल गरीबां दे जित्त लैंदों,
लालो अग्गे ना होंवदी हार तेरी ।
होया फेर की ? जे भोरे खोह खोह के,
इह तूं यग्ग भंडारे रचा लए ने ।
चिन चिन सिर गरीबां दे थां इट्टां,
जे तूं रंगले बंगले पा लए ने ।
छलां नाल मासूमां दी रत्त चो चो,
जे तूं रंग महल्लां नूं ला लए ने ।
रोंदे रुलदे यतीमां दी खल्ल लाह लाह,
जे तूं दरियां ग़लीचे विछा लए ने ।
घट्टा भरम दी अक्ख विच्च दे पावें,
तेरे कोल कुई धरम ईमान ई नहीं ।
जीउन वासते लक्खां ही जी मारें,
मलका ! मरन वल तेरा ध्यान ई नहीं ।
रता दिल नूं पुच्छ के वेख लै खां,
कारां कुल्ल तूं कीतियां पुट्ठियां नहीं ?
फोल फोल खीसे सिद्धे साद्यां दे,
भरियां लालसां दियां तूं मुट्ठियां नहीं ?
छलां नाल फरेब दी छुरी फड़के,
की तूं लोभ खातर जानां कुट्ठियां नहीं ?
औधर वेख तेरे पकदे पूड़्यां चों,
धूआं बण बण के ढाहां उट्ठियां नहीं ?
तूं नहीं जाणदा ? घ्यु ते दुद्ध तेरा,
चरबी है मज़लूमां दी ढली होई ।
तूंहीएं दस्स ? तेरी रोटी कौन खावे ?
जद कि रत्त है इद्हे विच्च रली होई ।
कंठे नहीं, कंगरोड़ है आजज़ां दी,
पाए जो तेरियां सुक्खां लद्धियां ने ।
रख कई गरीबां दे पुत्त भुक्खे,
तेरे पुत्तां दियां गोगड़ां वद्धियां ने ।
हंझू उन्हां दे कलगी ते लाए ने तूं,
रो रो होईआं विधवावां जो अद्धियां ने ।
इह तूं नहीं बनारसी पग्ग बद्धी,
किसे दुखी दियां आंदरां बद्धियां ने ।
गले आपने जो चोगा पा ल्या ई,
इस लई कईआं दा गला तूं वढ्ढ्या ए ।
अतर तेल जो लांदा एं, तिलां दा नहीं,
इह तूं दिलां नूं पीड़ के कढ्ढ्या ए ।
जदों किसे निमाने दी आह अन्दर,
दिलों दिल दा दरद रलायंगा तूं ।
जदों किसे गरीब नूं वेख नंगा,
लाह के आपना चोगा पवइंगा तूं ।
जदों किसे यतीम नूं वेख रोंदा,
रो रो अक्खियां तों छहबर लायंगा तूं ।
जदों आपने पुत्तां नूं रक्ख भुक्खा,
किसे भुक्खे दे पुत्त रजायंगा तूं ।
मन्नीं सच्च मलका ! तैनूं ओस वेले,
भाई लालो दे नाल बिठला लवांगा ।
तूं ना सद्दीं मैं आप अण-सद्द्या ई,
तेरा बेहा सिन्ना टुक्कर खा लवांगा ।
21. चोजी प्रीतमग्रहसती दुकानदार वागी किते ज़िमींदार,
किते खरे सौद्यां दा बण्या वपारी ए ।
मौलवी दा मौलवी ते वैदां दा वी वैद किते,
पांध्यां दे पांधे पट्टी नाम दी उचारी ए ।
दूर दूर देशां तीक मारी है उडारी किते,
किते कैद हो के कैद कैदियां दी टारी ए ।
पीरां विचों पीर ते फ़कीरां चों फ़कीर वड्डा,
वलियां दा वली गुरू नानक निरंकारी ए ।
इको रंग रंग विच, सारे रंग रंग देवे,
जोई रंग वेखो दिस्से अजब लिलारी ए ।
हन्दू कहन हिन्दू, अते मुसलमान, मुसलमान,
सारे अपनाउंदे इह लील्हा ही न्यारी ए ।
जोई वेखो सोई दिसे जोई चाहो सोई पाउ,
दारू अकसीर ते मदारी 'शाह-मदारी' ए ।
पीरां विचों पीर ते फ़कीरां चों फ़कीर वड्डा,
वलियां दा वली गुरू नानक निरंकारी ए ।
22. दस्स जावींरग रग चों रोगी दा रोग कढ्ढ्या,
आप पुज्ज के उहदे मकान अन्दर ।
चोट शबद दी ने लोट पोट कीते,
मानी मत्ते सी बहुत जो मान अन्दर ।
बान बानी दे जदों चलान लग्गे,
रक्ख के सुरत दी पक्की कमान अन्दर ।
आपो आपने फिकर दे विच पै के,
उठे कम्ब उह पंजे जवान अन्दर ।
तड़प तड़प के कहन दुहाई बाबा,
तीर कस्सके ख़ाली ना नस्स जावीं ।
जान वाल्या, एधरों मार्या ई,
वल जीन दा उधरों दस्स जावीं ।
इह तां फरक ख़ाली साडी समझ दा ए,
भाव मारने तों नहीं है मारने दा ।
किते होंवदा तार के तार देणा,
किते डोबने तों भाव तारने दा ।
किते किते तां हार वी जित्त हुन्दी,
किते जितना भाव है हारने दा ।
सिर्युं मार के सानूं तैं सारना की,
असल भाव तां है ना संवारने दा ।
बस ढिल्ले हां तां ज़रा कस्स जावीं,
राह भुल्ले हां तां फेर दस्स जावीं ।
सच्ची पुच्छें तां असीं तां इहो कहसां,
जावीं नस्स ना एथे ही वस्स जावीं ।
पहलां आखीए, फेर तूं चला जावीं,
वाजां मारके पिछों बुलावीए पए ।
पत्थर मारके वली कंधार वांङूं,
रहीए झूरदे फेर पछतावीए पए ।
ढट्ठे प्यां नूं उद्धर बणान लग्गीए,
इद्धर बने बणाए नूं ढावीए पए ।
घरों टोरके वीर दिलगीर होईए,
भैन नानकी वांग घबरावीए पए ।
किसे तार बेतार दी राहीं हो के,
साडे अन्दरले दे अन्दर धस्स जावीं ।
फेर रहवनी ना लोड़ कहवने दी,
राह भुल्ल्यां नूं फेर दस्स जावीं ।
हुन हां होर ते होर दे होर हुन हां,
सच्ची पुछें तां साडा वसाह कोई नहीं ।
उथे उह ते इथे हां आह असीं,
ऐवें उह कोई नहीं असीं आह कोई नहीं ।
जे तूं करें पैदा असीं चाह वाले,
वैसे दिल साडे अन्दर चाह कोई नहीं ।
असीं सार्यां राहां ते चलन वाले,
एसे वासते तां साडा राह कोई नहीं ।
राह दस्स जावीं नालों, इह चंगा,
राह दस्सदा रह सदा दस्सदा रह ।
साडे दिल दा महल ना रहे सुंञा,
इथे वस्सदा रह, सदा वस्सदा रह ।
23. नूर नानकनहीं विच कैद मन्दिर, मसजिद, धरमसाला,
हर मकान अन्दर लामकान समझो ।
रूप रंग उहदा वरन चेहन कोई ना
रंगां सार्यां विच वरतमान समझो ।
नाता, दोसती, साथ, शरीकता नहीं
सभ तों वक्खरा सभस दी जान समझो ।
देश, ज़ात, मज़हब, पेशा, ख़्याल कोई
हर इनसान दे ताईं इनसान समझो ।
जानो सभस विच जोत परमातमां दी
पहलां दस्स्या इहो दसतूर नानक ।
शरधा नाल पायआ सुरमा एकता दा
सभनां अक्खियां विच दिस्से नूर नानक ।
समझन वाल्यां ने कृष्ण समझ लैणा
भावें मोहन कह लो भावें शाम कह लौ ।
नीयत विच जे भाव है प्यार वाला
फ़तह, बन्दगी, नमसते, सलाम कह लौ ।
नामां सार्यां विच उहदा नाम कोई नहीं
इसे लई उहदा कोई नाम कह लौ ।
सभनां बोलियां ताईं उह जाणदा ए
भावें कहु अल्ला भावें राम कह लौ ।
ऐसे प्रेम दे रंग विच रंग्या जो
उहने समझ्या ठीक ज़रूर नानक ।
अन्दर बाहर उहनूं नज़रीं प्या आवे
नूर नूर नानक, नूर नूर नानक ।
रिच्छां बन्दरां दा पहलों हक्क हुन्दा
मिलदा रब्ब जे कर बाहर कन्दरां विच ।
पंडतां, काज़ियां, भाईआं दा मसला जे
रब्ब वट्ट्यां इट्टां ते मन्दरां विच ।
इह वी धोखा जे किते ना समझ लैणा
उह है धनियां दसां जां पन्दरां विच ।
नीवां सिर करके मारे झात जेहड़ा
उहनूं दिसेगा सार्यां अन्दरां विच ।
घड़े आपने रहन लई बुत्त उहने
ऐसे ग्यान दे नाल भरपूर नानक ।
नानक ओस विच है, उह है विच नानक
ओसे नूर तों नूर इह नूर नानक ।
आ के नज़र वी आउंदा नज़र नाहीं
किस्सा जान लौ मूसा ते तूर दा ए ।
अपने आप नूं आप ने है मिलणा
पैंडा बहुत नेड़े फिर वी दूर दा ए ।
परदा लाह के वी रेहा विच परदे
आया नूर उत्ते परदा नूर दा ए ।
जिथे मिलन सौदे केवल दिलां बदले
ओथे कंम की अकल शऊर दा ए ।
मिलीए जिनस विच सदा हम जिनस हो के
इह सिधांत जे सिरफ़ मनज़ूर नानक ।
बून्द विच सागर, सागर विच बून्दां
रल्या नूर हो के अन्दर नूर नानक ।
24. वलियां दा वलीपंडतां दे सिरां उतों हौमैं वाली पंड लाहके,
ठग्गां नूं वी ठग्ग, किवें सज्जन बणाई दा ।
जुगत नाल जोगी दा अजोगपन दूर कर,
दस्स देना एदां, जोग जोगियां कमाई दा ।
पानी पानी प्रोहत कीते नहर कट्ट पानी वाली,
सुनी जां कहानी पानी पित्रां पिलाई दा ।
सिधो ! मन सुध करो, हौमैं नाल युध करो,
साधो ! मन साधे बिन साध ना सदाई दा ।
नीव्यां दे नाल बैठ नीवें हो के नीव्यां नूं,
अंग नाल ला के किवें उच है बणाई दा ।
भागो मन्द भागी दी त्याग सभ खीर पूरी,
कोधरे दी रोटी जा के लालो पास खाई दा ।
कैसे वल नाल वल दूर कीता वली दा वी,
इहो सीगा भाव मरदाने दी दुहाई दा ।
पंजे दी निशानी तों कहानी सभ जानी जांदी,
वलियां दे ताईं किवें सिद्धे राह पाई दा ।
वड्डी होवे मानता ते किन्ना उच पीर होवे,
नफा संसार नूं ना उहदी उच्याई दा ।
बेरी नालों बेर फेर औण हत्थ खान लई,
इक हत्थ नाल जदों डाली नूं झुकाई दा ।
रोक के पहाड़ी कोई इह तां नहीं सी दस्सणा, कि
ऐडी वडी चीज़ किवें हत्थ ते टिकाई दा ।
दस्सना तां इहो सीगा, उहो फेर दस्स दित्ता,
'वलियां दे ताईं किवें सिद्धे राह पाई दा' ।
सुरत वाला गड्डा तुरत गड्ड जांदा गार विच,
भार होवे हौमैं दा जि दाना जिन्ना राई दा ।
आई जदों हौमैं, जान, ग्या मान, गई शान,
फक्का चुका देंदी रहन नाहीं वड्याई दा ।
वली कंधारी हंकारी दी सुरत हारी,
ला के चोट कारी कीकूं उहनूं शरमाई दा ।
वलियां दा वली ही तां भली भांत दसे ठीक,
वलियां दा वल किवें कढ के विखाई दा ।
वल वाले वली तों उह अल्ला वाला वली बणे,
इक पासों पुट्ट किवें दूजे बन्ने लाई दा ।
पीरां दे वी पीर ते फकीरां दे फकीर वड्डे,
वलियां दे वली कंम कीता अगवाई दा ।
भोगियां दे भोग छुडवाए ते हटाए रोग,
अंत कौन पावे उहदी कीमती दवाई दा ।
'नानक' दे बिनां ना अनक जग जाणदा है,
वलियां दे ताईं किवें सिद्धे राह पाई दा ।
25. निरंकारीजग्ग जग्ग भोगी संसारी बहु रोगी होए,
भारत बीमार कीता आतम बीमारी ने ।
खह खह आपस दी पंडत मौलाने स्याणे,
सभी मसताने कीते तस्सब खुमारी ने ।
धरम दी जान विच नहीं रही जान जाणों,
वैद खुद रोगी कोई कीती नहीं कारी ने ।
धरम प्रचारन हित रोगां नूं टारन हित,
लीता अवतार गुर नानक निरंकारी ने ।
ठंढे सभ ता दिते, भांबड़ मचवा दिते,
साड़ कर सवाह दिते, दवैत चंग्यारी ने ।
दाते नूं छोड़ दिता, दात संग प्यार कीता,
ज़ातां करामातां विच लीन हंकारी ने ।
थाउं थां उपाशना दी वाशना च फस्सा जग,
एकता दी प्रीत वाली रीत जां विसारी ने ।
इको निरंकारी ही दा जाप जपावन हित,
लीता अवतार गुर नानक निरंकारी ने ।
26. नानक दा रब्ब'इक नाम है ख़ुदा दा,
दूजा रसूल दा ए ।
मन्ने रसूल नूं तां,
अल्ला कबूलदा ए ।'
इह भाव मियां मिट्ठे,
तेरे असूल दा ए ।
मेरा सिधांत सिद्धा,
पुज्जे अख़ीर बन्ने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
आवे ज़रूर आवे.
रसते किसे तों आवे ।
पावे ज़रूर पावे,
रसते किसे तों पावे ।
दाहवा है इक तअस्सुब,
उलटा इह राह भुलावे ।
मोमन न सभ सुजाखे,
हन्दू न सारे अन्न्हे ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
गोरा या काला सौंला,
इह रंग वन्न-सुवन्ने ।
हर रंग विच उह वस्से,
रहन्दा है फेर बन्ने ।
आपे बणाउंदा है,
आपे चाहे तां भन्ने ।
उह लभ ल्या सी वेखो,
पत्थर दे विचों धन्ने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
है पसर्या चुफ़ेरे,
उहदा पसार सारे ।
उहो है हेठ उत्ते,
अन्दर ते बाहर सारे ।
दस्सन उसे दी कुदरत,
जंगल पहाड़ सारे ।
उहदे बिनां इह जाणो,
उजड़े दुआर बन्ने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
शांती दा घर है मज़हब,
मल्लां दा नहीं अखाड़ा ।
इत्थे ना पहुंच सक्के,
दूई, दवैत साड़ा ।
हद एस दी सचाई,
सच्च एस दा है वाड़ा ।
निसचा टिका ते टिक्के,
वहदत दे पीवे छन्ने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
सभ पुतलियां नचांदा,
इक्को उह तार वाला ।
रस देंवदा है जड़्ह नूं,
इक्को बहार वाला ।
गुन ओस दे ने सारे,
ओहो भंडार वाला ।
ओसे ने रस रसायआ,
भर्या जो विच्च गन्ने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
है बीज दी ही बरकत,
पर बीज किस उगायआ ?
अकलां दे चमतकारे,
पर अकल किस सिखायआ ?
असलूं है मूल केहड़ा ?
आया, कि जो ल्याया ?
जड़्ह तों बगैर उपजण,
न डालियां न तने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
पंछी जनौर सबज़ी,
कुदरत बणाए जोड़ा ।
इक्के बिरछ दे फल ने,
मिट्ठा ते कोई कौड़ा ।
परबत है या कि तीला,
कोई नहीं बिलोड़ा ।
दरसाउंदे ने एहो,
कुदरत दे सभ इह पन्ने ।
जो इक अकाल मन्ने,
मन्ने ना मैनूं मन्ने ।
27. गुरू नानक नूंआ बाबा तेरा वतन है वीरान हो ग्या,
रब्ब दे घरां दा राखा मुड़ शैतान हो ग्या ।
'कलयुग्ग है रत्थ अगन दा', तूं आप आख्या,
मुड़ कूड़ ओस रत्थ दा, रथवान हो ग्या ।
जो ख़ाब सी तूं देख्या, वण थल्ले सुत्त्यां,
सोहना उह तेरा ख़ाब परेशान हो ग्या ।
उह मच्चे तेरे देश दी हिक्क ते उलंभड़े,
पंज-पाणियां दा पानी वी हैरान हो ग्या ।
उह झुलियां तेरे देश ते मारू हनेरियां,
उड के असाडा आहलना कक्ख कान हो ग्या ।
जुग्गां दी सांझी सभ्भिता पैरीं लितड़ गई,
सदियां दे सांझे खून दा वी नहान हो ग्या ।
वंड बैठे तेरे पुत्त ने सांझे सवरग नूं,
वंड्या सवरग नरक दा सम्यान हो ग्या ।
उधर धरम ग्रंथां ते मन्दरां दा जस ग्या,
एधर मसीतों बाहर है कुरआन हो ग्या ।
हन्दवाणियां, तुरकाणियां दोहां दी पत गई
बुरके संधूर दोहां दा अपमान हो ग्या ।
इक पासे पाक, पाकी, पाकिसतान हो ग्या,
इक पासे हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुसतान हो ग्या ।
इक्क सज्जी तेरी अक्ख सी, इक्क खब्बी तेरी अक्ख,
दोहां अक्खां दा हाल ते नुकसान हो ग्या ।
कुझ ऐसा कुफ़र तोल्या ईमान वाल्यां,
कि कुफ़र तों वी हौला है ईमान हो ग्या ।
मुड़ मैदे बासमतियां दा आदर है वध्या,
मुड़ कोधरे दी रोटी दा अपमान हो ग्या ।
मुड़ भागोआं दे चादरीं छिट्टे ने ख़ून दे,
मुड़ लालोआं दे ख़ून दा नुचड़ान हो ग्या ।
फिर उच्यां दे महलां ते सोना मड़्ही रेहा,
फिर नीव्यां दी कुल्ली दा वी वाहन हो ग्या ।
'उस सूर उस गाउं' दा हक्क नाहरा लायआ तूं
इह हक्क पर नेहक्क तों कुरबान हो ग्या ।
मुड़ गाउने पए ने मैनूं सोहले ख़ून दे,
पा पा के कुंगू रत्त दा रतलान हो ग्या ।
तूं रब्ब नूं वंगार्या, तैनूं वंगारां मै:
"आया ना तैं की दरद ऐना घान हो ग्या ।"
28. नानकी दा गीतसाडे वेहड़े आया माए, नूर कोई रब्ब दा,
सारे जग वेख ल्या सानूं क्युं ना लभदा ?
वेख ल्या दाईआं ते पछान ल्या पांध्यां,
मुल्लां कुरबान होया मुख नूं तकांद्यां ।
मझ्झियां ते गाईआं डिट्ठा चुक्क चुक्क बूथियां,
कीड़्यां ते कांढ्यां वी लभ लईआं खूबियां ।
पंछियां पछान लए माए उहदे बोल नी,
चितरे ते शेर सुत्ते मसत उहदे कोल नी ।
वना कीते साए, सप्पां छज्जलियां खिलारियां,
सागरां ने राह दित्ते, मच्छां ने सवारियां ।
तक्क के इशारे उहदे मौल पईआं वाड़ियां,
लग उहदे पंजे नाल रुकियां पहाड़ियां ।
तक्क उहदे नैणां दियां डूंघियां खुमारियां,
भुल्ल गईआं टूने कामरूप दियां नारियां ।
ठग्गां नूं ठगौरी भुल्ली पैरीं उहदे लग्ग नी,
तपदे कड़ाहे बुझ्झे, ठंढी होई अग्ग नी ।
हल्लियां जां रता मेरे वीर दियां बुल्ल्हियां,
जोगियां नूं रिद्धां, निद्धां, सिधां सभ भुल्लियां ।
इह की ए जहान, सारे जग उहदे गोले नी,
चन्द सूर गहने असमान उहदे चोले नी ।
जलां थलां अम्बरां अकाशां उहनूं पा ल्या,
रेत द्यां ज़र्र्यां वी ओस नूं तका ल्या ।
सारे जग वेख ल्या सानूं क्युं ना लभदा ?
साडे वेहड़े आया माए, नूर कोई रब्ब दा ।
29. पीर नानकरुतबे शाहां दे रक्खदे जग्ग उत्ते,
तेरे बूहे दे जेड़्हे फ़कीर नानक ।
पक्की सनद है सवरग दे वासते इह,
तेरी गोदड़ी दी पाटी लीर नानक ।
तेरे पैरां दी मली जिस ख़ाक पिंडे,
कुन्दन हो ग्या ओद्हा सरीर नानक ।
भला बन्दे हकीकत की रक्खदे ने,
कढ्ढे पत्थरां दे विच्चों नीर नानक ।
होए ओस थां ठीकरे ठाकरां दे,
गए घत्त के जिधर वहीर नानक ।
पायआ इक्क ओंकार दे राह सिद्धे,
पा के 'इक' दी इक्क लकीर नानक ।
जेड़्हे जेड़्हे सन ज़ुलम कमान वाले,
तुसां कर दित्ते सिद्धे तीर नानक ।
जलवे नूर दे वेखदा रहां हरदम,
वस्से अक्खियां विच्च तसवीर नानक ।
दुनियां थक्क गई ए गिन गिन गुन तेरे,
पायआ अंत ना गुनी गहीर नानक ।
करां दस्स की शान ब्यान तेरी ?
गुरू सिक्खां दे 'शरफ़' दे पीर नानक ।
30. हारेमैं की गुन तेरे बाबा लिखन जोगा ?
अग्गे कई लक्खां लिखणहार हारे ।
तेरे नां पवित्तर दे नुकत्यां 'चों,
नुकते लभ्भदे दोवें संसार हारे ।
तेरे सिमरन प्यारे दे तेज अग्गे,
चन्न चौदें दा सने परवार हारे ।
तेरे रुक्ख दी छां ना रती हिल्ले,
सूरज जेहां दी धुप्प बलकार हारे ।
'जेहा सिट्टा गुर्याई दा कढ्ढदैं तूं,
पैली पुंगरे ते ज़िमीदार हारे ।
दस्सें हरफ़ 'जहे वेद कुरान विच्चों,
पंडत मौलवी छड्ड तकरार हारे ।
तेरे मोदीखाने रहन अंत वाधे,
कर कर कई लेखे अलोकार हारे ।
तेरे इक्क ओअंकार दे शबद सुन के,
कौडे जहे राखश कई हज़ार हारे ।
तेरे मत्थे दी वेख के शुभ रेखा,
होनी जही अटल्ल सरकार हारे ।
तेरी चक्की दा चल्लना वेख के ते,
बाबर जेहे अमोड़ कह्हार हारे ।
दौलत नाम दी वेख के कोल तेरे,
सज्जन ठग्ग जहे चोर चकार हारे ।
किते वली कंधारी जहे संगदिल दा,
तेरी शकतीयों किबर हंकार हारे ।
गल्लां डूंघियां बाले तों सुन सुन के,
उच्चे उच्चे विचारे विचार हारे ।
ऐसी तार मरदाने नूं बन्न्ह दित्ता,
ना उह हारे न ओहदी सतार हारे ।
तेरी बानी दा सागर ए बड़ा डूंघा,
ला ला टुब्बियां कई इलमदार हारे ।
मुक्के तेरे भंडार अगिनत दे ना,
पौंदे लुट्ट लक्खां औगणहार हारे ।
खेडी खेड तूं बाबा जो अंत वेले,
ओहनूं वेखके रिशी अवतार हारे ।
हन्दू कहन साडा मुसलिम कहन साडा,
दोहां विच्चों ना कोई पंकार हारे ।
आप कन्नी छुडाई फड़ाई चादर,
एधर पौंदे इह डंड पुकार हारे ।
'शरफ़' आंहदा ए बाबा तूं जित्त ग्यों,
लड़दे होर सारे आख़रकार हारे ।
31. बालादिल दी कुफ़र स्याही मिट गई,
कीता नूर उजाला ।
वेख गुरू दे नैन नशीले,
हो ग्या उह मतवाला ।
हेरे फेरे, हरदम फेरे
मन मणके दी माला ।
धूड़ चरन दी 'शरफ़' होया जद
जग विच्च बण्या बाला ।
(बाला=उच्चा)
32. मरदानाजगदी जोत डिट्ठी जद नूरी
उड्ड आया परवाना ।
नानक नाम पयारे "पी" दी,
मद पी होया दिवाना ।
लोकीं कहन 'दीवाना' उसनूं,
उह 'दुर-दाना' दाना,
'शरफ़' प्यारे ज़िन्दा होया,
मर मर के मरदाना ।
(दुर-दाना=सुच्चा मोती)
33. गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐदोहरा
गुरू नानक दे वांग जो, भजन करन भजनीक ।
सिक्ख सेवक उस मंज़िल ते, पहुंच जांमदे ठीक ।
तरज़
देवां कावि सुना हस्स-हस्स मैं, बड़ा भर 'ता तरज़ विच्च रस मैं,
करां पहले गुरां दा जस्स मैं, मेरी जीभ की सिफ़त कर सकदी ऐ ।
कलम लिखदी रही, लिख थकदी ऐ ।
ल्या उत्तम बंस विच जरम ऐं, हुन्दा पिता दे दुआरे धरम ऐं,
पिंडा नरम मख़मलों नरम ऐं, चेहरा वांग गुलाबी फुल्ल दे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
गल्ल रब्ब दे बन्दे दी तोरी, डाढे रंगत बना 'ती गोरी,
अक्ख रस दी भरी कटोरी, पिंड्युं कसतूरी महके जी ।
मत्था चन्दरमां वांगूं टहके जी ।
तसवीर बनी मन-मोहणी, कद्द 'म्याना' सजे खड़्होणी,
दन्दराल यूसफ़ों सोहणी, जब हसदे फ़लावर डुल्हदे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
जदों गुरू सी उमर दे लैरे, मझ्झां चारन इक्क जा बह र्हे,
पै गए धुप्प विच सिख़र दुपहरे, जब सूरज सिर ते आया सी ।
सप्प फन दा कर 'ता सायआ सी ।
गल्ल किसे ने नगर विच्च दस 'ती, ऐथे ऐहो ज्ही पवित्तर हसती,
सारी वेखन जांदी बसती, सुन पड़दे कन्नां दे खुल्हदे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
घर खत्तरी दे जनम जहानां, दूजा बाला जाट दीवाना,
तीजा मीर रल्या मरदाना, कट्ठे बहके साज़ वजाउंदे सी ।
रब्ब नां दे सोहले गाउंदे सी ।
देवे छूत ढुक्कन ना नेड़े, वड़े भूत-भरम ना वेहड़े,
बह के तिक्कड़ी राग नूं छेड़े, पर नगमें ज्युं बुलबुल दे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
गुरू हरि दा दुआरा मल्ल्या, दीवा अन्दर नाम दा जल्या,
पिता कालू वनज नूं घल्ल्या, सच्चे करे से सौदे जी ।
नाल मुशकल मिलदे अहुदे जी ।
तोले तक्कड़ी ते पकड़ पंसेरा, शावा धन त्यागी शेरा,
कही जांदे 'तेरा तेरा', बस दाने सारे तुल्लदे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
गए परबत ते इक वारी, उत्थे झगड़्या 'पीर कंधारी',
उहने डेग 'ती पहाड़ी भारी, फड़ गुरू नानक दे उत्ते जी ।
तिन्ने रह जावणगे सुत्ते जी ।
शायर करे ना वड्याई फोकी, इक्क हत्थ ते पहाड़ी रोकी,
'पंजा साहब' कहन कुल लोकी, सिक्ख याद रक्खन नहीं भुल्लदे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
करे तीरथ दूर वलैतां, अदि रच्या गरंथ हकैतां,
उत्ते लिखियां कुरानीं ऐतां, गल भगमें चोले सज्ज गए सी ।
नाले करन मक्के दा हज्ज गए सी ।
गुरू नानक जी अलबेले, जित्थे बह गए लग्ग गए मेले,
सिक्ख बण गए करोड़ां चेले, परचार सणौंदे मुल्ल दे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
'बाबू' छड्ड गए बिरध हो चोले, सच्चे साहब ने बुला लए कोले,
लोकां मगरों परोले फोले, लै ग्या पास बुला के कादर सी ।
दोहां दीनां ने वंड लई चादर जी ।
दस्सो मगरों फिरन की लभ्भदे, इक्क फूकन ते इक्क दब्बदे,
नूर रल ग्या नूर विच रब्ब दे, सिर छतर शहानां झुल्लदे ऐ ।
गुरू नानक सांझे कुल्ल दे ऐ ।
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Hindi Kavita
हिंदी कविता
तुखारी बारह माहा : गुरू नानक देव जी
Barah Maha Tukhari Raag Guru Nanak Dev Ji
बारह माहातू सुणि किरत करमा पुरबि कमाइआ ॥
सिरि सिरि सुख सहमा देहि सु तू भला ॥
हरि रचना तेरी किआ गति मेरी हरि बिनु घड़ी न जीवा ॥
प्रिअ बाझु दुहेली कोइ न बेली गुरमुखि अम्रितु पीवां ॥
रचना राचि रहे निरंकारी प्रभ मनि करम सुकरमा ॥
नानक पंथु निहाले सा धन तू सुणि आतम रामा ॥१॥
बाबीहा प्रिउ बोले कोकिल बाणीआ ॥
सा धन सभि रस चोलै अंकि समाणीआ ॥
हरि अंकि समाणी जा प्रभ भाणी सा सोहागणि नारे ॥
नव घर थापि महल घरु ऊचउ निज घरि वासु मुरारे ॥
सभ तेरी तू मेरा प्रीतमु निसि बासुर रंगि रावै ॥
नानक प्रिउ प्रिउ चवै बबीहा कोकिल सबदि सुहावै ॥२॥
तू सुणि हरि रस भिंने प्रीतम आपणे ॥
मनि तनि रवत रवंने घड़ी न बीसरै ॥
किउ घड़ी बिसारी हउ बलिहारी हउ जीवा गुण गाए ॥
ना कोई मेरा हउ किसु केरा हरि बिनु रहणु न जाए ॥
ओट गही हरि चरण निवासे भए पवित्र सरीरा ॥
नानक द्रिसटि दीरघ सुखु पावै गुर सबदी मनु धीरा ॥३॥
बरसै अम्रित धार बूंद सुहावणी ॥
साजन मिले सहजि सुभाइ हरि सिउ प्रीति बणी ॥
हरि मंदरि आवै जा प्रभ भावै धन ऊभी गुण सारी ॥
घरि घरि कंतु रवै सोहागणि हउ किउ कंति विसारी ॥
उनवि घन छाए बरसु सुभाए मनि तनि प्रेमु सुखावै ॥
नानक वरसै अम्रित बाणी करि किरपा घरि आवै ॥४॥
चेतु बसंतु भला भवर सुहावड़े ॥
बन फूले मंझ बारि मै पिरु घरि बाहुड़ै ॥
पिरु घरि नही आवै धन किउ सुखु पावै बिरहि बिरोध तनु छीजै ॥
कोकिल अम्बि सुहावी बोलै किउ दुखु अंकि सहीजै ॥
भवरु भवंता फूली डाली किउ जीवा मरु माए ॥
नानक चेति सहजि सुखु पावै जे हरि वरु घरि धन पाए ॥५॥
वैसाखु भला साखा वेस करे ॥
धन देखै हरि दुआरि आवहु दइआ करे ॥
घरि आउ पिआरे दुतर तारे तुधु बिनु अढु न मोलो ॥
कीमति कउण करे तुधु भावां देखि दिखावै ढोलो ॥
दूरि न जाना अंतरि माना हरि का महलु पछाना ॥
नानक वैसाखीं प्रभु पावै सुरति सबदि मनु माना ॥६॥
माहु जेठु भला प्रीतमु किउ बिसरै ॥
थल तापहि सर भार सा धन बिनउ करै ॥
धन बिनउ करेदी गुण सारेदी गुण सारी प्रभ भावा ॥
साचै महलि रहै बैरागी आवण देहि त आवा ॥
निमाणी निताणी हरि बिनु किउ पावै सुख महली ॥
नानक जेठि जाणै तिसु जैसी करमि मिलै गुण गहिली ॥७॥
आसाड़ु भला सूरजु गगनि तपै ॥
धरती दूख सहै सोखै अगनि भखै ॥
अगनि रसु सोखै मरीऐ धोखै भी सो किरतु न हारे ॥
रथु फिरै छाइआ धन ताकै टीडु लवै मंझि बारे ॥
अवगण बाधि चली दुखु आगै सुखु तिसु साचु समाले ॥
नानक जिस नो इहु मनु दीआ मरणु जीवणु प्रभ नाले ॥८॥
सावणि सरस मना घण वरसहि रुति आए ॥
मै मनि तनि सहु भावै पिर परदेसि सिधाए ॥
पिरु घरि नही आवै मरीऐ हावै दामनि चमकि डराए ॥
सेज इकेली खरी दुहेली मरणु भइआ दुखु माए ॥
हरि बिनु नीद भूख कहु कैसी कापड़ु तनि न सुखावए ॥
नानक सा सोहागणि कंती पिर कै अंकि समावए ॥९॥
भादउ भरमि भुली भरि जोबनि पछुताणी ॥
जल थल नीरि भरे बरस रुते रंगु माणी ॥
बरसै निसि काली किउ सुखु बाली दादर मोर लवंते ॥
प्रिउ प्रिउ चवै बबीहा बोले भुइअंगम फिरहि डसंते ॥
मछर डंग साइर भर सुभर बिनु हरि किउ सुखु पाईऐ ॥
नानक पूछि चलउ गुर अपुने जह प्रभु तह ही जाईऐ ॥१०॥
असुनि आउ पिरा सा धन झूरि मुई ॥
ता मिलीऐ प्रभ मेले दूजै भाइ खुई ॥
झूठि विगुती ता पिर मुती कुकह काह सि फुले ॥
आगै घाम पिछै रुति जाडा देखि चलत मनु डोले ॥
दह दिसि साख हरी हरीआवल सहजि पकै सो मीठा ॥
नानक असुनि मिलहु पिआरे सतिगुर भए बसीठा ॥११॥
कतकि किरतु पइआ जो प्रभ भाइआ ॥
दीपकु सहजि बलै तति जलाइआ ॥
दीपक रस तेलो धन पिर मेलो धन ओमाहै सरसी ॥
अवगण मारी मरै न सीझै गुणि मारी ता मरसी ॥
नामु भगति दे निज घरि बैठे अजहु तिनाड़ी आसा ॥
नानक मिलहु कपट दर खोलहु एक घड़ी खटु मासा ॥१२॥
मंघर माहु भला हरि गुण अंकि समावए ॥
गुणवंती गुण रवै मै पिरु निहचलु भावए ॥
निहचलु चतुरु सुजाणु बिधाता चंचलु जगतु सबाइआ ॥
गिआनु धिआनु गुण अंकि समाणे प्रभ भाणे ता भाइआ ॥
गीत नाद कवित कवे सुणि राम नामि दुखु भागै ॥
नानक सा धन नाह पिआरी अभ भगती पिर आगै ॥१३॥
पोखि तुखारु पड़ै वणु त्रिणु रसु सोखै ॥
आवत की नाही मनि तनि वसहि मुखे ॥
मनि तनि रवि रहिआ जगजीवनु गुर सबदी रंगु माणी ॥
अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥
दरसनु देहु दइआपति दाते गति पावउ मति देहो ॥
नानक रंगि रवै रसि रसीआ हरि सिउ प्रीति सनेहो ॥१४॥
माघि पुनीत भई तीरथु अंतरि जानिआ ॥
साजन सहजि मिले गुण गहि अंकि समानिआ ॥
प्रीतम गुण अंके सुणि प्रभ बंके तुधु भावा सरि नावा ॥
गंग जमुन तह बेणी संगम सात समुंद समावा ॥
पुंन दान पूजा परमेसुर जुगि जुगि एको जाता ॥
नानक माघि महा रसु हरि जपि अठसठि तीरथ नाता ॥१५॥
फलगुनि मनि रहसी प्रेमु सुभाइआ ॥
अनदिनु रहसु भइआ आपु गवाइआ ॥
मन मोहु चुकाइआ जा तिसु भाइआ करि किरपा घरि आओ ॥
बहुते वेस करी पिर बाझहु महली लहा न थाओ ॥
हार डोर रस पाट पट्मबर पिरि लोड़ी सीगारी ॥
नानक मेलि लई गुरि अपणै घरि वरु पाइआ नारी ॥१६॥
बे दस माह रुती थिती वार भले ॥
घड़ी मूरत पल साचे आए सहजि मिले ॥
प्रभ मिले पिआरे कारज सारे करता सभ बिधि जाणै ॥
जिनि सीगारी तिसहि पिआरी मेलु भइआ रंगु माणै ॥
घरि सेज सुहावी जा पिरि रावी गुरमुखि मसतकि भागो ॥
नानक अहिनिसि रावै प्रीतमु हरि वरु थिरु सोहागो ॥१७॥१॥੧੧੦੭-੦੯॥
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Hindi Kavita
हिंदी कविता
सलोक गुरू नानक देव जी
Salok Guru Nanak Dev Ji
1. कुदरति करि कै वसिआ सोइकुदरति करि कै वसिआ सोइ ॥
वखतु वीचारे सु बंदा होइ ॥
कुदरति है कीमति नही पाइ ॥
जा कीमति पाइ त कही न जाइ ॥
सरै सरीअति करहि बीचारु ॥
बिनु बूझे कैसे पावहि पारु ॥
सिदकु करि सिजदा मनु करि मखसूदु ॥
जिह धिरि देखा तिह धिरि मउजूदु ॥१॥(83)॥
2. गलीं असी चंगीआ आचारी बुरीआहगलीं असी चंगीआ आचारी बुरीआह ॥
मनहु कुसुधा कालीआ बाहरि चिटवीआह ॥
रीसा करिह तिनाड़ीआ जो सेवहि दरु खड़ीआह ॥
नालि खसमै रतीआ माणहि सुखि रलीआह ॥
होदै ताणि निताणीआ रहहि निमानणीआह ॥
नानक जनमु सकारथा जे तिन कै संगि मिलाह ॥२॥(85)॥
3. पहिलै पिआरि लगा थण दुधिपहिलै पिआरि लगा थण दुधि ॥
दूजै माइ बाप की सुधि ॥
तीजै भया भाभी बेब ॥
चउथै पिआरि उपंनी खेड ॥
पंजवै खाण पीअण की धातु ॥
छिवै कामु न पुछै जाति ॥
सतवै संजि कीआ घर वासु ॥
अठवै क्रोधु होआ तन नासु ॥
नावै धउले उभे साह ॥
दसवै दधा होआ सुआह ॥
गए सिगीत पुकारी धाह ॥
उडिआ हंसु दसाए राह ॥
आइआ गइआ मुइआ नाउ ॥
पिछै पतलि सदिहु काव ॥
नानक मनमुखि अंधु पिआरु ॥
बाझु गुरू डुबा संसारु ॥२॥(137)॥
4. दस बालतणि बीस रवणि तीसा का सुंदरु कहावैदस बालतणि बीस रवणि तीसा का सुंदरु कहावै ॥
चालीसी पुरु होइ पचासी पगु खिसै सठी के बोढेपा आवै ॥
सतरि का मतिहीणु असीहां का विउहारु न पावै ॥
नवै का सिहजासणी मूलि न जाणै अप बलु ॥
ढंढोलिमु ढूढिमु डिठु मै नानक जगु धूए का धवलहरु ॥३॥(138)॥
5. कूड़ु बोलि मुरदारु खाइकूड़ु बोलि मुरदारु खाइ ॥
अवरी नो समझावणि जाइ ॥
मुठा आपि मुहाए साथै ॥
नानक ऐसा आगू जापै ॥१॥(139)
6. जे रतु लगै कपड़ै जामा होइ पलीतुजे रतु लगै कपड़ै जामा होइ पलीतु ॥
जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमलु चीतु ॥
नानक नाउ खुदाइ का दिलि हछै मुखि लेहु ॥
अवरि दिवाजे दुनी के झूठे अमल करेहु ॥१॥(140)॥
7. जा हउ नाही ता किआ आखा किहु नाही किआ होवाजा हउ नाही ता किआ आखा किहु नाही किआ होवा ॥
कीता करणा कहिआ कथना भरिआ भरि भरि धोवां ॥
आपि न बुझा लोक बुझाई ऐसा आगू होवां ॥
नानक अंधा होइ कै दसे राहै सभसु मुहाए साथै ॥
अगै गइआ मुहे मुहि पाहि सु ऐसा आगू जापै ॥२॥(140)॥
8. मिहर मसीति सिदकु मुसला हकु हलालु कुराणुमिहर मसीति सिदकु मुसला हकु हलालु कुराणु ॥
सरम सुंनति सीलु रोजा होहु मुसलमाणु ॥
करणी काबा सचु पीरु कलमा करम निवाज ॥
तसबी सा तिसु भावसी नानक रखै लाज ॥१॥(140)9. हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइहकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ ॥
गुरु पीरु हामा ता भरे जा मुरदारु न खाइ ॥
गली भिसति न जाईऐ छुटै सचु कमाइ ॥
मारण पाहि हराम महि होइ हलालु न जाइ ॥
नानक गली कूड़ीई कूड़ो पलै पाइ ॥२॥(141)॥
10. पंजि निवाजा वखत पंजि पंजा पंजे नाउपंजि निवाजा वखत पंजि पंजा पंजे नाउ ॥
पहिला सचु हलाल दुइ तीजा खैर खुदाइ ॥
चउथी नीअति रासि मनु पंजवी सिफति सनाइ ॥
करणी कलमा आखि कै ता मुसलमाणु सदाइ ॥
नानक जेते कूड़िआर कूड़ै कूड़ी पाइ ॥३॥(141)॥
11. मुसलमाणु कहावणु मुसकलु जा होइ ता मुसलमाणु कहावैमुसलमाणु कहावणु मुसकलु जा होइ ता मुसलमाणु कहावै ॥
अवलि अउलि दीनु करि मिठा मसकल माना मालु मुसावै ॥
होइ मुसलिमु दीन मुहाणै मरण जीवण का भरमु चुकावै ॥
रब की रजाइ मंने सिर उपरि करता मंने आपु गवावै ॥
तउ नानक सरब जीआ मिहरमति होइ त मुसलमाणु कहावै ॥१॥(141)॥
12. नदीआ होवहि धेणवा सुम होवहि दुधु घीउनदीआ होवहि धेणवा सुम होवहि दुधु घीउ ॥
सगली धरती सकर होवै खुसी करे नित जीउ ॥
परबतु सुइना रुपा होवै हीरे लाल जड़ाउ ॥
भी तूंहै सालाहणा आखण लहै न चाउ ॥१॥
मः १ ॥
भार अठारह मेवा होवै गरुड़ा होइ सुआउ ॥
चंदु सूरजु दुइ फिरदे रखीअहि निहचलु होवै थाउ ॥
भी तूंहै सालाहणा आखण लहै न चाउ ॥२॥
मः १ ॥
जे देहै दुखु लाईऐ पाप गरह दुइ राहु ॥
रतु पीणे राजे सिरै उपरि रखीअहि एवै जापै भाउ ॥
भी तूंहै सालाहणा आखण लहै न चाउ ॥३॥
मः १ ॥
अगी पाला कपड़ु होवै खाणा होवै वाउ ॥
सुरगै दीआ मोहणीआ इसतरीआ होवनि नानक सभो जाउ ॥
भी तूहै सालाहणा आखण लहै न चाउ ॥४॥141॥
13. सो जीविआ जिसु मनि वसिआ सोइसो जीविआ जिसु मनि वसिआ सोइ ॥
नानक अवरु न जीवै कोइ ॥
जे जीवै पति लथी जाइ ॥
सभु हरामु जेता किछु खाइ ॥
राजि रंगु मालि रंगु ॥
रंगि रता नचै नंगु ॥
नानक ठगिआ मुठा जाइ ॥
विणु नावै पति गइआ गवाइ ॥१॥142॥
14. किआ खाधै किआ पैधै होइकिआ खाधै किआ पैधै होइ ॥
जा मनि नाही सचा सोइ ॥
किआ मेवा किआ घिउ गुड़ु मिठा किआ मैदा किआ मासु ॥
किआ कपड़ु किआ सेज सुखाली कीजहि भोग बिलास ॥
किआ लसकर किआ नेब खवासी आवै महली वासु ॥
नानक सचे नाम विणु सभे टोल विणासु ॥२॥(142)॥
15. मछी तारू किआ करे पंखी किआ आकासुमछी तारू किआ करे पंखी किआ आकासु ॥
पथर पाला किआ करे खुसरे किआ घर वासु ॥
कुते चंदनु लाईऐ भी सो कुती धातु ॥
बोला जे समझाईऐ पड़ीअहि सिम्रिति पाठ ॥
अंधा चानणि रखीऐ दीवे बलहि पचास ॥
चउणे सुइना पाईऐ चुणि चुणि खावै घासु ॥
लोहा मारणि पाईऐ ढहै न होइ कपास ॥
नानक मूरख एहि गुण बोले सदा विणासु ॥१॥(143)॥
16. कैहा कंचनु तुटै सारुकैहा कंचनु तुटै सारु ॥
अगनी गंढु पाए लोहारु ॥
गोरी सेती तुटै भतारु ॥
पुतीं गंढु पवै संसारि ॥
राजा मंगै दितै गंढु पाइ ॥
भुखिआ गंढु पवै जा खाइ ॥
काला गंढु नदीआ मीह झोल ॥
गंढु परीती मिठे बोल ॥
बेदा गंढु बोले सचु कोइ ॥
मुइआ गंढु नेकी सतु होइ ॥
एतु गंढि वरतै संसारु ॥
मूरख गंढु पवै मुहि मार ॥
नानकु आखै एहु बीचारु ॥
सिफती गंढु पवै दरबारि ॥२॥(143)॥
17. कलि काती राजे कासाई धरमु पंख करि उडरिआकलि काती राजे कासाई धरमु पंख करि उडरिआ ॥
कूड़ु अमावस सचु चंद्रमा दीसै नाही कह चड़िआ ॥
हउ भालि विकुंनी होई ॥
आधेरै राहु न कोई ॥
विचि हउमै करि दुखु रोई ॥
कहु नानक किनि बिधि गति होई ॥१॥(145)॥
18. सबाही सालाह जिनी धिआइआ इक मनिसबाही सालाह जिनी धिआइआ इक मनि ॥
सेई पूरे साह वखतै उपरि लड़ि मुए ॥
दूजै बहुते राह मन कीआ मती खिंडीआ ॥
बहुतु पए असगाह गोते खाहि न निकलहि ॥
तीजै मुही गिराह भुख तिखा दुइ भउकीआ ॥
खाधा होइ सुआह भी खाणे सिउ दोसती ॥
चउथै आई ऊंघ अखी मीटि पवारि गइआ ॥
भी उठि रचिओनु वादु सै वर्हिआ की पिड़ बधी ॥
सभे वेला वखत सभि जे अठी भउ होइ ॥
नानक साहिबु मनि वसै सचा नावणु होइ ॥१॥(145)॥
19. सचे तेरे खंड सचे ब्रहमंडसचे तेरे खंड सचे ब्रहमंड ॥
सचे तेरे लोअ सचे आकार ॥
सचे तेरे करणे सरब बीचार ॥
सचा तेरा अमरु सचा दीबाणु ॥
सचा तेरा हुकमु सचा फुरमाणु ॥
सचा तेरा करमु सचा नीसाणु ॥
सचे तुधु आखहि लख करोड़ि ॥
सचै सभि ताणि सचै सभि जोरि ॥
सची तेरी सिफति सची सालाह ॥
सची तेरी कुदरति सचे पातिसाह ॥
नानक सचु धिआइनि सचु ॥
जो मरि जमे सु कचु निकचु ॥१॥(463)॥
20. वडी वडिआई जा वडा नाउवडी वडिआई जा वडा नाउ ॥
वडी वडिआई जा सचु निआउ ॥
वडी वडिआई जा निहचल थाउ ॥
वडी वडिआई जाणै आलाउ ॥
वडी वडिआई बुझै सभि भाउ ॥
वडी वडिआई जा पुछि न दाति ॥
वडी वडिआई जा आपे आपि ॥
नानक कार न कथनी जाइ ॥
कीता करणा सरब रजाइ ॥२॥(463)॥
21. विसमादु नाद विसमादु वेदविसमादु नाद विसमादु वेद ॥
विसमादु जीअ विसमादु भेद ॥
विसमादु रूप विसमादु रंग ॥
विसमादु नागे फिरहि जंत ॥
विसमादु पउणु विसमादु पाणी ॥
विसमादु अगनी खेडहि विडाणी ॥
विसमादु धरती विसमादु खाणी ॥
विसमादु सादि लगहि पराणी ॥
विसमादु संजोगु विसमादु विजोगु ॥
विसमादु भुख विसमादु भोगु ॥
विसमादु सिफति विसमादु सालाह ॥
विसमादु उझड़ विसमादु राह ॥
विसमादु नेड़ै विसमादु दूरि ॥
विसमादु देखै हाजरा हजूरि ॥
वेखि विडाणु रहिआ विसमादु ॥
नानक बुझणु पूरै भागि ॥१॥(463)॥
22. कुदरति दिसै कुदरति सुणीऐ कुदरति भउ सुख सारुकुदरति दिसै कुदरति सुणीऐ कुदरति भउ सुख सारु ॥
कुदरति पाताली आकासी कुदरति सरब आकारु ॥
कुदरति वेद पुराण कतेबा कुदरति सरब वीचारु ॥
कुदरति खाणा पीणा पैन्हणु कुदरति सरब पिआरु ॥
कुदरति जाती जिनसी रंगी कुदरति जीअ जहान ॥
कुदरति नेकीआ कुदरति बदीआ कुदरति मानु अभिमानु ॥
कुदरति पउणु पाणी बैसंतरु कुदरति धरती खाकु ॥
सभ तेरी कुदरति तूं कादिरु करता पाकी नाई पाकु ॥
नानक हुकमै अंदरि वेखै वरतै ताको ताकु ॥२॥(464)॥
23. भै विचि पवणु वहै सदवाउभै विचि पवणु वहै सदवाउ ॥
भै विचि चलहि लख दरीआउ ॥
भै विचि अगनि कढै वेगारि ॥
भै विचि धरती दबी भारि ॥
भै विचि इंदु फिरै सिर भारि ॥
भै विचि राजा धरम दुआरु ॥
भै विचि सूरजु भै विचि चंदु ॥
कोह करोड़ी चलत न अंतु ॥
भै विचि सिध बुध सुर नाथ ॥
भै विचि आडाणे आकास ॥
भै विचि जोध महाबल सूर ॥
भै विचि आवहि जावहि पूर ॥
सगलिआ भउ लिखिआ सिरि लेखु ॥
नानक निरभउ निरंकारु सचु एकु ॥१॥(464)॥
24. नानक निरभउ निरंकारु होरि केते राम रवालनानक निरभउ निरंकारु होरि केते राम रवाल ॥
केतीआ कंन्ह कहाणीआ केते बेद बीचार ॥
केते नचहि मंगते गिड़ि मुड़ि पूरहि ताल ॥
बाजारी बाजार महि आइ कढहि बाजार ॥
गावहि राजे राणीआ बोलहि आल पताल ॥
लख टकिआ के मुंदड़े लख टकिआ के हार ॥
जितु तनि पाईअहि नानका से तन होवहि छार ॥
गिआनु न गलीई ढूढीऐ कथना करड़ा सारु ॥
करमि मिलै ता पाईऐ होर हिकमति हुकमु खुआरु ॥२॥(464)॥
25. घड़ीआ सभे गोपीआ पहर कंन्ह गोपालघड़ीआ सभे गोपीआ पहर कंन्ह गोपाल ॥
गहणे पउणु पाणी बैसंतरु चंदु सूरजु अवतार ॥
सगली धरती मालु धनु वरतणि सरब जंजाल ॥
नानक मुसै गिआन विहूणी खाइ गइआ जमकालु ॥१॥(465)॥
26. वाइनि चेले नचनि गुरवाइनि चेले नचनि गुर ॥
पैर हलाइनि फेरन्हि सिर ॥
उडि उडि रावा झाटै पाइ ॥
वेखै लोकु हसै घरि जाइ ॥
रोटीआ कारणि पूरहि ताल ॥
आपु पछाड़हि धरती नालि ॥
गावनि गोपीआ गावनि कान्ह ॥
गावनि सीता राजे राम ॥
निरभउ निरंकारु सचु नामु ॥
जा का कीआ सगल जहानु ॥
सेवक सेवहि करमि चड़ाउ ॥
भिंनी रैणि जिन्हा मनि चाउ ॥
सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥
नदरी करमि लघाए पारि ॥
कोलू चरखा चकी चकु ॥
थल वारोले बहुतु अनंतु ॥
लाटू माधाणीआ अनगाह ॥
पंखी भउदीआ लैनि न साह ॥
सूऐ चाड़ि भवाईअहि जंत ॥
नानक भउदिआ गणत न अंत ॥
बंधन बंधि भवाए सोइ ॥
पइऐ किरति नचै सभु कोइ ॥
नचि नचि हसहि चलहि से रोइ ॥
उडि न जाही सिध न होहि ॥
नचणु कुदणु मन का चाउ ॥
नानक जिन्ह मनि भउ तिन्हा मनि भाउ ॥२॥(465)॥
27. मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारुमुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥
बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥
हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥
तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥
जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥
सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥
सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥
दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥
चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥
इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥
जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥
ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥
नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥
सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥(466)॥
28. मिटी मुसलमान की पेड़ै पई कुम्हिआरमिटी मुसलमान की पेड़ै पई कुम्हिआर ॥
घड़ि भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार ॥
जलि जलि रोवै बपुड़ी झड़ि झड़ि पवहि अंगिआर ॥
नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणै करतारु ॥२॥(466)॥
29. हउ विचि आइआ हउ विचि गइआहउ विचि आइआ हउ विचि गइआ ॥
हउ विचि जमिआ हउ विचि मुआ ॥
हउ विचि दिता हउ विचि लइआ ॥
हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ ॥
हउ विचि सचिआरु कूड़िआरु ॥
हउ विचि पाप पुंन वीचारु ॥
हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु ॥
हउ विचि हसै हउ विचि रोवै ॥
हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै ॥
हउ विचि जाती जिनसी खोवै ॥
हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा ॥
मोख मुकति की सार न जाणा ॥
हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ ॥
हउमै करि करि जंत उपाइआ ॥
हउमै बूझै ता दरु सूझै ॥
गिआन विहूणा कथि कथि लूझै ॥
नानक हुकमी लिखीऐ लेखु ॥
जेहा वेखहि तेहा वेखु ॥१॥(466)॥
30. पुरखां बिरखां तीरथां तटां मेघां खेतांहपुरखां बिरखां तीरथां तटां मेघां खेतांह ॥
दीपां लोआं मंडलां खंडां वरभंडांह ॥
अंडज जेरज उतभुजां खाणी सेतजांह ॥
सो मिति जाणै नानका सरां मेरां जंताह ॥
नानक जंत उपाइ कै समाले सभनाह ॥
जिनि करतै करणा कीआ चिंता भि करणी ताह ॥
सो करता चिंता करे जिनि उपाइआ जगु ॥
तिसु जोहारी सुअसति तिसु तिसु दीबाणु अभगु ॥
नानक सचे नाम बिनु किआ टिका किआ तगु ॥१॥(467)॥
31. लख नेकीआ चंगिआईआ लख पुंना परवाणुलख नेकीआ चंगिआईआ लख पुंना परवाणु ॥
लख तप उपरि तीरथां सहज जोग बेबाण ॥
लख सूरतण संगराम रण महि छुटहि पराण ॥
लख सुरती लख गिआन धिआन पड़ीअहि पाठ पुराण ॥
जिनि करतै करणा कीआ लिखिआ आवण जाणु ॥
नानक मती मिथिआ करमु सचा नीसाणु ॥२॥(467)॥
32. पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथपड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ ॥
पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात ॥
पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास ॥
पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास ॥
नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख ॥१॥(467)॥
33. लिखि लिखि पड़िआलिखि लिखि पड़िआ ॥
तेता कड़िआ ॥
बहु तीरथ भविआ ॥
तेतो लविआ ॥
बहु भेख कीआ देही दुखु दीआ ॥
सहु वे जीआ अपणा कीआ ॥
अंनु न खाइआ सादु गवाइआ ॥
बहु दुखु पाइआ दूजा भाइआ ॥
बसत्र न पहिरै ॥
अहिनिसि कहरै ॥
मोनि विगूता ॥
किउ जागै गुर बिनु सूता ॥
पग उपेताणा ॥
अपणा कीआ कमाणा ॥
अलु मलु खाई सिरि छाई पाई ॥
मूरखि अंधै पति गवाई ॥
विणु नावै किछु थाइ न पाई ॥
रहै बेबाणी मड़ी मसाणी ॥
अंधु न जाणै फिरि पछुताणी ॥
सतिगुरु भेटे सो सुखु पाए ॥
हरि का नामु मंनि वसाए ॥
नानक नदरि करे सो पाए ॥
आस अंदेसे ते निहकेवलु हउमै सबदि जलाए ॥२॥(467)॥
34. कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारुकूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु ॥
कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु ॥
कूड़ु सुइना कूड़ु रुपा कूड़ु पैन्हणहारु ॥
कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु ॥
कूड़ु मीआ कूड़ु बीबी खपि होए खारु ॥
कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु ॥
किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु ॥
कूड़ु मिठा कूड़ु माखिउ कूड़ु डोबे पूरु ॥
नानकु वखाणै बेनती तुधु बाझु कूड़ो कूड़ु ॥१॥(468)॥
35. सचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइसचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइ ॥
कूड़ की मलु उतरै तनु करे हछा धोइ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा सचि धरे पिआरु ॥
नाउ सुणि मनु रहसीऐ ता पाए मोख दुआरु ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा जुगति जाणै जीउ ॥
धरति काइआ साधि कै विचि देइ करता बीउ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा सिख सची लेइ ॥
दइआ जाणै जीअ की किछु पुंनु दानु करेइ ॥
सचु तां परु जाणीऐ जा आतम तीरथि करे निवासु ॥
सतिगुरू नो पुछि कै बहि रहै करे निवासु ॥
सचु सभना होइ दारू पाप कढै धोइ ॥
नानकु वखाणै बेनती जिन सचु पलै होइ ॥२॥(468)॥
36. सचि कालु कूड़ु वरतिआ कलि कालख बेतालसचि कालु कूड़ु वरतिआ कलि कालख बेताल ॥
बीउ बीजि पति लै गए अब किउ उगवै दालि ॥
जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥
नानक पाहै बाहरा कोरै रंगु न सोइ ॥
भै विचि खु्मबि चड़ाईऐ सरमु पाहु तनि होइ ॥
नानक भगती जे रपै कूड़ै सोइ न कोइ ॥१॥
(468)॥
37. लबु पापु दुइ राजा महता कूड़ु होआ सिकदारुलबु पापु दुइ राजा महता कूड़ु होआ सिकदारु ॥
कामु नेबु सदि पुछीऐ बहि बहि करे बीचारु ॥
अंधी रयति गिआन विहूणी भाहि भरे मुरदारु ॥
गिआनी नचहि वाजे वावहि रूप करहि सीगारु ॥
ऊचे कूकहि वादा गावहि जोधा का वीचारु ॥
मूरख पंडित हिकमति हुजति संजै करहि पिआरु ॥
धरमी धरमु करहि गावावहि मंगहि मोख दुआरु ॥
जती सदावहि जुगति न जाणहि छडि बहहि घर बारु ॥
सभु को पूरा आपे होवै घटि न कोई आखै ॥
पति परवाणा पिछै पाईऐ ता नानक तोलिआ जापै ॥२॥(468)॥
38. वदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइवदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइ ॥
सभनी छाला मारीआ करता करे सु होइ ॥
अगै जाति न जोरु है अगै जीउ नवे ॥
जिन की लेखै पति पवै चंगे सेई केइ ॥३॥(469)॥
39. दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होईदुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥
तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥(469)॥
40. नानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहुनानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहु ॥
जुगु जुगु फेरि वटाईअहि गिआनी बुझहि ताहि ॥
सतजुगि रथु संतोख का धरमु अगै रथवाहु ॥
त्रेतै रथु जतै का जोरु अगै रथवाहु ॥
दुआपुरि रथु तपै का सतु अगै रथवाहु ॥
कलजुगि रथु अगनि का कूड़ु अगै रथवाहु ॥१॥(470)॥
41. सिमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचुसिमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचु ॥
ओइ जि आवहि आस करि जाहि निरासे कितु ॥
फल फिके फुल बकबके कमि न आवहि पत ॥
मिठतु नीवी नानका गुण चंगिआईआ ततु ॥
सभु को निवै आप कउ पर कउ निवै न कोइ ॥
धरि ताराजू तोलीऐ निवै सु गउरा होइ ॥
अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि ॥
सीसि निवाइऐ किआ थीऐ जा रिदै कुसुधे जाहि ॥१॥(470)॥
42. पड़ि पुसतक संधिआ बादंपड़ि पुसतक संधिआ बादं ॥
सिल पूजसि बगुल समाधं ॥
मुखि झूठ बिभूखण सारं ॥
त्रैपाल तिहाल बिचारं ॥
गलि माला तिलकु लिलाटं ॥
दुइ धोती बसत्र कपाटं ॥
जे जाणसि ब्रहमं करमं ॥
सभि फोकट निसचउ करमं ॥
कहु नानक निहचउ धिआवै ॥
विणु सतिगुर वाट न पावै ॥२॥(470)॥
43. साम कहै सेत्मबरु सुआमी सच महि आछै साचि रहेसाम कहै सेत्मबरु सुआमी सच महि आछै साचि रहे ॥
सभु को सचि समावै ॥
रिगु कहै रहिआ भरपूरि ॥
राम नामु देवा महि सूरु ॥
नाइ लइऐ पराछत जाहि ॥
नानक तउ मोखंतरु पाहि ॥
जुज महि जोरि छली चंद्रावलि कान्ह क्रिसनु जादमु भइआ ॥
पारजातु गोपी लै आइआ बिंद्राबन महि रंगु कीआ ॥
कलि महि बेदु अथरबणु हूआ नाउ खुदाई अलहु भइआ ॥
नील बसत्र ले कपड़े पहिरे तुरक पठाणी अमलु कीआ ॥
चारे वेद होए सचिआर ॥
पड़हि गुणहि तिन्ह चार वीचार ॥
भाउ भगति करि नीचु सदाए ॥
तउ नानक मोखंतरु पाए ॥२॥(470)॥
44. दइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटुदइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ॥
एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घतु ॥
ना एहु तुटै न मलु लगै ना एहु जलै न जाइ ॥
धंनु सु माणस नानका जो गलि चले पाइ ॥
चउकड़ि मुलि अणाइआ बहि चउकै पाइआ ॥
सिखा कंनि चड़ाईआ गुरु ब्राहमणु थिआ ॥
ओहु मुआ ओहु झड़ि पइआ वेतगा गइआ ॥१॥
(471)॥
45. लख चोरीआ लख जारीआ लख कूड़ीआ लख गालिलख चोरीआ लख जारीआ लख कूड़ीआ लख गालि ॥
लख ठगीआ पहिनामीआ राति दिनसु जीअ नालि ॥
तगु कपाहहु कतीऐ बाम्हणु वटे आइ ॥
कुहि बकरा रिंन्हि खाइआ सभु को आखै पाइ ॥
होइ पुराणा सुटीऐ भी फिरि पाईऐ होरु ॥
नानक तगु न तुटई जे तगि होवै जोरु ॥२॥
मः १ ॥
नाइ मंनिऐ पति ऊपजै सालाही सचु सूतु ॥
दरगह अंदरि पाईऐ तगु न तूटसि पूत ॥३॥(471)॥
46. तगु न इंद्री तगु न नारीतगु न इंद्री तगु न नारी ॥
भलके थुक पवै नित दाड़ी ॥
तगु न पैरी तगु न हथी ॥
तगु न जिहवा तगु न अखी ॥
वेतगा आपे वतै ॥
वटि धागे अवरा घतै ॥
लै भाड़ि करे वीआहु ॥
कढि कागलु दसे राहु ॥
सुणि वेखहु लोका एहु विडाणु ॥
मनि अंधा नाउ सुजाणु ॥४॥(471)॥
47. गऊ बिराहमण कउ करु लावहु गोबरि तरणु न जाईगऊ बिराहमण कउ करु लावहु गोबरि तरणु न जाई ॥
धोती टिका तै जपमाली धानु मलेछां खाई ॥
अंतरि पूजा पड़हि कतेबा संजमु तुरका भाई ॥
छोडीले पाखंडा ॥
नामि लइऐ जाहि तरंदा ॥१॥(471)॥
48. माणस खाणे करहि निवाजमाणस खाणे करहि निवाज ॥
छुरी वगाइनि तिन गलि ताग ॥
तिन घरि ब्रहमण पूरहि नाद ॥
उन्हा भि आवहि ओई साद ॥
कूड़ी रासि कूड़ा वापारु ॥
कूड़ु बोलि करहि आहारु ॥
सरम धरम का डेरा दूरि ॥
नानक कूड़ु रहिआ भरपूरि ॥
मथै टिका तेड़ि धोती कखाई ॥
हथि छुरी जगत कासाई ॥
नील वसत्र पहिरि होवहि परवाणु ॥
मलेछ धानु ले पूजहि पुराणु ॥
अभाखिआ का कुठा बकरा खाणा ॥
चउके उपरि किसै न जाणा ॥
दे कै चउका कढी कार ॥
उपरि आइ बैठे कूड़िआर ॥
मतु भिटै वे मतु भिटै ॥
इहु अंनु असाडा फिटै ॥
तनि फिटै फेड़ करेनि ॥
मनि जूठै चुली भरेनि ॥
कहु नानक सचु धिआईऐ ॥
सुचि होवै ता सचु पाईऐ ॥२॥(471)॥
49. जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइजे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥
अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥
वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥
नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥(472)॥
50. जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वारजिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ॥
जूठे जूठा मुखि वसै नित नित होइ खुआरु ॥
सूचे एहि न आखीअहि बहनि जि पिंडा धोइ ॥
सूचे सेई नानका जिन मनि वसिआ सोइ ॥२॥(472)॥
51. जे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइजे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइ ॥
गोहे अतै लकड़ी अंदरि कीड़ा होइ ॥
जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ॥
पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥
सूतकु किउ करि रखीऐ सूतकु पवै रसोइ ॥
नानक सूतकु एव न उतरै गिआनु उतारे धोइ ॥१॥
मः १ ॥
मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु ॥
अखी सूतकु वेखणा पर त्रिअ पर धन रूपु ॥
कंनी सूतकु कंनि पै लाइतबारी खाहि ॥
नानक हंसा आदमी बधे जम पुरि जाहि ॥२॥
मः १ ॥
सभो सूतकु भरमु है दूजै लगै जाइ ॥
जमणु मरणा हुकमु है भाणै आवै जाइ ॥
खाणा पीणा पवित्रु है दितोनु रिजकु स्मबाहि ॥
नानक जिन्ही गुरमुखि बुझिआ तिन्हा सूतकु नाहि ॥३॥(472)॥
52. पहिला सुचा आपि होइ सुचै बैठा आइपहिला सुचा आपि होइ सुचै बैठा आइ ॥
सुचे अगै रखिओनु कोइ न भिटिओ जाइ ॥
सुचा होइ कै जेविआ लगा पड़णि सलोकु ॥
कुहथी जाई सटिआ किसु एहु लगा दोखु ॥
अंनु देवता पाणी देवता बैसंतरु देवता लूणु पंजवा पाइआ घिरतु ॥
ता होआ पाकु पवितु ॥
पापी सिउ तनु गडिआ थुका पईआ तितु ॥
जितु मुखि नामु न ऊचरहि बिनु नावै रस खाहि ॥
नानक एवै जाणीऐ तितु मुखि थुका पाहि ॥१॥(473)॥
53. भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहुभंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु ॥
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु ॥
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ॥
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जमहि राजान ॥
भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ ॥
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ ॥
जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि ॥
नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि ॥२॥(473)॥
54. नानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइनानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइ ॥
फिको फिका सदीऐ फिके फिकी सोइ ॥
फिका दरगह सटीऐ मुहि थुका फिके पाइ ॥
फिका मूरखु आखीऐ पाणा लहै सजाइ ॥१॥(473)॥
55. अंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलुअंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलु ॥
अठसठि तीरथ जे नावहि उतरै नाही मैलु ॥
जिन्ह पटु अंदरि बाहरि गुदड़ु ते भले संसारि ॥
तिन्ह नेहु लगा रब सेती देखन्हे वीचारि ॥
रंगि हसहि रंगि रोवहि चुप भी करि जाहि ॥
परवाह नाही किसै केरी बाझु सचे नाह ॥
दरि वाट उपरि खरचु मंगा जबै देइ त खाहि ॥
दीबानु एको कलम एका हमा तुम्हा मेलु ॥
दरि लए लेखा पीड़ि छुटै नानका जिउ तेलु ॥२॥(473)॥
56. आपे भांडे साजिअनु आपे पूरणु देइआपे भांडे साजिअनु आपे पूरणु देइ ॥
इकन्ही दुधु समाईऐ इकि चुल्है रहन्हि चड़े ॥
इकि निहाली पै सवन्हि इकि उपरि रहनि खड़े ॥
तिन्हा सवारे नानका जिन्ह कउ नदरि करे ॥१॥(475)॥
57. हिंदू मूले भूले अखुटी जांहीहिंदू मूले भूले अखुटी जांही ॥
नारदि कहिआ सि पूज करांही ॥
अंधे गुंगे अंध अंधारु ॥
पाथरु ले पूजहि मुगध गवार ॥
ओहि जा आपि डुबे तुम कहा तरणहारु ॥२॥(556)॥
58. सोरठि सदा सुहावणी जे सचा मनि होइसोरठि सदा सुहावणी जे सचा मनि होइ ॥
दंदी मैलु न कतु मनि जीभै सचा सोइ ॥
ससुरै पेईऐ भै वसी सतिगुरु सेवि निसंग ॥
परहरि कपड़ु जे पिर मिलै खुसी रावै पिरु संगि ॥
सदा सीगारी नाउ मनि कदे न मैलु पतंगु ॥
देवर जेठ मुए दुखि ससू का डरु किसु ॥
जे पिर भावै नानका करम मणी सभु सचु ॥१॥(642)॥
59. नावण चले तीरथी मनि खोटै तनि चोरनावण चले तीरथी मनि खोटै तनि चोर ॥
इकु भाउ लथी नातिआ दुइ भा चड़ीअसु होर ॥
बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर ॥
साध भले अणनातिआ चोर सि चोरा चोर ॥२॥(789)॥
60. सउ ओलाम्हे दिनै के राती मिलन्हि सहंससउ ओलाम्हे दिनै के राती मिलन्हि सहंस ॥
सिफति सलाहणु छडि कै करंगी लगा हंसु ॥
फिटु इवेहा जीविआ जितु खाइ वधाइआ पेटु ॥
नानक सचे नाम विणु सभो दुसमनु हेतु ॥२॥(790)॥
61. दीवा बलै अंधेरा जाइदीवा बलै अंधेरा जाइ ॥
बेद पाठ मति पापा खाइ ॥
उगवै सूरु न जापै चंदु ॥
जह गिआन प्रगासु अगिआनु मिटंतु ॥
बेद पाठ संसार की कार ॥
पड़्हि पड़्हि पंडित करहि बीचार ॥
बिनु बूझे सभ होइ खुआर ॥
नानक गुरमुखि उतरसि पारि ॥१॥
(791)॥
62. सती पापु करि सतु कमाहिसती पापु करि सतु कमाहि ॥
गुर दीखिआ घरि देवण जाहि ॥
इसतरी पुरखै खटिऐ भाउ ॥
भावै आवउ भावै जाउ ॥
सासतु बेदु न मानै कोइ ॥
आपो आपै पूजा होइ ॥
काजी होइ कै बहै निआइ ॥
फेरे तसबी करे खुदाइ ॥
वढी लै कै हकु गवाए ॥
जे को पुछै ता पड़ि सुणाए ॥
तुरक मंत्रु कनि रिदै समाहि ॥
लोक मुहावहि चाड़ी खाहि ॥
चउका दे कै सुचा होइ ॥
ऐसा हिंदू वेखहु कोइ ॥
जोगी गिरही जटा बिभूत ॥
आगै पाछै रोवहि पूत ॥
जोगु न पाइआ जुगति गवाई ॥
कितु कारणि सिरि छाई पाई ॥
नानक कलि का एहु परवाणु ॥
आपे आखणु आपे जाणु ॥१॥(951)॥
63. हिंदू कै घरि हिंदू आवैहिंदू कै घरि हिंदू आवै ॥
सूतु जनेऊ पड़ि गलि पावै ॥
सूतु पाइ करे बुरिआई ॥
नाता धोता थाइ न पाई ॥
मुसलमानु करे वडिआई ॥
विणु गुर पीरै को थाइ न पाई ॥
राहु दसाइ ओथै को जाइ ॥
करणी बाझहु भिसति न पाइ ॥
जोगी कै घरि जुगति दसाई ॥
तितु कारणि कनि मुंद्रा पाई ॥
मुंद्रा पाइ फिरै संसारि ॥
जिथै किथै सिरजणहारु ॥
जेते जीअ तेते वाटाऊ ॥
चीरी आई ढिल न काऊ ॥
एथै जाणै सु जाइ सिञाणै ॥
होरु फकड़ु हिंदू मुसलमाणै ॥
सभना का दरि लेखा होइ ॥
करणी बाझहु तरै न कोइ ॥
सचो सचु वखाणै कोइ ॥
नानक अगै पुछ न होइ ॥२॥(952)॥
64. ना सति दुखीआ ना सति सुखीआ ना सति पाणी जंत फिरहिना सति दुखीआ ना सति सुखीआ ना सति पाणी जंत फिरहि ॥
ना सति मूंड मुडाई केसी ना सति पड़िआ देस फिरहि ॥
ना सति रुखी बिरखी पथर आपु तछावहि दुख सहहि ॥
ना सति हसती बधे संगल ना सति गाई घाहु चरहि ॥
जिसु हथि सिधि देवै जे सोई जिस नो देइ तिसु आइ मिलै ॥
नानक ता कउ मिलै वडाई जिसु घट भीतरि सबदु रवै ॥
सभि घट मेरे हउ सभना अंदरि जिसहि खुआई तिसु कउणु कहै ॥
जिसहि दिखाला वाटड़ी तिसहि भुलावै कउणु ॥
जिसहि भुलाई पंध सिरि तिसहि दिखावै कउणु ॥१॥(952)॥
65. सो गिरही जो निग्रहु करैसो गिरही जो निग्रहु करै ॥
जपु तपु संजमु भीखिआ करै ॥
पुंन दान का करे सरीरु ॥
सो गिरही गंगा का नीरु ॥
बोलै ईसरु सति सरूपु ॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥२॥(952)॥
66. सो अउधूती जो धूपै आपुसो अउधूती जो धूपै आपु ॥
भिखिआ भोजनु करै संतापु ॥
अउहठ पटण महि भीखिआ करै ॥
सो अउधूती सिव पुरि चड़ै ॥
बोलै गोरखु सति सरूपु ॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥३॥(952)॥
67. सो उदासी जि पाले उदासुसो उदासी जि पाले उदासु ॥
अरध उरध करे निरंजन वासु ॥
चंद सूरज की पाए गंढि ॥
तिसु उदासी का पड़ै न कंधु ॥
बोलै गोपी चंदु सति सरूपु ॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥४॥(952)॥
68. सो पाखंडी जि काइआ पखालेसो पाखंडी जि काइआ पखाले ॥
काइआ की अगनि ब्रहमु परजाले ॥
सुपनै बिंदु न देई झरणा ॥
तिसु पाखंडी जरा न मरणा ॥
बोलै चरपटु सति सरूपु ॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥५॥(952)॥
69. सो बैरागी जि उलटे ब्रहमुसो बैरागी जि उलटे ब्रहमु ॥
गगन मंडल महि रोपै थमु ॥
अहिनिसि अंतरि रहै धिआनि ॥
ते बैरागी सत समानि ॥
बोलै भरथरि सति सरूपु ॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥६॥(953)॥
70. किउ मरै मंदा किउ जीवै जुगतिकिउ मरै मंदा किउ जीवै जुगति ॥
कंन पड़ाइ किआ खाजै भुगति ॥
आसति नासति एको नाउ ॥
कउणु सु अखरु जितु रहै हिआउ ॥
धूप छाव जे सम करि सहै ॥
ता नानकु आखै गुरु को कहै ॥
छिअ वरतारे वरतहि पूत ॥
ना संसारी ना अउधूत ॥
निरंकारि जो रहै समाइ ॥
काहे भीखिआ मंगणि जाइ ॥७॥(953)॥
71. नानकु आखै रे मना सुणीऐ सिख सहीनानकु आखै रे मना सुणीऐ सिख सही ॥
लेखा रबु मंगेसीआ बैठा कढि वही ॥
तलबा पउसनि आकीआ बाकी जिना रही ॥
अजराईलु फरेसता होसी आइ तई ॥
आवणु जाणु न सुझई भीड़ी गली फही ॥
कूड़ निखुटे नानका ओड़कि सचि रही ॥२॥(953)॥
72. सहंसर दान दे इंद्रु रोआइआसहंसर दान दे इंद्रु रोआइआ ॥
परस रामु रोवै घरि आइआ ॥
अजै सु रोवै भीखिआ खाइ ॥
ऐसी दरगह मिलै सजाइ ॥
रोवै रामु निकाला भइआ ॥
सीता लखमणु विछुड़ि गइआ ॥
रोवै दहसिरु लंक गवाइ ॥
जिनि सीता आदी डउरू वाइ ॥
रोवहि पांडव भए मजूर ॥
जिन कै सुआमी रहत हदूरि ॥
रोवै जनमेजा खुइ गइआ ॥
एकी कारणि पापी भइआ ॥
रोवहि सेख मसाइक पीर ॥
अंति कालि मतु लागै भीड़ ॥
रोवहि राजे कंन पड़ाइ ॥
घरि घरि मागहि भीखिआ जाइ ॥
रोवहि किरपन संचहि धनु जाइ ॥
पंडित रोवहि गिआनु गवाइ ॥
बाली रोवै नाहि भतारु ॥
नानक दुखीआ सभु संसारु ॥
मंने नाउ सोई जिणि जाइ ॥
अउरी करम न लेखै लाइ ॥१॥(953)॥
73. सावणु राति अहाड़ु दिहु कामु क्रोधु दुइ खेतसावणु राति अहाड़ु दिहु कामु क्रोधु दुइ खेत ॥
लबु वत्र दरोगु बीउ हाली राहकु हेत ॥
हलु बीचारु विकार मण हुकमी खटे खाइ ॥
नानक लेखै मंगिऐ अउतु जणेदा जाइ ॥१॥(955)॥
74. भउ भुइ पवितु पाणी सतु संतोखु बलेदभउ भुइ पवितु पाणी सतु संतोखु बलेद ॥
हलु हलेमी हाली चितु चेता वत्र वखत संजोगु ॥
नाउ बीजु बखसीस बोहल दुनीआ सगल दरोग ॥
नानक नदरी करमु होइ जावहि सगल विजोग ॥२॥(955)॥
75. नानक इहु जीउ मछुली झीवरु त्रिसना कालुनानक इहु जीउ मछुली झीवरु त्रिसना कालु ॥
मनूआ अंधु न चेतई पड़ै अचिंता जालु ॥
नानक चितु अचेतु है चिंता बधा जाइ ॥
नदरि करे जे आपणी ता आपे लए मिलाइ ॥२॥(955)॥
76. वेलि पिंञाइआ कति वुणाइआवेलि पिंञाइआ कति वुणाइआ ॥
कटि कुटि करि खु्मबि चड़ाइआ ॥
लोहा वढे दरजी पाड़े सूई धागा सीवै ॥
इउ पति पाटी सिफती सीपै नानक जीवत जीवै ॥
होइ पुराणा कपड़ु पाटै सूई धागा गंढै ॥
माहु पखु किहु चलै नाही घड़ी मुहतु किछु हंढै ॥
सचु पुराणा होवै नाही सीता कदे न पाटै ॥
नानक साहिबु सचो सचा तिचरु जापी जापै ॥१॥(956)॥
77. सच की काती सचु सभु सारुसच की काती सचु सभु सारु ॥
घाड़त तिस की अपर अपार ॥
सबदे साण रखाई लाइ ॥
गुण की थेकै विचि समाइ ॥
तिस दा कुठा होवै सेखु ॥
लोहू लबु निकथा वेखु ॥
होइ हलालु लगै हकि जाइ ॥
नानक दरि दीदारि समाइ ॥२॥(956)॥
78. कमरि कटारा बंकुड़ा बंके का असवारुकमरि कटारा बंकुड़ा बंके का असवारु ॥
गरबु न कीजै नानका मतु सिरि आवै भारु ॥३॥(956)॥
79. सरवर हंस धुरे ही मेला खसमै एवै भाणासरवर हंस धुरे ही मेला खसमै एवै भाणा ॥
सरवर अंदरि हीरा मोती सो हंसा का खाणा ॥
बगुला कागु न रहई सरवरि जे होवै अति सिआणा ॥
ओना रिजकु न पइओ ओथै ओन्हा होरो खाणा ॥
सचि कमाणै सचो पाईऐ कूड़ै कूड़ा माणा ॥
नानक तिन कौ सतिगुरु मिलिआ जिना धुरे पैया परवाणा ॥१॥(956)॥
80. साहिबु मेरा उजला जे को चिति करेइसाहिबु मेरा उजला जे को चिति करेइ ॥
नानक सोई सेवीऐ सदा सदा जो देइ ॥
नानक सोई सेवीऐ जितु सेविऐ दुखु जाइ ॥
अवगुण वंञनि गुण रवहि मनि सुखु वसै आइ ॥२॥(956)॥
81. विणु गाहक गुणु वेचीऐ तउ गुणु सहघो जाइविणु गाहक गुणु वेचीऐ तउ गुणु सहघो जाइ ॥
गुण का गाहकु जे मिलै तउ गुणु लाख विकाइ ॥
गुण ते गुण मिलि पाईऐ जे सतिगुर माहि समाइ ॥
मोलि अमोलु न पाईऐ वणजि न लीजै हाटि ॥
नानक पूरा तोलु है कबहु न होवै घाटि ॥१॥(1086)॥
82. हुकमि रजाई साखती दरगह सचु कबूलुहुकमि रजाई साखती दरगह सचु कबूलु ॥
साहिबु लेखा मंगसी दुनीआ देखि न भूलु ॥
दिल दरवानी जो करे दरवेसी दिलु रासि ॥
इसक मुहबति नानका लेखा करते पासि ॥१॥(1090)॥
83. सुणीऐ एकु वखाणीऐ सुरगि मिरति पइआलिसुणीऐ एकु वखाणीऐ सुरगि मिरति पइआलि ॥
हुकमु न जाई मेटिआ जो लिखिआ सो नालि ॥
कउणु मूआ कउणु मारसी कउणु आवै कउणु जाइ ॥
कउणु रहसी नानका किस की सुरति समाइ ॥१॥(1091)॥
84. हउ मुआ मै मारिआ पउणु वहै दरीआउहउ मुआ मै मारिआ पउणु वहै दरीआउ ॥
त्रिसना थकी नानका जा मनु रता नाइ ॥
लोइण रते लोइणी कंनी सुरति समाइ ॥
जीभ रसाइणि चूनड़ी रती लाल लवाइ ॥
अंदरु मुसकि झकोलिआ कीमति कही न जाइ ॥२॥(1091)॥
85. हउ मै करी तां तू नाही तू होवहि हउ नाहिहउ मै करी तां तू नाही तू होवहि हउ नाहि ॥
बूझहु गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि ॥
बिनु गुर ततु न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि ॥
सतिगुरु मिलै त जाणीऐ जां सबदु वसै मन माहि ॥
आपु गइआ भ्रमु भउ गइआ जनम मरन दुख जाहि ॥
गुरमति अलखु लखाईऐ ऊतम मति तराहि ॥
नानक सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि ॥१॥(1092)॥
86. न भीजै रागी नादी बेदिन भीजै रागी नादी बेदि ॥
न भीजै सुरती गिआनी जोगि ॥
न भीजै सोगी कीतै रोजि ॥
न भीजै रूपीं मालीं रंगि ॥
न भीजै तीरथि भविऐ नंगि ॥
न भीजै दातीं कीतै पुंनि ॥
न भीजै बाहरि बैठिआ सुंनि ॥
न भीजै भेड़ि मरहि भिड़ि सूर ॥
न भीजै केते होवहि धूड़ ॥
लेखा लिखीऐ मन कै भाइ ॥
नानक भीजै साचै नाइ ॥२॥(1237)॥
87. नव छिअ खट का करे बीचारुनव छिअ खट का करे बीचारु ॥
निसि दिन उचरै भार अठार ॥
तिनि भी अंतु न पाइआ तोहि ॥
नाम बिहूण मुकति किउ होइ ॥
नाभि वसत ब्रहमै अंतु न जाणिआ ॥
गुरमुखि नानक नामु पछाणिआ ॥३॥(1237)॥
88. जिनसि थापि जीआं कउ भेजै जिनसि थापि लै जावैजिनसि थापि जीआं कउ भेजै जिनसि थापि लै जावै ॥
आपे थापि उथापै आपे एते वेस करावै ॥
जेते जीअ फिरहि अउधूती आपे भिखिआ पावै ॥
लेखै बोलणु लेखै चलणु काइतु कीचहि दावे ॥
मूलु मति परवाणा एहो नानकु आखि सुणाए ॥
करणी उपरि होइ तपावसु जे को कहै कहाए ॥२॥(1238)॥
89. जुड़ि जुड़ि विछुड़े विछुड़ि जुड़ेजुड़ि जुड़ि विछुड़े विछुड़ि जुड़े ॥
जीवि जीवि मुए मुए जीवे ॥
केतिआ के बाप केतिआ के बेटे केते गुर चेले हूए ॥
आगै पाछै गणत न आवै किआ जाती किआ हुणि हूए ॥
सभु करणा किरतु करि लिखीऐ करि करि करता करे करे ॥
मनमुखि मरीऐ गुरमुखि तरीऐ नानक नदरी नदरि करे ॥२॥(1238)॥
90. नानक तुलीअहि तोल जे जीउ पिछै पाईऐनानक तुलीअहि तोल जे जीउ पिछै पाईऐ ॥
इकसु न पुजहि बोल जे पूरे पूरा करि मिलै ॥
वडा आखणु भारा तोलु ॥
होर हउली मती हउले बोल ॥
धरती पाणी परबत भारु ॥
किउ कंडै तोलै सुनिआरु ॥
तोला मासा रतक पाइ ॥
नानक पुछिआ देइ पुजाइ ॥
मूरख अंधिआ अंधी धातु ॥
कहि कहि कहणु कहाइनि आपु ॥१॥(1239)॥
91. आखणि अउखा सुनणि अउखा आखि न जापी आखिआखणि अउखा सुनणि अउखा आखि न जापी आखि ॥
इकि आखि आखहि सबदु भाखहि अरध उरध दिनु राति ॥
जे किहु होइ त किहु दिसै जापै रूपु न जाति ॥
सभि कारण करता करे घट अउघट घट थापि ॥
आखणि अउखा नानका आखि न जापै आखि ॥२॥
(1239)॥
92. जूठि न रागीं जूठि न वेदींजूठि न रागीं जूठि न वेदीं ॥
जूठि न चंद सूरज की भेदी ॥
जूठि न अंनी जूठि न नाई ॥
जूठि न मीहु वर्हिऐ सभ थाई ॥
जूठि न धरती जूठि न पाणी ॥
जूठि न पउणै माहि समाणी ॥
नानक निगुरिआ गुणु नाही कोइ ॥
मुहि फेरिऐ मुहु जूठा होइ ॥१॥1240)॥
93. नानक चुलीआ सुचीआ जे भरि जाणै कोइनानक चुलीआ सुचीआ जे भरि जाणै कोइ ॥
सुरते चुली गिआन की जोगी का जतु होइ ॥
ब्रहमण चुली संतोख की गिरही का सतु दानु ॥
राजे चुली निआव की पड़िआ सचु धिआनु ॥
पाणी चितु न धोपई मुखि पीतै तिख जाइ ॥
पाणी पिता जगत का फिरि पाणी सभु खाइ ॥२॥1240)॥
94. दुख विचि जमणु दुखि मरणु दुखि वरतणु संसारिदुख विचि जमणु दुखि मरणु दुखि वरतणु संसारि ॥
दुखु दुखु अगै आखीऐ पड़्हि पड़्हि करहि पुकार ॥
दुख कीआ पंडा खुल्हीआ सुखु न निकलिओ कोइ ॥
दुख विचि जीउ जलाइआ दुखीआ चलिआ रोइ ॥
नानक सिफती रतिआ मनु तनु हरिआ होइ ॥
दुख कीआ अगी मारीअहि भी दुखु दारू होइ ॥१॥1240)॥
95. नानक दुनीआ भसु रंगु भसू हू भसु खेहनानक दुनीआ भसु रंगु भसू हू भसु खेह ॥
भसो भसु कमावणी भी भसु भरीऐ देह ॥
जा जीउ विचहु कढीऐ भसू भरिआ जाइ ॥
अगै लेखै मंगिऐ होर दसूणी पाइ ॥२॥1240)॥
96. घरि नाराइणु सभा नालिघरि नाराइणु सभा नालि ॥
पूज करे रखै नावालि ॥
कुंगू चंनणु फुल चड़ाए ॥
पैरी पै पै बहुतु मनाए ॥
माणूआ मंगि मंगि पैन्है खाइ ॥
अंधी कमी अंध सजाइ ॥
भुखिआ देइ न मरदिआ रखै ॥
अंधा झगड़ा अंधी सथै ॥१॥1240)॥
97. सभे सुरती जोग सभि सभे बेद पुराणसभे सुरती जोग सभि सभे बेद पुराण ॥
सभे करणे तप सभि सभे गीत गिआन ॥
सभे बुधी सुधि सभि सभि तीरथ सभि थान ॥
सभि पातिसाहीआ अमर सभि सभि खुसीआ सभि खान ॥
सभे माणस देव सभि सभे जोग धिआन ॥
सभे पुरीआ खंड सभि सभे जीअ जहान ॥
हुकमि चलाए आपणै करमी वहै कलाम ॥
नानक सचा सचि नाइ सचु सभा दीबानु ॥२॥1241)॥
98. कलि होई कुते मुही खाजु होआ मुरदारुकलि होई कुते मुही खाजु होआ मुरदारु ॥
कूड़ु बोलि बोलि भउकणा चूका धरमु बीचारु ॥
जिन जीवंदिआ पति नही मुइआ मंदी सोइ ॥
लिखिआ होवै नानका करता करे सु होइ ॥१॥(1242)॥
99. रंना होईआ बोधीआ पुरस होए सईआदरंना होईआ बोधीआ पुरस होए सईआद ॥
सीलु संजमु सुच भंनी खाणा खाजु अहाजु ॥
सरमु गइआ घरि आपणै पति उठि चली नालि ॥
नानक सचा एकु है अउरु न सचा भालि ॥२॥(1243)॥
100. ध्रिगु तिना का जीविआ जि लिखि लिखि वेचहि नाउध्रिगु तिना का जीविआ जि लिखि लिखि वेचहि नाउ ॥
खेती जिन की उजड़ै खलवाड़े किआ थाउ ॥
सचै सरमै बाहरे अगै लहहि न दादि ॥
अकलि एह न आखीऐ अकलि गवाईऐ बादि ॥
अकली साहिबु सेवीऐ अकली पाईऐ मानु ॥
अकली पड़्हि कै बुझीऐ अकली कीचै दानु ॥
नानकु आखै राहु एहु होरि गलां सैतानु ॥१॥(1245)॥
101. गिआन विहूणा गावै गीतगिआन विहूणा गावै गीत ॥
भुखे मुलां घरे मसीति ॥
मखटू होइ कै कंन पड़ाए ॥
फकरु करे होरु जाति गवाए ॥
गुरु पीरु सदाए मंगण जाइ ॥
ता कै मूलि न लगीऐ पाइ ॥
घालि खाइ किछु हथहु देइ ॥
नानक राहु पछाणहि सेइ ॥१॥(1245)॥
102. मनहु जि अंधे कूप कहिआ बिरदु न जाणन्हीमनहु जि अंधे कूप कहिआ बिरदु न जाणन्ही ॥
मनि अंधै ऊंधै कवलि दिसन्हि खरे करूप ॥
इकि कहि जाणहि कहिआ बुझहि ते नर सुघड़ सरूप ॥
इकना नाद न बेद न गीअ रसु रस कस न जाणंति ॥
इकना सुधि न बुधि न अकलि सर अखर का भेउ न लहंति ॥
नानक से नर असलि खर जि बिनु गुण गरबु करंति ॥२॥(1246)॥
103. नानक सावणि जे वसै चहु ओमाहा होइनानक सावणि जे वसै चहु ओमाहा होइ ॥
नागां मिरगां मछीआं रसीआं घरि धनु होइ ॥१॥
मः १ ॥
नानक सावणि जे वसै चहु वेछोड़ा होइ ॥
गाई पुता निरधना पंथी चाकरु होइ ॥२॥(1279)॥
104. लख मण सुइना लख मण रुपा लख साहा सिरि साहलख मण सुइना लख मण रुपा लख साहा सिरि साह ॥
लख लसकर लख वाजे नेजे लखी घोड़ी पातिसाह ॥
जिथै साइरु लंघणा अगनि पाणी असगाह ॥
कंधी दिसि न आवई धाही पवै कहाह ॥
नानक ओथै जाणीअहि साह केई पातिसाह ॥४॥(1287)॥
105. हरणां बाजां तै सिकदारां एन्हा पड़्हिआ नाउहरणां बाजां तै सिकदारां एन्हा पड़्हिआ नाउ ॥
फांधी लगी जाति फहाइनि अगै नाही थाउ ॥
सो पड़िआ सो पंडितु बीना जिन्ही कमाणा नाउ ॥
पहिलो दे जड़ अंदरि जमै ता उपरि होवै छांउ ॥
राजे सीह मुकदम कुते ॥
जाइ जगाइन्हि बैठे सुते ॥
चाकर नहदा पाइन्हि घाउ ॥
रतु पितु कुतिहो चटि जाहु ॥
जिथै जीआं होसी सार ॥
नकीं वढीं लाइतबार ॥२॥(1288)॥
106. पहिलां मासहु निमिआ मासै अंदरि वासुपहिलां मासहु निमिआ मासै अंदरि वासु ॥
जीउ पाइ मासु मुहि मिलिआ हडु चमु तनु मासु ॥
मासहु बाहरि कढिआ ममा मासु गिरासु ॥
मुहु मासै का जीभ मासै की मासै अंदरि सासु ॥
वडा होआ वीआहिआ घरि लै आइआ मासु ॥
मासहु ही मासु ऊपजै मासहु सभो साकु ॥
सतिगुरि मिलिऐ हुकमु बुझीऐ तां को आवै रासि ॥
आपि छुटे नह छूटीऐ नानक बचनि बिणासु ॥१॥(1289)॥
107. मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआनु धिआनु नही जाणैमासु मासु करि मू